बंदर की मौत पर ग्रामीणों ने कराया मुंडन, मृत्यु भोज में उमड़ा जनसैलाब
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बंदर की मौत पर ग्रामीणों ने कराया मुंडन, मृत्यु भोज में उमड़ा जनसैलाब

मामला राजगढ़ जिले के डालूपुरा गांव का बताया जा रहा है. गांव में लंबे समय से एक बंदर रहता था, जिसका ग्रामीणों के साथ ऐसा लगाव था, जैसे वह उनके घर का सदस्य हो.

बंदर की मौत पर ग्रामीणों ने कराया मुंडन, मृत्यु भोज में उमड़ा जनसैलाब

राजगढ़ः मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में मानवता की अनूठी मिसाल देखने को मिली है. जहां एक बंदर की की मौत के बाद उसकी शव यात्रा निकालकर उसका अंतिम संस्कार पूरे रीति-रिवाजों के साथ किया गया. इतना ही नहीं मौत के बाद उसकी याद में मृत्युभोज का आयोजन भी किया गया. जिसमें जनसैलाब उमड़ा. 

दरअसल, मामला राजगढ़ जिले के डालूपुरा गांव का बताया जा रहा है. गांव में लंबे समय से एक बंदर रहता था, जिसका ग्रामीणों के साथ ऐसा लगाव था, जैसे वह उनके घर का सदस्य हो. बंदर का गांव के एक-एक सदस्य से काफी जुड़ाव था. पिछले कुछ दिनों से बंदर बीमार था, ग्रामीणों ने उसका इलाज भी करवाया लेकिन कुछ दिनों पहले बंदर की मौत हो गई. जिससे पूरे गांव में शौक की लहर दौड़ गई. लेकिन बंदर की मौत के बाद ग्रामीणों ने कुछ ऐसा किया जिसकी चर्चा पूरे जिले में हो रही है. 

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बंदर के मृत्यु भोज में उमड़ा जनसैलाब
बंदर की मौत के बाद डालूपुरा के ग्रामीणों ने हिंदू मान्यता के अनुसार बंदर का अंतिम संस्कार किया गया और किसी इंसान की मौत के बाद उसकी शांति के लिए निभाई जाने वाली सभी परंपराएं पूरी की. बंदर की मौत के 13 दिन बाद गांव में उसकी याद में मृत्यु भोज कार्यक्रम रखा गया, जिसको लेकर शोक पत्र भी छपवाए गए. आज डालूपुरा गांव में बंदर के मृत्यु भोज हजारों की संख्या में लोगों उपस्थित होकर सभी ने भोज किया. 

हरिसिंह ने करवाया मुंडन 
जब इसको लेकर ग्रामीणों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि बंदर से उनका गहरा लगाव था. ऐसे में उसकी मौत पर गांव का बच्चा-बच्चा दुखी हो गया. लेकिन ग्रामीणों पूरे रीति रिवाज से बंदर का अंतिम संस्कार करते हुए चंदा जोड़कर इस भोज का आयोजन किया. इतना ही नहीं बंदर की मौत के तीन दिन बाद उसकी अस्थियां भी उज्जैन में विसर्जित की गई. वहीं ग्रामीण हरि सिंह ने बंदर के लिए मुंडन करवाकर परिवार के सदस्य की तरह बंदर की तैरहवीं का कार्यक्रम संपन्न करवाया, ग्रामीणों का मानना है कि बंदर हनुमानजी का ही रूप हैं. इसलिए वह हमारे पूर्वज है. 

ग्रामीणों ने बताया कि बंदर के मृत्यु भोज में खर्चा भी हुआ. इसलिए सभी गांववालों ने चंदा जोड़ लिया था. 10 क्विंटल आटा, 450 लीटर छाछ, 350 लीटर तेल, 2.5 क्विंटल शक्कर, एक क्विंटल बेसन से बना भोजन और 10 हजार दोने-पत्तल लगे, जिसमें हजारों लोगों ने भोजन किया. इस आयोजन पर डालूपुरा गांव के लोगों की जमकर तारीफ भी हो रही है. 

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