नौकरी शुरू करने के दो साल बाद ही श्रीधर ने अपने भाईयों और तीन दोस्तों के साथ मिलकर AdventNet के नाम से खुद की कंपनी शुरू कर दी.
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नई दिल्लीः आपने शाहरुख खान की एक फिल्म स्वदेश देखी होगी. अगर नहीं देखी है तो हम बताते हैं कि उस फिल्म का नायक अमेरिका में रहता है और नासा में साइंटिस्ट होता है लेकिन अचानक उसका देशप्रेम जाग जाता है और वह सबकुछ छोड़कर अपने गांव लौट आता है. ये तो हुई फिल्मी कहानी लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि असल में भी ऐसा हुआ है. जहां एक बिजनेसमैन ने अपने बिजनेस को अमेरिका से तमिलनाडु के एक गांव में शिफ्ट कर लिया है. अमेरिका में भी ऐसी वैसी जगह से नहीं बल्कि सिलिकॉन वैली से, जहां अमेरिका की अधिकतर दिग्गज कंपनियों के ऑफिस हैं! तो आइए जानते हैं श्रीधर वेंबू (Sridhar Vembu) की कहानी और इसका वजह कि उन्होंने क्यों अमेरिका छोड़कर भारत के एक गांव में बसने का फैसला किया?
ऐसे हुई सफर की शुरुआत
श्रीधर वेंबू (Sridhar Vembu) का जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक गांव में हुआ था. उनके परिजन खेती करते थे. श्रीधर पढ़ाई में बचपन से ही काफी तेज थे और यही वजह रही कि 1989 में उनका दाखिला आईआईटी मद्रास में हो गया. आईआईटी से बीटेक की डिग्री लेने के बाद वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका चले गए. यहां श्रीधर ने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद Qualcomm कंपनी में बतौर वायरलैस सिस्टम इंजीनियर नौकरी की शुरुआत की.
क्या है Zoho Corp?
नौकरी शुरू करने के दो साल बाद ही श्रीधर ने अपने भाईयों और तीन दोस्तों के साथ मिलकर AdventNet के नाम से खुद की कंपनी शुरू कर दी. श्रीधर वेंबू ने साल 1996 में AdventNet की शुरुआत की थी और साल 2009 में इसका नाम बदलकर जोहो कोरपोरेशन कर दिया. यह कंपनी ऑनलाइन एप्लीकेशन मुहैया कराती है. जिसके आज करोड़ों की संख्या में यूजर्स हैं. कंपनी में अभी 9000 के करीब कर्मचारी दुनियाभर के विभिन्न कार्यालयों में काम करते हैं. श्रीधर वेंबू अपनी कंपनी की क्षमताओं को स्वदेशी बनाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने कंपनी के हेडक्वार्टर को भारत में शिफ्ट करने की योजना बनाई.
इस विचार को बाकायदा कंपनी की बोर्ड मीटिंग में रखा गया. जहां से स्वीकृति मिलने के बाद वेंबू ने सबसे पहले तमिलनाडु से 650 किलोमीटर दूर तेनकाशी जिले के मथलमपराई गांव में 4 एकड़ जमीन खरीदी. इसके बाद जोहो कोर्प का यहां हेडक्वार्टर बनाया गया और आज कंपनी के कई कर्मचारी यहां काम करते हैं. इतना ही नहीं कंपनी को गांव में शिफ्ट करने के साथ ही वेंबू खुद भी इस गांव में बस गए हैं. 53 वर्षीय वेंबू भी गांव से ही काम करते हैं.
ग्रामीण भारत में बढ़ाना चाहते हैं अपना नेटवर्क
वेंबू की इच्छा है कि वह अपनी कंपनी का प्रसार देश के अन्य गांवों में भी करें. इसके लिए वेंबू गांवों में सैटेलाइट कनेक्टेड ऑफिस सेंटर खोलना चाहते हैं, जहां 10-20 लोग काम कर सकें.
जीते हैं बेहद साधारण जीवन
वेंबू आज भले ही अरबपति हैं लेकिन वह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं और उनके साधारण जीवन और दिनचर्या को देखकर एक बारगी कोई भी धोखा खा जाए कि वह इतने अमीर व्यक्ति हैं. श्रीधर वेंबू का दिन सुबह 4 बजे शुरू हो जाता है और सुबह उठकर वह सबसे पहले गांव में घूमने निकल जाते हैं. इसके बाद नाश्ता वगैरह कर ऑफिस का काम करते हैं. वेंबू को कई बार गांव के तालाब में तैरते हुए और कभी-कभी खेती करते हुए भी दिख जाते हैं. वेंबू अक्सर साइकिल पर गांव में घूमते भी दिख जाते हैं.
ग्रामीण जीवन से बेहद खुश हैं वेंबू
फोर्ब्स इंडिया के साथ बातचीत में एक बार श्रीधर वेंबू ने कहा था कि मैं अपनी जड़ों से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करता हूं और इस तरह के जीवन का काफी आनंद लेता हूं. यहां किसी तरह की कोई तुलना नहीं है. आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है कि आपके पड़ोसी के पास फरारी है या आपका पड़ोसी छुट्टियों पर जा रहा है. ये चीजें यहां कम हो जाती हैं और आप ज्यादा सादगी भरा जीवन जीते हैं. मैं हमेशा से ही कम उपभोग करने वाला व्यक्ति रहा हूं. जब भी नया फोन मार्केट में लॉन्च होता है तो मैं कभी उसे खरीदने के लिए जल्दबाजी नहीं करता हूं. जब वह फोन सभी लोगों के पास आ जाता है तब जरूर में उसे खरीद सकता हूं.
गांवों के टैलेंट को प्रमोट करना चाहते हैं Sridhar Vembu
जोहो कोरपोरेशन में वेंबू के 88 फीसदी शेयर हैं, जिनकी कीमत करीब 1.83 बिलियन डॉलर है. साल 2019 में जोहो कोर्प ने करीब 516 करोड़ का मुनाफा कमाया था. अपने इस पैसे से श्रीधर वेंबू ने गांव में ही एक इंस्टीट्यूट खोला है, जिसमें प्रतिभावान युवाओं में स्किल डेवलेप किए जा रहे हैं और उन्हें कंपनी की तरफ से नौकरी भी दी जा रही है. वेंबू चाहते हैं कि हमारा देश भी तकनीक के मामले में दुनिया में अग्रणी बने और यही वजह है कि वह आत्मनिर्भर भारत योजना के भी समर्थक हैं. श्रीधर वेंबू के योगदान को भारत सरकार ने भी मान्यता दी है और यही वजह है कि इस साल सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है.