Famous Shiva Temples of Chhattisgarh: सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है.छत्तीसगढ़ राज्य में भी कई प्राचीन और प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं.इनमें कुलेश्वर मंदिर, पातालेश्वर/केदारेश्वर, सुरंग टीला, भूतेश्वरदेव, लक्ष्मणेश्वर और भोरमदेव मंदिर प्रमुख हैं. इन मंदिरों में भगवान शिव के दर्शन करने से मन को शांति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
सावन के महीने में, छत्तीसगढ़ भर के शिव मंदिर धार्मिक उत्साह से भरे होते हैं. इस दौरान मंदिरों में शिव के शंख की गूंज सुनाई देती है. बड़ी संख्या में भक्त अपनी प्रार्थना करने और आशीर्वाद लेने आते हैं.
यदि आप सावन के दौरान छत्तीसगढ़ की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ प्राचीन शिव मंदिरों के दर्शन जरूर करें.
छत्तीसगढ़ सावन के महीने में भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत ही खास बन जाता है. छत्तीसगढ़ में अनेक प्राचीन और प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं. ये मंदिर अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं.सावन के महीने में इन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
रायपुर जिले के राजिम कस्बे में स्थित कुलेश्वर मंदिर 9वीं शताब्दी का एक प्राचीन स्थल है. महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के संगम पर स्थित यह मंदिर मूल रूप से कमल क्षेत्र और पद्मपुर के नाम से जाना जाता था. ऊंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर में गर्भगृह, अंतराल और मंडप है, जो इसके समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है.
महासमुंद जिले के सिरपुर में सुरंग टीला मंदिर, 7वीं शताब्दी का पवित्र शिव मंदिर है. पश्चिम की ओर मुख किए हुए इस मंदिर में पांच गर्भगृह हैं, जिनमें अलग-अलग रंगों के शिवलिंग हैं- सफेद, काला, लाल और पीला. एक गर्भगृह भगवान गणेश को समर्पित है.
बिलासपुर जिले में स्थित पातालेश्वर/केदारेश्वर महादेव मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है. सोमराज नामक ब्राह्मण द्वारा कलचुरी काल में निर्मित यह मंदिर 10वीं से 13वीं शताब्दी के बीच का है. बिलासपुर शहर से 32 किमी दूर नगर पंचायत मल्हार में स्थित यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला की झलक पेश करता है.
गरियाबंद जिले के मरौदा में स्थित भूतेश्वरदेव महादेव मंदिर घने जंगलों में बसा है. यहां का शिवलिंग 16 फीट ऊंचा और 21 फीट की परिधि वाला है. दावा किया है कि यह शिवलिंग लगातार बढ़ रहा है.
जांजगीर जिले के संस्कारधानी शिवरीनारायण के पास खरौद में स्थित लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर में एक लाख छिद्रों वाला शिवलिंग है, जिसके कारण इसे लक्षलिंग नाम दिया गया है. भक्तों का मानना है कि एक लाख चावल के दाने चढ़ाने से उनकी मनोकामना पूरी होती है.
कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 किमी दूर स्थित भोरमदेव मंदिर एक हजार साल से भी अधिक पुराना है. मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर का शिवलिंग है, जिसके साथ एक पंचमुखी सर्प प्रतिमा, एक नृत्यरत गणेश, एक ध्यानमग्न राजसी आकृति और पूजा करते हुए एक जोड़ा है.
धमतरी के पास रुद्री में स्थित रुद्रेश्वर महादेव मंदिर एक महत्वपूर्ण शिव मंदिर है, जहां भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान पूजा की थी. महानदी के तट पर स्थित यह मंदिर हजारों साल पुराना इतिहास समेटे हुए है. स्वयंभू शिवलिंग भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए प्रसिद्ध है, जो सावन के दौरान हजारों की संख्या में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर देवबलौदा गांव में स्थित प्राचीन शिव मंदिर, जमीन से निकले अपने अनोखे शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है. दावा किया जाता कि 12वीं-13वीं शताब्दी के कलचुरी काल में निर्मित इस मंदिर का निर्माण एक ही व्यक्ति ने छह महीने में किया था.
गवन शिव मंदिर, जिसे कालेश्वरनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जांजगीर में हसदेव नदी के तट पर स्थित है. यह मंदिर बड़ी संख्या में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
सावन के महीने में बिलासपुर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी में प्राचीन अष्टमुखी शिव मंदिर एक प्रमुख आकर्षण है, जहां आशीर्वाद लेने और प्रार्थना करने के लिए भीड़ उमड़ती है.
सिरपुर में शिव मंदिर से 150 मीटर की दूरी पर स्थित यह तालाब दलदली भूमि होने के बावजूद पूरे साल पानी से भरा रहता है. एक ही पत्थर से निर्मित इस मंदिर में दो गुप्त देवता आदि कल्पेश्वर महादेव और पशुपति सर महादेव विराजमान हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे झरनों में निवास करते हैं.
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