भारत में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी मरीज के कमजोर दिल को सहारा देने के लिए उसे आर्टिफिशियल हार्ट (Artificial Heart) लगाया गया, और फिर कुछ वक्त के बाद मरीज का अपना दिल ही काम करने लगा और इतना अच्छा काम करने लगा कि आर्टिफिश्यल हार्ट को वापस निकाल लिया गया.
अब 56 साल के इराकी मरीज ने डॉक्टर साहब के नाम पर अपने बेटे का नाम अजय कौल रखा है. क्योंकि जवाद के मुताबिक इन्हें जीवन देने वाले डॉक्टर को वो भगवान मानते हैं और उनकी वजह से ही वो पिता बन सके हैं.
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल (Fortis Hospital) के डॉक्टरों ने जवाद मोहम्म्द (Jawad Mohammed) के दिल का ऑपरेशन किया. मकसद था दो साल पहले लगाया गया आर्टिफिश्यल हार्ट बाहर निकालना. ऐसा रेयर केस में ही होता है कि मरीज का हार्ट फेल होने के बाद वापस इतना फिट हो जाए कि वो अपने आप काम करने लगे और उसे किसी सपोर्ट की जरूरत न पड़े.
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय कौल ने बताया, 'तीन साल पहले, दिल की बीमारी के इलाज के लिए जवाद मोहम्मद, इराक से भारत आए थे. इनका हार्ट फेल हो चुका था यानी वो खुद से शरीर को खून की सप्लाई के लायक नहीं रह गया था. डॉक्टर्स ने उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह दी, लेकिन कई महीनों तक वेटिंग लिस्ट पर रहने के बाद भी डोनर नहीं मिला. हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए किसी ब्रेन डेड व्यक्ति के हार्ट की जरूरत होती है और वो भी 6 घंटे के अंदर लगाना जरूरी होता है. जुलाई 2018 में डॉक्टरों ने इन्हें आर्टिफिशियल हार्ट यानी LVAD लगाया. लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्टिड डिवाइस यानी LVAD ऐसे लोगों में लगाया जाता है जिनका दिल इतना कमजोर हो चुका हो और खून पंप करने की क्षमता न हो.
जब ये 2019 में एक साल बाद दोबारा दिखाने आए तो डॉक्टरों ने देखा कि मरीज का अपना दिल काम कर रहा था. उसके बाद डॉक्टरों ने कुछ वक्त के लिए आर्टिफिश्यल हार्ट की पावर सप्लाई रोककर चेक किया. हार्ट बाहर एक बैटरी से जुड़ा होता है जिसे रोजाना चार्ज करना होता है. उसी तरह जिस तरह आप अपने फोन को चार्ज करते हैं. 2 साल तक ये चेकिंग की गई. इन दो सालों में मरीज का दिल और बेहतर काम करने लगा. मरीज चाहते थे कि आर्टिफिशियल हार्ट निकाल दिया जाए. मरीज का अपना हार्ट अब 50 प्रतिशत की क्षमता पर काम कर रहा है. ये पूरी तरह स्वस्थ लोगों सो थोड़ा ही कम लेवल है.
आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अब तक 130 डिवाइस लग चुके हैं. लेकिन किसी भी केस में इस वजह से मशीन को बाहर नहीं निकाला गया कि दिल की फिटनेस पूरी तरह लौट आई हो. कई मामलों में डिवाइस लगने के बाद हार्ट की क्षमता लौट आती है. क्योंकि सपोर्ट मिलने से दिल पर पड़ने वाला प्रेशर घट जाता है. दिल आराम की भूमिका में आ जाता है और वो वापस ठीक होने लगता है.
एक आर्टिफिशियल हार्ट की कीमत भारत में 70 लाख से 90 लाख रुपये के बीच आती है. इसे बड़े पैमाने पर दो कंपनियां Abott और Medtronics बनाती हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया (Make In India) अभियान के बाद कई मेडिकल उपकरण भारत में बनने लगे हैं. डॉक्टरों को उम्मीद है कि जल्द ही दिल को बचाने वाला ये उपकरण भी भारत में बनने लगेगा और इसकी कीमत कम हो सकेगी.
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