खून के रिश्तों ने ठुकराया तो पराई बेटी ने किया बुजुर्ग का अंतिम संस्कार
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खून के रिश्तों ने ठुकराया तो पराई बेटी ने किया बुजुर्ग का अंतिम संस्कार

सूरज को पाने की खुशी में पंछी के पर जल जाते है, कुछ बंधन ऐसे भी होते है जो बिना बांधे बंध जाते है. आगर मालवा जिले में भी एक ऐसा ही बंधन वृद्धाश्रम संचालिका ने बेटी बन निभाया है.

खून के रिश्तों ने ठुकराया तो पराई बेटी ने किया बुजुर्ग का अंतिम संस्कार

आगर-मालवा: सूरज को पाने की खुशी में पंछी के पर जल जाते है, कुछ बंधन ऐसे भी होते है जो बिना बांधे बंध जाते है. आगर मालवा जिले में भी एक ऐसा ही बंधन वृद्धाश्रम संचालिका ने बेटी बन निभाया है. न केवल जीते जी बुजुर्ग की सेवा की बल्कि बीमारी से हुई मौत के बाद बेटी बन अर्थी को कांधा भी दिया और चिता को अग्नि भी दी साथ ही विधि विधान से अंतिम संस्कार की सारी विधियां भी निभाई.

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दरअसल आगर मालवा जिले में स्थित एकमात्र अपना घर वृद्धाश्रम में लंबी बीमारी से वृद्ध की मौत हो गई. जिसकी सूचना वृद्धाश्रम प्रबंधन ने उनके परिजनों को दी. सूचना के बाद भी अंतिम संस्कार के लिए परिजन नहीं आए तो वृद्धाश्रम की संचालिका मीना जयंत ही बेटी बन आगे आ गई.

संचालिका ही बन गई बेटी
मोक्षधाम में अर्थी पर रखे बुजुर्ग के रिश्ते में वहां मौजूद लोग और यह महिला वैसे तो कुछ नहीं लगते. लेकिन मानवता के रिश्ते से इस बुजुर्ग से ऐसे जुड़े की मोक्षधाम पर लकड़ियों ओर कंडो की अपने हाथों से व्यवस्था कर न केवल चिता सजा दी, बल्कि बेटे और परिजनो की तरह चिता में अग्नि भी इस महिला ने समाजसेवियों की मदद से अपने हाथों से दी है. अपने हाथों से अर्थी को कंधा देकर वृद्धाश्रम संचालिका ने वह काम किया जो अर्थी पर रखे बुजुर्ग के परिजनों ने नहीं किया.

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बुजुर्ग की शादी नहीं हुई थी
आगर मालवा जिले के अपना घर वृद्धाश्रम में करीब 5 वर्षो से रह रहे करीब 65 वर्षीय बुजुर्ग शंकरलाल की बीमारी के बाद मौत हो गई. अपनी शादी नहीं होने से घर में अकेले बमुश्किल जीवन यापन कर रहे शंकरलाल को 5 वर्ष पहले अपनाघर वृद्धाश्रम में आश्रय मिला था. बीमार होने के बाद करीब 2 महीनों तक बुजुर्ग का इलाज कराया गया, लेकिन बीमारी से उनका देहांत हो गया. जिसकी सूचना वृद्धाश्रम के प्रबंधन द्वारा उनके भाई व परिजनों को दी. सूचना के बावजूद परिजन अंतिम संस्कार करने नहीं आए. वृद्धाश्रम की बुजुर्ग की मौत के बाद आश्रम संचालिका मीना जयंत आगे आई और नगर के समाजसेवियों और वहां रह रहे बुजुर्गों के साथ मिलकर अंतिम संस्कार की समस्त रस्मों को निभाते हुए दाह संस्कार किया.

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