आखिर मां आनंद शीला हैं कौन. उनका पूरा नाम शीला अंबरलाल पटेल है. साल 1949 में गुजरात के वडोदरा मैं उनका जन्म हुआ. मां आनंद शीला रजनीश मूवमेंट की प्रवक्ता रही हैं और साल 1981-1985 तक ओशो की सेक्रेटरी.
नई दिल्ली: मां आनंद शीला का नाम जीवन भर विवादों में घिरा रहा. उनके रजनीश (ओशो) के साथ जुड़ाव ने पूरी दुनिया की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. उनके बारे में पूरी दुनिया के लोग जानने को उत्सुक भी रहे. यही वजह है कि नेटफ्लिक्स ने उनपर दो मिनी सीरीज भी बनाई. नेटफ्लिक्स के ‘Wild Wild Country’ और ‘Searching for Sheela’ की खूब चर्चा हुई. मौजूदा समय में वो पूरे 34 साल बाद भारत आई हैं. ऐसे में उनका साक्षात्कार किया गुजराती मिड-डे ने, जिसमें उन्होंने बहुत सारे सवालों के खुलकर जवाब दिये हैं.
उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश से पहले हम आपको बता रहे हैं कि आखिर मां आनंद शीला हैं कौन. उनका पूरा नाम शीला अंबरलाल पटेल है. साल 1949 में गुजरात के वडोदरा मैं उनका जन्म हुआ. मां आनंद शीला रजनीश मूवमेंट की प्रवक्ता रही हैं और साल 1981-1985 तक ओशो की सेक्रेटरी. उनपर आरोप लगता है कि ओशो को भारत से अमेरिका ले जाने के पीछे का दिमाग मां आनंद शीला का ही है. ओशो ने साल 1981 में अमेरिका कै वॉस्को काउंटी में रजनीश पुरम आश्रम की स्थापना की थी. उनपर साल 1984 में बायो टेरर अटैक का आरोप लगा था, जिसके बाद उन्हें काफी समय जेल में भी बिताना पड़ा था. वो साल 1985 में अमेरिका से भाग गई थी और वेस्ट जर्मनी में साल 1986 में गिरफ्तार की गईं थी. उनपर करोड़ों की चोरी का भी इल्जाम लगा था और 20 साल की सजा सुनाई गई थी. हालांकि सिर्फ 39 महीनों में ही अच्छे व्यवहार की वजह से उन्हें पेरोल पर रिहा कर दिया गया था. ओशो ने सार्वजनिक तौर पर उनकी बुराई की थी और अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया था. इसके बावजूद उन्होंने कभी ओशो की बुराई नहीं की. बल्कि वो हमेशा ओशो से प्रेम का ही दावा करती रहीं. मौजूदा समय में मां आनंद शीला स्विट्जरलैंड में बुजुर्गों के लिए दो आश्रम चलाती हैं.
मां आनंद शीला ने अपने इंटरव्यू में कहा कि अधिकतर लोग फ्रीडम और गिल्ट के बीच का जीवन गुजारते हैं. उन्होंने कहा कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया. मैंने जो कुछ भी किया, समर्पित भाव से किया. मैं सिर्फ ओशो के लिए समर्पित रही. एक व्यक्ति तभी उन्मुक्त जीवन जी सकता है, जब उसके मन में गिल्ट न हो.
मां आनंद शीला ने कहा कि मैं ओशो से प्यार करती थी. आज भी करती हूं. उन्होंने कहा कि प्रेम और सेक्स दो अलग अलग चीजें हैं. मेरी भावनाएं सेक्सुअल फीलिंग्स के साथ कभी नहीं जुड़ी थी. मेरे अंदर भगवान ओशो के लिए सिर्फ प्रेम, सम्मान, इज्जत और समर्पण है. उन्होंने कहा कि वो ओशो के साथ प्रेम में थी और उन्हें सिर्फ यही समझ आता था. प्रेम में जब कोई व्यक्ति होता है, तो उसे कुछ और समझ नहीं आता. प्रेम में अगर ये शर्त है कि मैं तुमसे प्रेम कर रही हूं, तुम भी मुझसे प्रेम करो तो ये प्रेम नहीं, बल्कि एक सौदा हो जाता है.
मां आनंद शीला ने कहा कि ओशो ने कहा था कि लोग क्या कहते हैं, इसपर ध्यान नहीं देना है. उन्होंने कहा था कि मुजसे हमेशा सीखती रहना. मैं आज भी उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चलती हूं. उन्होंने मेरे खिलाफ क्या बोला, इसके पीछे की वजह वही जानते थे. मैंने उनसे प्रेम, जिंदगी, जिंदादिली और स्वीकार्यता सीखी. मैं आज भी इन्हीं सीखों पर जिंदगी जीती हूं. उन्होंने कहा कि लोग मुझे कैसे याद करते हैं, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.
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