एक मां ही ऐसा कर सकती है! बेटी चल सके इसलिए मां ने दे दिया अपने शरीर का हिस्सा
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एक मां ही ऐसा कर सकती है! बेटी चल सके इसलिए मां ने दे दिया अपने शरीर का हिस्सा

परिवार वालों ने शुरुआत में इस चोट को नजर अंदाज किया, जिसकी वजह से मासूम की हड्डियों में 12 से 14 सेमी का इन्फेक्शन फैल गया. बीमारी बढ़ने के बाद कशिश की जांघ की हड्डियां गलने लगी थीं, पैर में जबरदस्त सूजन के साथ शरीर का तापमान भी काफी बढ़ चुका था.

मां ने बच्ची के लिए दी अपनी हड्डी

नई दिल्ली: कहते हैं न कि इस दुनिया में मां से बड़ा 'दिल' किसी का नहीं हो सकता. मां ही ऐसी है जो अपने बच्चे के लिए खुद की जान भी दांव पर लगा देती है. दिल्ली के एक अस्पताल से कुछ ऐसा ही एक केस सामने आया. यहां एक मां ने अपनी बच्ची के लिए वो किया जो सिर्फ एक मां ही कर सकती है.

  1. गंभीर बीमारी से पीड़ित है मासूम
  2. मां ने अपनी हड्डी का हिस्सा दिया
  3. दस साल की मासूम का ऑपरेशन

चल नहीं सकती 10 साल की मासूम

दरअसल द्वारका के आकाश हेल्थकेयर में 10 साल की बच्ची कशिश बीते 1 साल से खुद के पैरों पर चल-फिर सकने में सक्षम नहीं थी. कशिश ऑस्टियोमायलिटिस जैसी गंभीर समस्या से पीड़ित थी. ऑस्टियोमायलिटिस एक तरह की हड्डियों का इन्फेक्शन है. दस साल की बच्ची कशिश बिहार की रहने वाली है और काफी वक्त पहले उसकी फीमर बोन में चोट लग गई थी.

तब परिवार वालों ने इस चोट को नजर अंदाज किया, जिसकी वजह से उसकी हड्डियों में 12 से 14 सेमी का इन्फेक्शन फैल गया. बीमारी बढ़ने के बाद कशिश की जांघ की हड्डियां गलने लगी थीं, पैर में जबरदस्त सूजन के साथ शरीर का तापमान भी काफी बढ़ चुका था.

कैसे कामयाब हुआ रेयर ट्रीटमेंट?

आकाश के डॉक्टर्स ने जांच के बाद इस खतरे को भांपते हुए बोन प्लांट को बेहतर विकल्प समझा. समस्या अब बोन डोनर की थी. ऐसे में पेशेंट की मां ने खुद की हड्डी का हिस्सा अपनी बेटी को देने का फैसला किया. ऐसे मामलों में क्लोजेस्ट इम्यून सिस्टम मां और बच्चे का सबसे ज्यादा होता है. इसलिए मां की हड्डी का छोटा हिस्सा बेटी की जांघ में लगाया गया.

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करीब 6 हफ्ते के गैप के साथ दो हिस्सों में इस सर्जरी को अंजाम दिया गया. फिलहाल कशिश एहतियातन सहारे के साथ चल-फिर रही है. तकरीबन एक साल तक इस मामले में स्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग की जरूरत होती है.

डॉक्टर्स के मुताबिक 14-15 साल के बच्चों में ये परेशानी तो आम है मगर इसका डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट काफी रेयर है. ऑस्टियोमायलिटिस के इलाज के और भी विकल्प हैं, मगर उनके सफल होने की संभावनाएं बेहद कम होती हैं.

क्या है डॉक्टर्स की राय?

चीफ ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर आशीष के मुताबिक बच्चों की चोट को अक्सर पैरेंट्स नजर अंदाज कर देते हैं और यही लापरवाही बच्चों को जिंदगी भर के लिए शारीरिक रूप से अपंग बना सकती है. आंकड़ों के मुताबिक ऑस्टियोमायलिटिस के 10 हजार मामलों में 2 मरीज ही इस समस्या को गंभीरता से लेते हैं, ज्यादातर केस में इसे नजर अंदाज कर दिया जाता है.

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