Vikram Batra Birth Anniversary 9 September : आज भारत के एक महानायक अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की बर्थ एनिवर्सरी है. 23 साल पहले कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल की चोटी Point 4875 को पाकिस्तान के कब्ज़े से खाली करवाते हुए शहीद हो गए थे. भारत माता के अमर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा सिर्फ 24 वर्ष के थे. कैप्टन विक्रम बत्रा से आज आप ये सीख सकते हैं कि जब आपका सामना जीवन की चुनौतियों से हो तो इन चुनौतियों की चोटियों पर जीत हासिल करके आप भी उनकी तरह गर्व से कह सकें- 'ये दिल मांगे मोर.'  


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अमर गाथा - 'मैं तिरंगा फहरा कर लौटूंगा या तिरंगे में लिपट कर लौटूंगा'


वर्ष 1999 में जब पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में घुसपैठ करके वहां की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया था और इसके बाद जब पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने के लिए करगिल युद्ध शुरू हुआ तो उस वक्त विक्रम बत्रा अपनी कमांडो ट्रेनिंग करके पूरी करके होली की छुट्टी पर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में अपने घर आए थे. युद्ध शुरू होने की सूचना मिलने पर कैप्टन बत्रा से उनके एक मित्र ने कहा था कि अब उन्हें भी जाना होगा, इसलिए वो अपना ख्याल रखें और सतर्क रहें. इस पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने ये कहा था कि चिंता ना करो, मैं तिरंगा फहरा कर लौटूंगा या तिरंगे में लिपट कर लौटूंगा, लेकिन मैं वापस आऊंगा ज़रूर. उनके ये शब्द आज भी लोग याद करते हैं.



पहली बड़ी लड़ाई


कारगिल युद्ध से पहले कैप्टन विक्रम बत्रा कश्मीर में तैनात 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स  में तैनात थे. घर से ड्यूटी पर लौटने के 18 दिन के बाद ही उनकी यूनिट को 19 जून 1999 को ये आदेश मिला था कि कारगिल की चोटी Point 5140 को पाकिस्तान के कब्ज़े से खाली करवाना है. ये कारगिल युद्ध में उनकी पहली बड़ी लड़ाई थी.


Tiger Point 5140 फतह 


करगिल की चोटियों पर बैठी पाकिस्तानी सेना से लड़ाई आसान नहीं थी लेकिन अचूक रणनीति और वीरता से कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी यूनिट ने Point 5140 की लड़ाई जीत ली और वहां पर फिर से तिरंगा फहरा दिया. इस चोटी को बाद में Tiger Point नाम दिया गया. विक्रम बत्रा के नेतृत्व में ये ऐसी लड़ाई थी, जिसमें उनकी यूनिट के किसी भी सैनिक की जान नहीं गई.


ये दिल मांगे मोर...


Point 5140 की जीत ने भारतीय सेना में ऐसा जोश भर दिया कि फिर कारगिल की एक के बाद एक चोटियों पर तिरंगा लहराने लगा. पहली बड़ी जीत के बाद विक्रम बात्रा ने जो शब्द कहे थे, वो उस वक्त ही नहीं, आज भी गूंजते हैं. और ये शब्द हैं- ये दिल मांगे मोर. विक्रम बत्रा के ये शब्द, पूरे कारगिल युद्ध का नारा बना गया था.


Point 4875 के लिए बनाई रणनीति


इसके बाद 29 जून 1999 को कारगिल की चोटी Point 4875 को खाली करवाने की तैयारी हुई. इसके लिए फिर से कैप्टन विक्रम बात्रा की टीम को बुलाया गया. ये लड़ाई भी बहुत मुश्किल थी, क्योंकि ये जगह 17 हज़ार फीट की ऊंचाई पर थी और Point 4875 बहुत तीखी ढलान वाली चोटी थी, जहां पर चढ़ाई करके युद्ध लड़ना और ऊपर बैठे दुश्मन को मार गिराना, बहुत ही कठिन था. लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने ये ठान लिया था कि इस चोटी पर भी तिरंगा लहरा कर लौटना है. कैप्टन विक्रम बत्रा शेर शाह के नाम से जाने जाते थे. चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने ये कहा था कि शेरशाह ऊपर मत आना, वर्ना तुम वापस नहीं जाओगे. इस पर कैप्टन बत्रा ने जवाब दिया था कि एक घंटे में पता चल जाएगा कि कौन जाएगा और कैसे जाएगा.


देश के लिए सर्वोच्च बलिदान


ऊपर से पाकिस्तानी सेना की भयानक गोलाबारी के बीच भी कैप्टन विक्रम बात्रा, दुश्मन तक पहुंच गए और अपने साथी कैप्टन अनुज नैय्यर और दूसरे वीर जवानों के साथ मिलकर पाकिस्तान के बंकर और पोस्ट नष्ट कर दिए. इसी भयानक लड़ाई में 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के पांच जवानों को मार गिराते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया.


मरणोपरांत परम वीर चक्र


शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को उनके इस सर्वोच्च बलिदान और इस पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को वीरता का सर्वोच्च सम्मान, मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया. और उनके शहीद साथी कैप्टन अनुज नैय्यर को वीरता का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, मरणोपरांत महावीर चक्र दिया गया.


जहां शहीद हुए वो जगह अब बत्रा टॉप 


कारगिल की जिस चोटी पर कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हुए थे, उसे अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है. कैप्टन विक्रम बत्रा के अंतिम संस्कार पर उनकी मां ने एक बात कही थी कि भगवान ने शायद इसलिए उन्हें जुड़वा बेटे दिए थे कि अगर एक चला जाए तो दूसरे को देखकर वो हमेशा याद आए.