Darul Uloom Deoband decree on beard: सहारनपुर का दारुल उलूम देवबंद ने मदरसे में पढ़ने वाले सभी छात्रों को लंबी दाढ़ी रखने का फरमान जारी किया है. इस फरमान पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. अब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी इस पर संज्ञान लेने की बात कही है.
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Reaction on beard decree in Darul Uloom Deoband: सहारनपुर के इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. असल में दारुल उलूम की ओर से हाल में मदरसे में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक गाइडलाइंस जारी की गई है, जिसमें कहा गया हैं कि जो छात्र दाढ़ी नहीं रखेगा या दाढ़ी को छोटा करवाएगा, उसे मदरसे से बाहर निकाल दिया जाएगा. दारुल उलूम के इस फैसले के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है. माना जा रहा है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग इस गाइडलाइंस पर दारुल उलूम के खिलाफ एक्शन ले सकता हैं.
शिकायत मिलने पर कार्रवाई करेगा आयोग
बुधवार को यूपी के बागपत जिले में पहुंची अल्पसंख्यक आयोग की सदस्या कुमारी सैयद शहजादी ने कहा कि अगर मदरसे का कोई छात्र इसकी शिकायत करता है तो उस पर आयोग बैठक करके फैसला ले सकता है. कुमारी सैयद शहजादी ने कहा कि छात्र की शिकायत के बाद आयोग संबंधित जिले के कलेक्टर और एसपी से पूरे मामले की रिपोर्ट तलब करेगा और उसके बाद ही मामले में उचित फैसला लिया जाएगा.
दारूल उलूम का फैसला सही: सपा
वहीं समाजवादी पार्टी ने दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) के कट्टरपंथी फैसले का समर्थन किया है. मुरादाबाद के सपा सांसद एसटी हसन ने कहा, 'देवबंद एक धार्मिक मदरसा है, जिसमें मजहब का पालन करना सिखाया जाता है. वहां का अपना एक बॉडी कोड है, जो सुन्नतों के हिसाब से है. जब ये लोग मजहब को पेश करेंगे और इनकी दाढ़ी (Beard) नहीं होंगी तो वो प्रैक्टिकल बात नहीं होगी. इसलिए मैं समझता हूं कि उन्होंने सही किया है.'
'मदरसे का कानून तोड़ने पर सजा'
दारुल उलूम देवबंद के फैसले पर बाराबंकी के मुल्ला-मौलवी भी समर्थन में आ गए हैं. बाराबंकी के मौलवियों ने कहा कि दाढ़ी रखना इस्लाम का अंदरूनी मामला है. इस पर बात नहीं होनी चाहिए. अगर मदरसे के मौलवियों ने बॉडी को लेकर कोई उसूल तय किया है तो उसे तोड़ने पर सजा तो जरूर मिलेगी. मौलवियों ने साफ तौर पर कहा कि दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) इस्लामिक शिक्षा का सबसे बड़ा संस्थान है और उसमें एडमिशन लेने वाले छात्रों से उनके नियम और शर्तों को लेकर हस्ताक्षर कराए जाते हैं. ऐसे में अगर कोई छात्र संस्थान के नियम कानून तोड़ेगा तो उसे सजा तो मिलेगी ही.
सूफी इस्लामिक बोर्ड ने जताया ऐतराज
वहीं दारुल उलूम (Darul Uloom Deoband) में 4 छात्रों को दाढ़ी (Beard) न रखने निष्कासन के फैसले का सूफ़ी इस्लामिक बोर्ड ने विरोध किया है. संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता कशिश वारसी ने ऐतराज जताते हुए इसे तालिबानी फैसला बताया. उन्होंने कहा, दाढ़ी इस्लाम मे फ़र्ज नहीं है बल्कि सुन्नते मोकदा है. इस्लाम इसकी इजाजत देता है कि कोई अगर दाढ़ी रखने में कोई परेशानी हो तो वो वह इसे बनवा सकता है. जब आप सही हो जाएं तो आप फिर से इसे रख सकते हैं.
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