चंबल क्षेत्र में डकैतों की वजह से मशहूर रहे बीहड़ों की तस्वीर अब बदलने लगी है. भिंड का किसान अब परम्परागत खेती को छोड कर उन्नत और आधुनिक खेती करनी शुरू कर दी है. जिससे किसानों को कम जमीन में बड़ा मुनाफा भी मिल रहा है.
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प्रदीप शर्मा/भिंड: चंबल क्षेत्र में डकैतों की वजह से मशहूर रहे बीहड़ों की तस्वीर अब बदलने लगी है. भिंड का किसान अब परम्परागत खेती को छोड कर उन्नत और आधुनिक खेती करनी शुरू कर दी है. जिससे किसानों को कम जमीन में बड़ा मुनाफा भी मिल रहा है. किसानों की इस उन्नत खेती को देखने को लिए कई लोग भी खेत पहुंच रहे हैं.
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दरअसल मध्य प्रदेश के उत्तरी छोर पर बसा भिंड जिला इस जिले होकर गुजरने बाली चम्बल, क्बारी, सिंध, बेसली झिलमिल समेत पांच नदियों होने के चलते ज्यादातर इलाका बीहडी है. जमीन यहां कम ही है. यहां के किसान सदियों से परम्परागत खेती सरसों, गेहू, ज्वार, बाजरा, चना, मसूर की फसल ही करते आ रहे हैं. जिसके चलते यहां का किसान पिछ़डा बना रहा और गरीबी के साथ साथ कर्जे मे सदैब डूबा रहा. लेकिन अब यहां की नई पीढ़ी का युवा उन्नत तकनीक से लैस आधुनिक देसी-विदेशी फलों की खेती कर रहा है.
कई फलों के पौधे लगाए
यहां मेहगांव विधानसभा के सुनार पुरा गांव के रहने वाले सब इंस्पेक्टर शिवराम शर्मा ने अपने भाई रामशेवक शर्मा के साथ मिलकर आधुनिक खेती करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी से दो साल पहले वीआरएस लेकर आधुनिक खेती की शुरुआत की है. जिसमें उन्होंने सबसे पहले एक एकड़ खेत की जाली लगाकर फेंसिंग की उसके बाद उन्होंने एक नर्सरी संचालक से संपर्क कर ताइवानी पिंक अमरूद के बांग्लादेश से 300 पौधे मंगाए जिन को 12×12 फुट की कतारों में लगाया साथ ही कतारों के बीच में 1-1 हाइब्रिड पपीते के पौधे लगाए किनारो पर खेत के चारों ओर उन्होंने कटहल, मौसंबी, नीबू, आंवला, एप्पल बेर, लभेरा के पौधे लगाए है.
सब्जियों की फसलों से मिल रहा मुनाफा
इसके अलावा उन्होंने बीच कतारों में चना, मटर, आलू, टमाटर, मिर्च, प्याज इत्यादी सब्जियों की फसल लगाई है. एक तरफ शिवराम शर्मा फलों से लाभ हो रहा है तो बीच क्यारियों में होने वाली चना-मटर समेत सब्जियों की फसल से दोहरा मुनाफा हो रहा है. 18 महीने पहले लगाए गए पपीता अमरूद के पौधे डेढ़ साल में 4 बार फल दे चुके है. अब यह बगीचा प्रतिदिन दो क्विंटल से अधिक फल ओर सब्जियां दे रहा है. जिससे 5 से 7 हजार रुपये की प्रति आवक हो रही है.
3 से 4 लाख की लागत आई
शिवराम और रामशेवक शर्मा ने अपने बगीचे में किसी भी प्रकार के पेस्टिसाइड अथवा डीएपी, यूरिया खाद का उपयोग नहीं किया है. वह केवल अपने बगीचे में गोबर की खाद ही डालते हैं. फलों और सब्जियों के ऑर्गेनिक होने के चलते उनके बगीचे से आसपास के लोग बगीचे से ही ताजा फल और सब्जियां ले जाते है. पेड़ के पके हुए फल बाजार से महंगे दाम पर ग्राहक खरीद कर ले जाते हैं. उनको कभी अपनी फसल को बाजार में बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ी है. शिवराम शर्मा के भाई रामसेवक शर्मा बताते हैं कि उनके बगीचे में 3 से 4 लाख रुपये तक की लागत आई थी. साथ ही फलों को पक्षियों से फलों को नुकसान से बचाने के लिए उन्होंने पूरे खेत के ऊपर 1 लाख रुपये कीमत का जाल लगाया है. जिससे पक्षी फलों को नुकसान नहीं पहुंचा सकें.
बांग्लादेश से मंगवाये पौधे
रामसेवक शर्मा पुलिस विभाग में सबइंस्पेक्टर की नौकरी से वीआरएस लेने के बाद अपने भाई रामसेवक शर्मा से सलाह मशवरा कर कई दिनों तक इंटरनेट पर खोज करते रहे. उसके बाद उन्होंने मुरैना के एक नर्सरी संचालक सिकरवार से संपर्क किया और एक किस्म पिंक ताइवान अमरूद के पौधे बांग्लादेश से मंगवाये और अपने खेत में रोपे आज उनकी मेहनत रंग ला रही है. आधुनिक खेती मुनाफे का धंधा बन चुकी है. हालांकि शिवराम शर्मा का परिवार ग्वालियर रहता है और वह अपने परिवार समेत समय-समय पर बगीचे का निशा करने आते रहते हैं. बगीचे की पूरी देखभाल शिवराम शर्मा के भाई रामसेवक शर्मा और उनके बेटे करते हैं. शिवराम शर्मा के बगीचे को देखने के लिए प्रतिदिन इलाके के कई लोग आते हैं और उस से प्रेरित होकर वह भी आज खेती करने का प्लान कर रहे है.
कृषि विभाग भी विजिट करवा रहा
वहीं कृषि विभाग किसानों को ले जाकर आधुनिक खेती के तौर-तरीकों को दिखाने के लिए किसानों का विजिट करा रहे है. चम्बल इलाके के भिंड जिले का किसान अव आधुनिक खेती की और अग्रसर हो कर खेती को लाभ का धंधा बनाने जा रहा है. आने वाले समय में किसान अब और उन्नत खेती कर अपने आप को मजबूत बनाने की राह पर है.
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