इंदौर का कांच मंदिर ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है. इसने हाल ही में अपने सौ साल पूरे किए हैं. इस मंदिर का पूरा इंटीरियर कांच से किया गया है.
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इंदौर: आप किसी भी धर्म को मानते हों, लेकिन कुछ धार्मिक स्थलों पर जाकर मन अपने आप ही शांत होता है. ये मंदिर न सिर्फ अध्यात्म का प्रतीक होते हैं बल्कि अपनी स्थापत्य काल, आर्किटेक्चर, बनावट और ख़ूबसूरती के लिए भी जाने जाते हैं. हर एक मंदिर पवित्रता और शांति का प्रतीक है. ऐसे ही देशभर में कई मशहूर मंदिर हैं, जो अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता हैं. ऐसा ही एक मंदिर अहिल्यानगरी यानी इंदौर में भी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं इंदौर के ''कांच मंदिर'' की.
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दरअसल इंदौर का कांच मंदिर ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है. इसने हाल ही में अपने सौ साल 11 जुलाई को पूरे किए हैं. इस मंदिर का पूरा इंटीरियर कांच से किया गया है यानी छत से लेकर, खंभे, दरवाज़े, खिड़कियां, झूमर सबकुछ कांच का बना हुआ है.
ये कांच बेल्जियम से बुलवाया गया था, जिसके कारीगर ईरान से आए थे
जैन समाज के इस मंदिर में कई शहरों से अलग-अलग समाज के लोग दर्शन करने आते हैं और दर्शन के साथ इसकी खूबसूरती को निहारते ही रह जाते हैं. मंदिर बनाने की शुरुआत करीब 1913 में इंदौर के 'सर सेठ हुकुमचंद' ने की थी जिसमें भगवान शांतिनाथ की मूर्ति काले संगेमरमर की और आदिनाथ और चन्द्रप्रभु भगवान की मूर्ति सफेद संगमरमर से बनाई हुई है.
इस इमारत में सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है
'सर सेठ हुकुमचंद' के वारिस कमलेश कासलीवाल ने ANI को बताया, कि100 साल पहले इसे बनाने जाने के लिए बेल्जियम से कांच बुलवाए गए थे. जिसे लगाने के लिए ईरान से कारीगर आए थे. वहीं पत्थर और उसके कारीगर राजस्थान से आए थे. पूरे मंदिर में बनाई गई अद्भुत कलाकृतियों में जैन धर्म के विषय में बताया गया है. मंदिर की स्थापना मेरे परदादा सर सेठ हुकुमचंद जी ने की थी. इसकी इमारत में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं है बल्कि चूने से पत्थर की जुड़ाई की गई है. इसका आर्किटेक्ट खुद सेठ हुकुमचंद ने किया था. सर सेठ हुकुमचंद ने कई मिलें और मन्दिर बनवाए हैं, उन्हें अंग्रेजों ने 'सर' नाम दिया था, कॉटन किंग कहलाने वाले सेठ हुकुमचंद का नाम न्यूयॉर्क के स्टॉक एक्सचेंज तक चलता था. मन्दिर में रखा सोने का रथ और पालकी महावीर जयंती पर निकाला जाता था.
ढाई सौ कारीगरों ने इसे बनाया
मन्दिर के पड़ोस में रहने वाले बुज़ुर्ग सुरेशचंद गंगवाल ने बताया कि कांच मन्दिर बनाने वाले सर सेठ हुकुमचंद ने अपना निजी मन्दिर बनाए जाने के उद्देश्य से इसे बनवाया था लेकिन ये सभी लोगों के लिए खुला था. करीब 1913 में इसे बनाए जाने की शुरुआत हुई. इसमें खुद का पैसा लगाकर इसे बनवाया जिसका खर्च करीब 1 लाख 62 हज़ार आया था. इसे करीब ढाई सौ कारीगरों ने बनाया है.
जैन धर्म के बारे में बताता मंदिर
इस कांच मंदिर की खासियत ये है कि ये छत से ज़मीन तक कांच का बनाया हुआ है. इसमें जैन समाज के सभी गुरु और मुनियों की कलाकॄति के साथ धर्म के विषय में भी खूबसूरत नक्काशी की गई है
इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो पाई इसलिए इसे चेतालय कहा जाता है. भगवान शांतिनाथ के काली संगरमरमर की मूर्ति राजस्थान से गई थीं.
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महावीर जंयती पर सोने का रथ निकलता है
बता दें कि सेठ ने मंदिर में सोने का रथ भी बनवाकर रखा गया है, जो आज भी महावीर जयंती पर निकाला जाता है. इस मंदिर को देखने आने वाले दर्शक और दर्शनार्थियों के लिए कलाकृति आश्चर्यचकित करने वाली है. अंदर आने के बाद लोग इसे काफी गौर से निहारते रह जाते हैं.
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