PM के हाथों चरण पादुका पहनने वाली रत्नी बाई बोलीं, चप्पल से ज्यादा गैस सिलेंडर की जरूरत
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PM के हाथों चरण पादुका पहनने वाली रत्नी बाई बोलीं, चप्पल से ज्यादा गैस सिलेंडर की जरूरत

रत्नी बाई ने कहा कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री से अपने मन की बात कहने का मौका मिलता तो वह गैस सिलेंडर की मांग करती, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला.

छत्तीसगढ़ में एक कार्यक्रम में रत्नी बाई को चप्पल पहनाते हुए प्रधानमंत्री (फाइल फोटो)

जगदलपुर : उज्ज्वला योजना के तहत बड़े पैमाने पर महिलाओं को रसोई गैस कनेक्शन मुहैया कराए जा रहे हैं, लेकिन रसोई गैस वास्तव में जरूरतमंदों को मिल भी रही है या नहीं, यह जांच का विषय है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों चरणपादुका योजना के तहत चप्पल पहनने वाली आदिवासी महिला रत्नी बाई को अभी तक उज्ज्वला योजना का लाभ नहीं मिला है. उन्होंने रसोई गैस की मांग की है. रत्नी बाई ने बताया कि घर का चूल्हा जलाने के लिए उन्हें लड़की इकट्ठा करने के लिए जंगल-जंगल भटकना पड़ता है.

  1. 14 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री ने रत्नी बाई को पहनाईं चप्पल
  2. भरे मंच पर रत्नी बाई का हुआ सम्मान, लेकिन नहीं सुनी मन की बात
  3. रत्नी बाई ने कहा कि उन्हें चप्पल से ज्यादा रसोई गैस की जरूरत है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में आयुष्मान योजना की शुरुआत करते समय मंच पर रत्नी बाई को अपने हाथों से चप्पल पहनाई थी. जिसने भी इस पल को देखा तो यही सोचा होगा कि अब तो रत्नी बाई के दिन फिर गए. जिसे खुद प्रधानमंत्री ने अपने हाथों से चप्पल पहनाई अब उसे किस बात की कमी होगी. लेकिन यह सच नहीं है. रत्नी बाई के नंगे पांवों में भले ही चप्पल आ गई हो, लेकिन चूल्हा जलाने के लिए उसे आज भी कई किलोमीटर जंगल में ही भटकना पड़ता है.

नहीं मिला पीएम से मन की बात कहने का मौका
रत्नी बाई को भरे मंच पर प्रधानमंत्री ने सम्मानित तो किया और उन्हें अपने हाथों से उन्हें चप्पल पहनाईं. लेकिन रत्नी बाई को पीएम के सामने अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला. रत्नी बाई का कहना है, "मुझे चप्पल से ज्यादा गैस सिलेंडर की जरूरत है. इस उम्र में दूर जंगलों से लकड़ी लाने में दिक्कत होती है. मुझे मौका नहीं मिला, वरना प्रधानमंत्री से अपने मन की बात जरूर कहती."

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तेंदूपत्ता बीनती हैं रत्नी बाई
रत्नी बाई ने कहा कि उसका परिवार तेंदूपत्ता बीनने का काम करता है और उसे ही बेचकर दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त हो पाता है. जब तेंदूपत्तों का सीजन नहीं होता तो खेतों में मजदूरी कर परिवार अपना पेट भरता है. घर पर खाना पकाने के लिए लकड़ी लेने वह जंगलों में जाती है. सिर पर लकड़ी लादकर लाती है. ऐसे में खाना पकाने में काफी परेशानी होती है. अगर उसे भी अन्य लोगों की तरह गैस सिलेंडर मिल जाता तो अच्छा होता.

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