Holi 2024: महाकाल की नगरी उज्जैन में 5100 कंडों की विशेष होली जलेगी. यह वही स्थान है राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि चकमक पत्थरों से होली जलाते थे. आज भी उसी परंपरा का निर्वहन यहां किया जाता है.
भारत में सारे त्योहारों की शुरुआत महाकाल के दरबार से होती है. यहां होलिका दहन विशेष होता है. माना जाता है यह परंपरा राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि के समय से चल रही है जब वो चकमक पत्थरों से होली चलाते थे. आइये जानें यहां की परंपरा
धर्मनगरी उज्जैन में हर एक पर्व को मनाने का अपना अलग अंदाज है और उसका एक खास महत्व है. 25 मार्च को होली पर्व मनाया जाना है और उससे पहले होलिका दहन किया जाएगा.
शहर के सिंहपुरी ने पर्यावरण बचाने का खास संदेश देती 5100 कंडों की विशेष होलिका का दहन होगा.
यह वही स्थान है जहां राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि चकमक पत्थरों से होलिका जलाते थे. इसमें किसी भी तरह के ज्वलनशील पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता.
स्थानीय निवासी व गुरु मंडली से रूपम जोशी ने बताया कि होलिका के बीच एक खास ध्वज लगाया जाता है जो भक्त प्रहलाद के होने का एहसास कराता है.
दावा है कि होलीका के जलने के बाद ध्वज सुरक्षित रहता है और उड़ कर भक्तों के ऊपर आ जाता है. दावा ये भी किया जाता है कि होलिका के जलने के बाद हड्डियों के अवशेष यहां पर सुबह-सुबह मिलते हैं. इस रहस्य के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया.
तड़के 4:00 बजे होलिका का दहन किया जाएगा. इसके लिए वेद मंत्रों के आधार कंडों को बनाया जाता है. इसमें ध्यान रखा जाता है कि ये गाय के गोबर से ही तैयार किए गए हों.
जी मीडिया के लिए उज्जैन से राहुल सिंह राठौड़ की रिपोर्ट
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