गोटमार मेलाः झंडा टूटते ही पांढुर्ना और सांवरगांव के बीच जमकर बरसे पत्थर, 350 से ज्यादा घायल
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गोटमार मेलाः झंडा टूटते ही पांढुर्ना और सांवरगांव के बीच जमकर बरसे पत्थर, 350 से ज्यादा घायल

गोटमार मेले में सावरगांव और पांढुर्ना के बीच पत्थरबाजी का सिलसिला सुबह से ही जारी हो गया था. 

गोटमार खेल में 350 से ज्यादा घायल

छिंदवाड़ाः छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में हुए गोटमार मेले में 350 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में पांढुर्ना और सांवरगांव के लोगों ने एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाएं. जिसमें पत्थर लगने से लगातार लोग घायल हुए. शाम ढलने के साथ गोटमार खेल अपना शबाब पर पहुंच गया और दोनों तरफ से जमकर पत्थर चले. खेल रुकने तक कई लोग गंभीर रुप से घायल भी हुए. जिन्हें नागपुर रेफर किया गया है. 

30 लोग गंभीर रुप से घायल 
गोटमार मेले में सावरगांव और पांढुर्ना के बीच पत्थरबाजी का सिलसिला सुबह से ही जारी हो गया. जिसमें अभी आधिकारिक तौर पर अभी तक 350 लोग घायल हो चुके हैं, जबकि 30 गंभीर घायल हुए हैं जिन्हें पांढुर्ना के अस्पताल में प्राथमिक इलाज के लिए भर्ती कराया है. हालत में सुधार नहीं होने पर उन्हें छिन्दवाड़ा जिला अस्पताल या फिर नागपुर के लिए रेफर किया जाएगा. 

पांच बजे के बाद बंद हुआ खेल 
शाम के 5 बजे के बाद खेल बंद कराने की घोषणा की गई. शांति समिति के सदस्यों ने नदी के बीचोबीच लगे झंडे को तोड़कर चंडी माता मंदिर में चढ़ाया, जिसके बाद खेल समाप्त करने की घोषणा की गई. तब तक  350 से ज्यादा लोग घायल हो चुके थे. भारी पुलिस बल की मौजूदगी में दोनों ही तरफ से एक-दूसरे पर जमकर पथराव हुआ. सुबह 6 बजे ही सावरगांव और पांढुर्ना पक्ष के लोगों ने मां चण्डी की पूजा के बाद नदी में झंडा लगाया. इसके तुरंत बाद दोनों तरफ से लोगों ने पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. जबकि पूरे क्षेत्र में धारा-144 लागू थी. इसके बाद भी लोग नहीं रुके और जमकर पत्थर बरसे. खेल के दौरान पांढुर्ना में शांति बनी रहे इसके लिए डीएसपी- 10, निरीक्षक- 18, जिला पुल बल- 400 एवं एसएएफ की 2 टुकड़ी तैनात रही.

क्या है गोटमार मेले का इतिहास
छिंदवाड़ा के  खेले जाने वाले खूनी खेल गोटमार का इतिहास 300 साल पुराना बताया जाता है.जाम नदी के दोनों ओर के लोगों के बीच खेले जाने वाले इस खूनी खेल के पीछे एक प्रेम कहानी जुड़ी हुई है. पांढुर्ना का एक लड़का नदी के दूसरे छोर पर बसे गांव की एक लड़की से प्यार करता था. उनकी इस प्रेम कहानी पर दोनों गांवों के लोगों को एतराज था. एक दिन सभी के विरोध को झेलते हुए लड़का लड़की को गांव से भगा कर लौट रहा था. दोनों ने आधी नदी तक का ही सफर किया था कि दोनों ओर के ग्रामीणों को इसकी सूचना मिल गई और प्रेमी जोड़े पर दोनों तरफ से पत्थरों की बरसात होने लगी. इस पथराव में नदी के मझधार में ही दोनों की मौत हो गई. उसी के बाद से यह परंपरा चली आ रही है.

140 साल से भी ज्यादा समय से जारी है गोटमार मेला 
गोटमार नाम से मशहूर ये खेल करीब 140 साल से भी ज्यादा समय से जारी है. इसके बाद भी पांढुर्ना के लोग इसे छोड़ने तैयार नहीं हैं. हालांकि बाद में प्रशासन ने इस खेल को बंद करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन प्रशासन इसमें नाकाम साबित हुआ. तकरीबन 140 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी नहीं बदली. इस बार भी स्थानीय प्रशासन और कांग्रेस विधायक नीलेश उईके लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं है. 

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