Swaroopanand Saraswati death: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, एमपी ने नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस
Advertisement

Swaroopanand Saraswati death: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, एमपी ने नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस

Swaroopanand Saraswati death: धर्म सम्राट कहे जाने वाले जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य महाराज का निधन हो गया है. उन्होंने नरसिंहपुर के मणिदीप आश्रम महुआ में अंतिम सांस ली. उनके निधन के बाद से उनके भक्तों में शोक है.

Swaroopanand Saraswati death: शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, एमपी ने नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस

नई दिल्ली: द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया. उन्होंने 99 साल की उम्र में नरसिंहपुर के मणिदीप आश्रम महुआ में अंतिम सांस ली. उनके निधन के बाद से उनके भक्तों में शोक है. स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. उनके निधन के बाद भक्तों में शोक है.

स्वरूपानंद सरस्वती की निधन के खबर से आश्रम की ओर भक्त पहुंचने लगे हैं. वहीं देश भर से तमाम हस्तियां भी उनके निधन पर शोक व्यक्त कर रही हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर उनके निधन पर शोक व्यक्त किया.

कमलनाथ ने लिखा 'परम पूज्य ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी शंकराचार्य सरस्वती जी के देवलोक गमन का समाचार बेहद दुखद व पीड़ादायक है. अभी कुछ दिन पूर्व ही उनके 99वें प्राकट्योत्सव एवं शताब्दी प्रवेश वर्ष महोत्सव में शामिल होकर उनके श्रीचरणो में नमन कर उनका आशीर्वाद लिया था.

कुछ दिन पहले ही मनाया था जन्मदिन
स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज करोड़ों सनातन हिन्दुओं  की आस्था के ज्योति स्तंभ थे. जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे. हाल ही में हरियाली तीज के मौके पर उनका 99वां जन्मदिन मनाया गया था. जिसमें पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी महाराज का आशीर्वाद लिया था. इसके अलावा राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह ने भी ट्वीट कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी थी.

सिवनी के दिघोरी में हुआ था जन्म
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था. उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी था. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू की. इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली.

1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो स्वरूपानंद सरस्वती भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी. वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1950 में वह दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे.

Trending news