15 साल के ओजस्व ने रचा कीर्तिमान, शतरंज के ग्रैंड मास्टर बनने की राह हुई आसान
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15 साल के ओजस्व ने रचा कीर्तिमान, शतरंज के ग्रैंड मास्टर बनने की राह हुई आसान

ग्वालियर के ओजस्व की उम्र महज़ 15 साल है लेकिन इस उम्र में वो शतरंज का मंझा हुआ खिलाड़ी बन चुका है.

15 साल के ओजस्व ने रचा कीर्तिमान

शैलेंद्र/ ग्वालियर:ग्वालियर के ओजस्व सिंह महज़ 15 साल की उम्र में शतरंज के मास्टर बन चुके हैं. विश्व शतरंज महासंघ ने वर्ल्ड रैंकिंग के आधार पर ओजस्व को कैंडिडेट मास्टर की उपाधि दी है. दुनिया की चौथे नंबर की उपाधि को हासिल करने वाले ओजस्व सिंह प्रदेश के पहले शतरंज खिलाड़ी बन गए हैं.

10 साल की उम्र में की शुरुआत
दो बार कॉमनवेल्थ गेम्स और यूरोप में चैम्पियनशिप में शतरंज खेल चुके ओजस्व सिंह को अब वर्ल्ड कप का इंतजार है. ओजस्व ने करीब पांच साल पहले महज़ दस साल की उम्र में शतरंज खेलना शुरू किया था.

कैंडिडेट मास्टर" की उपाधि मिली
ओजस्व ने जूनियर कैटेगरी में जिला, संभाग और राज्य स्तर पर कमाल का प्रदर्शन करते हुए चैम्पियनशिप जीती. इसके बाद नेशनल शतरंज चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. छोटी सी उम्र में ओजस्व 2 बार कामनवेल्थ गेम्स में भाग ले चुका है. वही ओजस्व ने सर्बिया में खेली गई यूरोपीय शतरंज चैम्पियनशिप में हॉलैंड के खिलाड़ी के साथ सयुंक्त विजेता बनने में कामयाबी हासिल की है. इस कामयाबी के बाद विश्व शतरंज महासंघ ने ओजस्व को "कैंडिडेट मास्टर" की उपाधि से नवाजा है.

ग्रैंड मास्टर बनने की राह भी आसान
दुनियाभर में चौथे नम्बर की उपाधि पाने वाला ओजस्व मध्यप्रदेश का पहला शतरंज खिलाड़ी बना है. इस उपाधि के मिलने के बाद ओजस्व को इंटरनेशनल टूर्नामेंट में आर्थिक परेशानियां नही होंगी. इससे ग्रैंड मास्टर बनने की राह भी आसान हो जाएगी. ओजस्व का सपना भारत की तरफ से वर्ल्ड कप में खेलना है.

बेटे के लिए पिता ने छोड़ी नौकरी
ओजस्व को लगातार मिल रही कामयाबी में उसके पिता राजेश सिंह का अहम रोल है. पिता राजेश मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे लेकिन बेटे के शतरंज के जुनून को देखते हुए तीन साल पहले नौकरी छोड़ दी. ग्वालियर वापस आ गए. बेटे को शतरंज में करियर बनाने में मददगार बन गए. विश्व शतरंज महासंघ से कैंडिडेट मास्टर की उपाधि मिलने के बाद पिता खुश है. ओजस्व ने शतरंज खेलना शुरू किया तो उनकी मां संजीता सिंह को असहज लगा. हर मां की तरह वो भी बेटे को बड़ा अफ़सर बनाने का सपना देखती हैं लेकिन ओजस्व का सपना शतरंज में मास्टर बनने का है. जब ओजस्व को कामयाबी मिलने लगी तो मां भी उसको प्रात्साहित करती हैं.

वर्ल्ड कप का सपना
नन्ही सी उम्र में शतरंज की दुनिया में नाम कमाने वाले ओजस्व का सपना वर्ल्ड कप में भारत के लिए मेडल हासिल करना है. ओजस्व की कामयाबी को देख कर लगता है उसका सपना जरूर पूरा होगा और वो वर्ल्ड कप में तिरंगा फहराएगा.

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