लावारिसों को मुक्ति दिलाता है रतलाम का ये शख्स, 25 साल में कर चुका हजारों शवों का अंतिम संस्कार
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लावारिसों को मुक्ति दिलाता है रतलाम का ये शख्स, 25 साल में कर चुका हजारों शवों का अंतिम संस्कार

Madhya Pradesh News: रतलाम जिले के समाजसेवी सुरेश तंवर एक बार फिर से अस्थियों से भरे कलश को लेकर हरिद्वार के लिए निकल पड़े हैं. जाने से पहले शहर में निकलने वाली यात्रा में उनका फूलों से स्वागत किया गया. सुरेश 25 साल से यही काम कर रहे हैं. वे अब तक हजारों लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. 

लावारिसों को मुक्ति दिलाता है रतलाम का ये शख्स, 25 साल में कर चुका हजारों शवों का अंतिम संस्कार

MP News: श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के 16 दिनों में हिन्दू समाज अपने पूर्वजो के आत्माओं की शांति की पूजा पाठ करते हैं, लेकिन रतलाम में एक समाज सेवी जो हरवर्ष लावारिश सेकड़ों शवों का वारिस बनकर उनका विधि विधान से अस्थि कलश यात्रा निकाल कर हरिद्वार जाकर सभी का तर्पण करवाते हैं. यह काम रतलाम के सुरेश तंवर बीते 25 सालों से करते आ रहे हैं.

शहर की सड़कों से निकल रही इस अस्थि कलश यात्रा में भले ही कुछ लोग साथ में नजर आ रहे हो, लेकिन इस अस्थि कलश यात्रा में 400 से ज्यादा से ज्यादा लावारिस शव की अस्थियां है. शहर के लोग इस पुनीत अस्थि कलश यात्रा में चौराहों पर पुष्प वर्षा भी करते हैं और सहयोगी भी बनते हैं.

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बन जाते हैं लावारिसों के वारिश
दरसल, पूर्व वर्ष में जितने भी लावारिस शव मिलते है और उनका अंतिम दाह संस्कार करवाना हो तो वह उस लावारिस शव के वारिश बन जाते हैं और पूरे वर्ष में जितने भी ऐसे लावारिस शव जिला अस्पताल या जिले से जहां भी मिलते हैं. उन्हें कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सुरेश तंवर खुद अपने खर्च से अंतिम संस्कार विधि विधान से करवाते हैं और शव की अस्थियों को कलश में रख लेते हैं. 

हर साल निकालते हैं यात्रा
श्राद्ध पक्ष में सभी अस्थियों को एक विशाल कलश में लेकर एक सम्मान वाली शव यात्रा की तरह इस अस्थि कलश की यात्रा निकालते हैं. हरिद्वार में तर्पण के बाद रतलाम आकर मृत्यु उपरांत किये जाने वाले कर्मकांड भी करवाते हैं. यानी वह लावारिस शव को समाज मे एक वारिस होने का स्थान देकर उनको आत्मा को शांतिपूर्ण मुक्ति देने का अद्भुत सेवा कार्य करते हैं. इनकी कोई समिति नही है जो भी इनके साथ इनकी सेवा कार्य मे सहयोग देने शामिल होना चाहते हैं. वह खुद शामिल हो जाते हैं.

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इस तरह मिली प्रेरणा
सुरेश तंवर को इस कार्य की प्रेरणा भी अपने घर में हुए घटनाक्रम से मिली. उनके भाई सालों पहले उन्हें छोड़कर कहीं चले गए थे. ऐसे मे उन्हें चिंता हुई कि यदि भाई के साथ कोई अनहोनी हुई तो उसे देखने वाला कौन होगा. इसी प्रेरणा से हाल लावारिस को अपना मानकर ये सुरेश तंवर हर लावारिश शवों के खुद वारिस बन जाते हैं.

रतलाम से चंद्रशेखर सोलंकी की रिपोर्ट

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