दीपावली के एक दिन पहले इस शमशान के चारों तरफ दिए जलाए जाते हैं, आतिश बाजी होती है. बच्चे, बूढे, जवान हों या महिलाएं सभी यहां दीपावली पर खुशियां मनाते हैं.
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चंद्रशेखर सोलंकी/रतलाम: शमशान वो जगह है जहां हम सभी ने लोगों को अपने को खोने के गम में रोते हुए ही देखा होगा. शायद ही किसी ने शमशान पर खुशी का माहौल देखा है.लेकिन रतलाम में एक शमशान ऐसा है जहां लोग खुशियां मनाते हैं. इस शमशान पर कई सालों से दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है.
दीपावली के एक दिन पहले इस शमशान के चारों तरफ दिए जलाए जाते हैं, आतिश बाजी होती है. बच्चे, बूढे, जवान हों या महिलाएं सभी यहां दीपावली पर खुशियां मनाते हैं.
स्थानीय लोगों की मानें तो शुरुआत में कुछ लोग इस आयोजन से जुड़े, लेकिन अब कई ज्यादा लोग मिलकर अपने परिवार के साथ यहां आते है और शमशान मे दीपावली मनाते हैं.
शमशान पर दीपावली मनाने की शुरुआत 2008 में एक सामाजिक संस्था द्वारा की गई थी. इसके पीछे का उद्देश्य पूर्वजों के साथ या जो दुनिया से चले गये उनके साथ दीपावली की खुशिया बाटना है.
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बताया जाता है कि यहां दीपावली के दिन पूर्व यम चौदस का महत्व है. यही कारण है कि यहां के लोग पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए शमशान में दीप जलाते हैं.
सूर्या अस्त के समय सभी शमशान पहुंच जाते हैं. पहले यहां बड़ी रंगोली बनाई जाती है. इसके बाद दीयों से पूरे शमशान को रोशन कर दिया जाता है. इसके बाद आतिशबाजी की जाती है. अंधेरा होने तक सभी यहीं दीपावली मनाते हैं और नाचते हैं.
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