'शिखर पर पहुंचकर आदमी अकेला होता जाता है', इसी अकेलेपन में मजा नहीं था अटल जी को
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'शिखर पर पहुंचकर आदमी अकेला होता जाता है', इसी अकेलेपन में मजा नहीं था अटल जी को

25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्में अटल बिहारी वाजपेयी की आज 96वीं जयंती है. इस खास मौके पर आइये याद करते हैं उनके जीवन की वो कुछ खास यादें, जिनकी कमी उन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ ज्यादा ही महसूस हुई.

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी.

नई दिल्लीः 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्में अटल बिहारी वाजपेयी की आज 96वीं जयंती है. इस खास मौके पर आइये याद करते हैं उनके जीवन की वो कुछ खास यादें, जिनकी कमी उन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद कुछ ज्यादा ही महसूस हुई. 

राजनीति की उच्चतम चोटी पर पहुंचकर भी कोई अंदर से किस तरह अकेला रह जाता है, यह भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से पता लगाया जा सकता है. अपने जमाने में कभी फक्कड़पन के नए तराने लिखने वाले वाजपेयी जी को सत्ता की गद्दी पर आते ही उन सभी को पीछे छोड़ना पड़ा. तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल जी को वैसे तो दिल्ली की गलियों में घूमना बेहद पसंद था. लेकिन पद की पाबंदियां ही कुछ ऐसी थीं कि उन्हें मजबूरन अपने मन को समझाना पड़ा.

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चांदनी चौक की पराठे वाली गली
पूर्व प्रधानमंत्री के एक सहयोगी ने जब उनसे पूछा कि इस पद पर आपको किस चीज की कमी सबसे ज्यादा महसूस होती है? तो वह फटाक से बोल उठे, ''फक्कड़पन की.'' चांदनी चौक की पराठे वाली गली में पराठे खाना या शाहजहां रोड़ पर चाट वाले के पास खड़े होकर चाट खाना, ये सब उन्हें पसंद था. लेकिन पद की बंदिशों को तोड़ पाना आसान नहीं था.

अपनी पंक्तियों में दर्शाते रहे पीड़ा
वाजपेयी जी के जीवन का सार उनकी कविताओं के माध्यम से समझा जा सकता है. या यूं कहें उनकी कविताएं ही उनके मन की खुली किताब हैं. 'शिखर पर पहुंचकर आदमी अकेला होता जाता है', 'राह कौन सी जाऊं मैं', 'काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं.' ये उनके जीवन की कुछ एक पंक्तियां जिनसे उनके मन की पीड़ा का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है. अपनी सरकार का एक वोट से गिर जाना या जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन, सभी दुःख उनके लिए समान रहे.

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एयरपोर्ट से उतरते ही पहुंच गए थे सिनेमा हॉल
साल 1994 को वह समय था जब अटल जी विदेश यात्रा से लौटे थे. एयरपोर्ट से उतरते ही वह सीधे सिनेमाहाल पहुंच गए. वहां जाकर उन्होंने अनिल कपूर और मनीषा कोइराल की ''1942- ए लव स्टोरी'' फिल्म देखी. एक बार तो वह प्रधानमंत्री रहते हुए अपने मंत्रीमंडल के सहयोगी के साथ ''कोर्ट मार्शल'' नाटक देखने थिएटर भी पहुंच गए थे. 

एसडी बर्मन के गानों का बहुत शौक था
अटल जी अक्सर एकांत में ''ओ रे मांझी...सुन मेरे बंधु रे...'', और ''मेरे साजन हैं उस पार...'' जैसे गीतों को सुना करते थे. पसंदीदा गीतकारों में उन्हें एसडी बर्मन के गाने बहुत पसंद थे. मेला-ठेला और खानपान में रुचि रखने वाले अटल जी खिचड़ी बहुत स्वादिष्ट बनाया करते थे. एक बार तो खाने की मेज पर खिचड़ी खाते हुए ही अटल जी और तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के बीच संवाद स्थापित हो सके थे. डाइनिंग टेबल पर ही गहरे राजनीतिक संकट के समाधान की राह भी बातचीत से निकल गई थी.

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'देश का लोकतंत्र रहना चाहिए'
राजनीति के इस शीर्ष पुरुष के लिए देश हमेशा सर्वोच्च रहा. देश के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले अटल जी ने एक बार सदन में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था, ’’सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए. कुछ ऐसे ही थे हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,  25 दिसंबर 2020 को हम जिनकी 96वीं जयंती मना रहे हैं.

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