किसी भी चीज का अधूरा ज्ञान बेहद घातक होता है. केंद्र सरकार ने गुरुवार को कृषि सुधार की ओर कदम बढ़ाते हुए तीन कृषि सुधार बिल लोकसभा में पारित किए.
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नई दिल्ली: किसी भी चीज का अधूरा ज्ञान बेहद घातक होता है. केंद्र सरकार ने गुरुवार को कृषि सुधार की ओर कदम बढ़ाते हुए तीन कृषि सुधार बिल लोकसभा में पारित किए. जिसमें किसानों की दोगुनी आय, फसल का उचित मूल्य मिलने के साथ उत्पादन और कृषि के रिस्क को अकेले किसान पर न डालने वाले विधेयक शामिल थे.
इन तीनों विधेयकों को मिला दिया जाए तो ये एक तरह का कृषि रिफॉर्म ही है. लेकिन विपक्ष को ये सुधार कितना समझ में आए या नहीं आए, पता नहीं, लेकिन किसानों को आगे करके विरोध शुरू हो गया. विपक्ष की ओर से कहा गया कि इससे मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानि MSP व्यवस्था खत्म हो जाएगी और किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य नहीं मिलेगा. जबकि हकीकत इसके ठीक उलट है.
जो मोदी सरकार बीते पांच सालों से सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत रही है. अब उस पर ही इस व्यवस्था को खत्म करने का आरोप लग रहा. 2006 की स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली नेशनल कमीशन ऑफ फार्मर्स ने सरकार को कुछ सुझाव सौंपे थे. इन सुझावों के आधार पर सरकार ने 2018 में किसानों की MSP को डेढ़ गुना बढ़ाया था. MSP का मतलब होता है कि किसान को सामान्य परिस्थितियों में उसकी फसल की एक तय न्यूनतम कीमत मिलेगी.
अब जरा आंकड़ों पर नजर डालिए, क्योंकि आंकड़े झूठ नहीं बोलते. आपको इन आंकड़ों से MSP को लेकर फैलाए जा रहे विपक्ष के फेक न्यूज का पता चलेगा.
बीते 5 सालों में किसानों को MSP भुगतान
1. 2009-10 से 2013-14 के मुकाबले बीते पांच सालों में धान के लिए किसानों का MSP भुगतान 2.4 गुना बढ़ा है. पिछले पांच सालों में MSP भुगतान 2.06 लाख करोड़ के मुकाबले 4.95 लाख करोड़ हुआ है.
2. 2009-10 से 2013-14 के मुकाबले बीते पांच सालों में गेहूं के लिए MSP भुगतान 1.77 गुना बढ़ा है. बीते पांच सालों में MSP भुगतान 1.68 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 2.97 लाख करोड़ रुपये रहा है.
3. बीते पांच सालों में दलहनों के लिए MSP भुगतान 75 गुना तक बढ़ा है. इस दौरान 49,000 करोड़ रुपये का MSP भुगतान किया गया जो कि 2009-10 से 2013-14 के दौरान सिर्फ 645 करोड़ रुपये था
4. बीते पांच साल के दौरान ऑयलसीड्स और गरी के लिए MSP की भुगतान 10 गुना बढ़ा है, 2009-10 से 2013-14 जो MSP भुगतान सिर्फ 2,460 करोड़ रुपये था, वो बीते पांच सालों के दौरान बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
मोदी सरकार के पहले टर्म यानी 2014-15 से लेकर अबतक यानी 2020-21 तक MSP कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जिससे किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिली है.
5 सालों में बढ़ी फसलों की MSP
MSP (रबी फसल)
फसल MSP अब (/क्विंटल) MSP पहले (/क्विंटल) बढ़ोतरी
गेहूं 1,925 1,450 32.7%
जौ 1,525 1,150 32.6%
चना 4,875 3,175 53.5%
मसूर दाल 4,800 3,075 56.09%
सरसों 4,425 3,100 42.7%
5 सालों में बढ़ी फसलों की MSP
MSP (खरीफ)
फसल MSP अब (/क्विंटल) MSP पहले (/क्विंटल) बढ़ोतरी
धान 1,868 1,360 37.3%
ज्वार 2,640 1,550 70.3%
बाजरा 2,150 1,250 72%
मक्का 1,850 1,310 41.2%
तुअर 6,000 4,350 37.9%
मूंग 7,196 4,600 56.4%
मूंगफली 5,275 4,000 31.8%
कॉटन 5,515 3,750 47.06%
विपक्ष को किसानों से ज्यादा शायद उन बिचौलियों की चिंता है जो बीच में ही किसानों का हक मार जाते हैं. विपक्ष का कहना है कि इस नीति के लागू होने के बाद मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी. यह व्यवस्था खत्म हुई तो राज्यों को मंडी शुल्क नहीं मिलेगा. जबकि सरकार साफ कर चुकी है मंडी व्यवस्था बनी रहेगी, इस पर कोई असर नहीं पड़ने दिया जाएगा. साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी इस कानून के तहत कोई खतरा नहीं है.
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