8 जनवरी की शाम को धनिष्ठा अपने घर की पहली मंजिल पर खेलते हुए नीचे गिर गई और बेहोश हो गई. उसे तुरंत सर गंगा राम अस्पताल लाया गया. लेकिन डॉक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बच्ची को बचाया नहीं जा सका.
11 जनवरी को डॉक्टरों ने बच्ची को ब्रेन डेड घोषित कर दिया. लेकिन मस्तिष्क को छोड़कर उसके सभी अंग ठीक से काम कर रहे थे. शोकाकुल होने के बावजूद बच्ची के माता-पिता आशीष कुमार और बबीता कुमारी ने अस्पताल के अधिकारियों से अपनी बच्ची के अंगदान की इच्छा जाहिर की.
बच्ची के पिता आशीष कुमार ने कहा कि अस्पताल में रहते हुए हमने कई ऐसे मरीज देखे जिन्हें अंगों की सख्त आवश्यकता है. हालांकि हम अपनी धनिष्ठा को खो चुके थे, लेकिन हमने सोचा कि अंगदान से न सिर्फ उन मरीजों को नया जीवन मिलेगा, हमारी बच्ची की यादें भी इसके जरिए इस दुनिया में रहेंगी.
सर गंगा राम अस्पताल के डॉ. डी. एस. राणा ने कहा कि परिवार का यह नेक काम वाकई तारीफ के काबिल है और दूसरे लोगों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए. 0.26 प्रति मिलियन की दर से, भारत में अंगदान की दर सबसे कम है. अंगों की कमी के कारण हर साल औसतन 5 लाख भारतीय मारे जाते हैं.
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