ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी.
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भोपाल: मध्यप्रदेश में उपचुनाव को एलान हो गया है. राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ग्वालियर चंबल इलाके में सबसे ज्यादा 16 सीट हैं इन पर सभी की नजर है. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इन उपचुनावों में स्थानीय मुद्दे, जातियां, लॉयल वोटर्स, नेताओं की पकड़ सभी की परीक्षा होगी.
सीट का नाम | दिमनी विधानसभा |
जनसंख्या | 214545 |
विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख जातियां/उप जातियां
जातियां-(राजपूत, ब्राह्मण, ओबीसी और दलित )
राजपूत- तोमर, सिकरवार
ब्राह्मण- मिश्रा, उपाध्याय, शर्मा , ऋषीश्वर
ओबीसी- बघेल ,राठौर, गुर्जर
अनुसूचित जाति- जाटव, माहौर, बाल्मीकि
सीट पर कौनसी जाति डॉमिनेट करती है?
दिमनी विधानसभा में तोमर राजपूतों का बाहुल्य है. रियासत के दौर में इनके 52,120 और 84 गाँव बंटे हुए थे, जिन्हें बावन- बीसा सौ- चौरासी के नाम से जाना जाता था. विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण होने के बाद ये गाँव अम्बाह, दिमनी, व गोहद विधानसभा का हिस्सा हो गये. अम्बाह व गोहद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. दिमनी भी चालीस साल आरक्षित सीट रही. इसलिए तोमर राजपूतों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद इस समुदाय के लोगों को चालीस साल प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं मिला.
जातियों का वोट पैटर्न क्या है?
बंटते हैं राजपूत वोट, ब्राह्मण करते हैं एकमुश्त वोटिंग
दिमनी विधानसभा का चुनाव जातिगत रंग में रंगा होता है. राजपूत और ब्राह्मण मतदाता दो खेमे में बंट जाते है. निर्णायक की भूमिका में अन्य जातियों के मतदाता होते हैं. ठाकुर मतदाताओं में भी तब विभाजन देखने को मिलता है जब एक ही जाति के दो या अधिक उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर जाते हैं.
दिमनी विधानसभा के पिछले तीन चुनावों( 2008, 2013, 2018) में एक भी बार ब्राह्मण उम्मीदवार चुनावी रण में आमने सामने नहीं आया है, लेकिन तीनों ही चुनावों में दो राजपूत उम्मीदवारों ने एक दूसरे के विरुद्ध ताल ठोकी है. इसका फायदा ब्राह्मण उम्मीदवार को 2013 और 2018 के चुनावों में मिला है और उन्होंने जीत दर्ज की है.
परंपरागत रूप से राजपूत और ब्राह्मण अपनी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देते हैं, लेकिन कुछ राजपूत मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार से नाराजगी के चलते अन्य जगह भी वोट कर देते हैं, लेकिन ब्राह्मण मतदाताओं में ऐसा देखने को नहीं मिलता है. वे मतदान में अपनी जाति फैक्टर को ही प्राथमिकता देते हैं.
दलितः कांग्रेस या BSP की तरफ झुकाव, नहीं जाते BJP की तरफ
दलित मतदाताओं की उम्मीदवारों के प्रति राय बदलती रही है. 2013 या उससे पहले इनके लिए भी दलित फैक्टर अहम हुआ करता था, लेकिन 2018 के चुनाव में इनका झुकाव कांग्रेस की तरफ था. गिर्राज डंडौतिया के खेमे में दलित वोटों की मौजूदगी से उनकी जीत की राह आसान हुई. दलित वोटर्स का झुकाव पिछले तीन विधानसभा चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की तरफ रहा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को इनका सहयोग कम ही नसीब हुआ है.
MP उपचुनाव की जंगः अम्बाह सीट; जिसके साथ राजपूत और ब्राह्मण, उसी के सिर जीत का सेहरा
OBC रुख स्पष्ट नहीं रहता है
ओबीसी वोटरों का झुकाव बीजेपी, कांग्रेस और बसपा तीनों की तरफ रहा है. 2008, 2013 और 2018 में इनके मतदाताओं का मन बदलता नजर आया है. बघेल, राठौर और गुर्जर मतदाताओं की राय उम्मीदवारों की राय अलग अलग रही है. राजपूत मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की तरफ अधिक रहता है, लेकिन इस बार समीकरण बदला हुआ है. बीजेपी की तरफ से संभावित उम्मीदवार गिर्राज डंडौतिया है. ब्राह्मण उम्मीदवार का बीजेपी की तरफ से मैदान में उतरना इसकी बड़ी वजह है. पिछले 3 विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो बीजेपी ने राजपूत उम्मीदवार को ही मैदान में उतारा है, लेकिन इस बार ब्राह्मण उम्मीदवार के बीजेपी की तरफ से मैदान में आ जाने से बीजेपी का राजपूत फैक्टर गड़बड़ गया है. दिमनी विधानसभा में सबसे ज्यादा राजपूत मतदाता हैं. बीजेपी की तरफ से गिर्राज का मैदान में उतरना है, लेकिन कांग्रेस और बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
जातियों का प्रमुख मुद्दा
राजपूत (ठाकुर) रोजगार और आरक्षण की चिंता
जातिगत आरक्षणः सबसे बड़ा मुद्दा है. खासकर गरीब राजपूत मतदाताओं को उस लाभ से वंचित रहना पड़ता है जिसे आर्थिक रूप से सशक्त अनुसूचित जाति या दलित आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। जैसे- गरीब सामान्य वर्ग को खाद्यान्न या राशन प्राप्त करने के लिये राशन कार्ड की जरूरत होती है जबकि अनुसूचित जाति के लिये राशन प्राप्त करने के लिये अनुसूचित जाति की पर्ची होना ही पर्याप्त है.
रोजगारः यहां के युवाओं के लिये रोजगार की बडी समस्या है. जिनके पास खेती करने के लिए जमीन और आय के कोई अन्य साधन नहीं है उनको बाहर का रुख करना पड़ता है.
झुकाव- राजपूत मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की तरफ ही रहता था. इसका बड़ा कारण यह है कि बीजेपी की तरफ से राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाता रहा है, लेकिन इस बार झुकाव शिफ्ट होने की पूरी उम्मीद है.
प्रमुख नेता- दिमनी विधानसभा में केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर प्रमुख नेता के रूप में रहे है. वे मुरैना से सांसद भी हैं.
ब्राह्मण रोजगार और आरक्षण की चिंता
जातिगत आरक्षणः सबसे बड़ा मुद्दा है. खासकर गरीब सवर्ण मतदाताओं को उस लाभ से वंचित रहना पड़ता है जिसे आर्थिक रूप से सशक्त अनुसूचित जाति या दलित आसानी से प्राप्त कर लेते हैं. जैसे- गरीब सामान्य वर्ग को खाद्यान्न या राशन प्राप्त करने के लिये राशन कार्ड की जरूरत होती है जबकि अनुसूचित जाति के लिये राशन प्राप्त करने के लिये अनुसूचित जाति की पर्ची होना ही पर्याप्त है.
रोजगारः यहां के युवाओं के लिये रोजगार की बडी समस्या है। जिनके पास खेती करने के लिये जमीन और आय के कोई अन्य साधन नहीं है उनको बाहर का रूख करना पड़ता है।
झुकाव- जातिगत समीकरण ही ब्राह्मण मतदाताओं के झुकाव का कारण रहे हैं. जिस पार्टी ने ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है. ब्राह्मणों का वोट वहीं पड़ा है.
प्रमुख नेता- दिमनी विधानसभा में ब्राह्मण का कोई विशेष नेता नहीं है. इनके जाति का उम्मीदवार ही इनके विश्वास की जमानत होता है.
दलितों को पट्टे की जमीन, दबंगों का डर और रोजगार की चिंता
नहीं मिली पट्टे की जमीनः दलितों के लिये सबसे बड़ी समस्या सरकार द्वारा सन् 2000 में जो पट्टे आबंटित किये गये थे उसकी है. दरअसल, अनुसूचित जाति के लोगों को यह पता ही नहीं है कि सरकार द्वारा उनकी आवंटित जमीन आखिर है कौन सी. जमीन चिन्हित न हो पाने से अक्सर यह समस्या खड़ी हो जाती है कि दबंग उनसे उस जमीन को अपनी कहकर हडप लेते हैं,
रोजगारः युवाओं के लिये रोजगार की समस्या बहुत बड़ी है.
दबंगों का डरः अनुसूचित जाति के लोगों के लिये यह भी एक बड़ी समस्या है कि उनकी बारातों को स्कूल या ऐसी जगहों पर ठहरने से रोक दिया जाता है जहां सवर्ण लोगों की बारात ठहरतीं हैं या ठहरी हों.
झुकाव- परंपरागत रूप से कांग्रेस की तरफ झुकाव है.
प्रमुख नेता- फिलहाल कोई प्रमुख नेता के रूप में नहीं दिखता है. बसपा भी दलित उम्मीदवार को छोड़कर सवर्ण उम्मीदवार पर दांव लगाने लगी है. बहुजन समाजवादी पार्टी से दूर होने की यह भी एक वजह है.
OBC जमीन, दबंगों का डर और रोजगार की चिंता
खेती के लिये जमीन का अभाव ओबीसी समुदाय के लिये भी है. लिहाजा आसपास रोजगार न होने से दूसरे राज्यों की तरफ रुख करना पड़ता है. मनरेगा में मजदूरों की जगह मशीनों ने ले ली है, तो यह रोजगार के मार्ग में रोड़ा है.
झुकाव- उम्मीदवार के लिहाज से इनका झुकाव बदलता रहता है.
प्रमुख नेता- कोई नहीं
पिछले तीन चुनावों में क्या परिणाम रहा?
दिमनी विधानसभा चुनाव- 2008
2008 में बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर ने जीत दर्ज की थी, वहीं दूसरी नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के रविन्द्र सिंह और तीसरे नंबर पर कांग्रेस के गिर्राज डंडौतिया रहे.
किस पार्टी को कितने पर्सेंट वोट
बीजेपी को 26.69%, बसपा को 26.41% और कांग्रेस को 24.40% मत प्राप्त हुए.
दिमनी विधानसभा चुनाव 2013
2013 में बहुजन समाजवादी पार्टी के बलबीर डंडौतिया विजयी रहे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस से रविन्द्र सिंह तोमर और तीसरे स्थान पर बीजेपी से शिवमंगल सिंह तोमर थे.
किस पार्टी को कितने परसेंट वोट
बसपा को 36.06%, कांग्रेस को 34.36% और बीजेपी को 26.86% वोट मिले.
दिमनी विधानसभा चुनाव 2018
2018 में कांग्रेस से गिर्राज डंडौतिया विजयी रहे. दूसरे नंबर पर बीजेपी से शिवमंगल सिंह और तीसरे स्थान पर बसपा से छतर सिंह तोमर रहे.
किस पार्टी को कितने पर्सेंट वोट
कांग्रेस को 49.23%, बीजेपी 36.16%, और बसपा को 10.23%. वोट मिले.
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