हर किसी के पास कुछ क्रिएटिविटी और टैलेंट होता है, बस उसे पहचानने की जरूरत होती है.
गौरतलब है कि इस्तेमाल हो चुके दीयों और सजावटी सामान को इस तरह रिसाइकल करके नया और खूबसूरत रूप दिया जा सकता है.
इसे युवाओं की मेहनत का ही नतीजा कहेंगे कि अब बहुत सारी संस्थाएं इन युवाओं से दीये खरीदने के लिए आगे आ रही हैं. यहां तक कि अब बड़े बड़े मॉल इन युवाओं को फ्री में जगह अलाट कर रहे हैं.
इस पहल का श्रेय सुखविंदर कौर को भी जाता है जिन्होंने चंडीगढ़ के एक गांव में अपनी जगह इन युवाओं को फ्री में दे रखी है ताकि वो नशे और बुराइयों से दूर हटकर समाज सेवा में योगदान दें सके.
ग्रुप की सदस्य जशनदीप ने बताया कि वह गांव से दीयों पर रंग करने के लिए आती हैं, रोजाना करीब 4 से 5 घंटे का वक्त वो इस्तेमाल किये जा चुके दीयों को नया रंग और रूप देने में लगाती है. उनका मानना है कि सभी को ऐसे नेक काम के लिए आगे आना चाहिए ताकि वेस्ट रिसाइकिलिंग के साथ वातावरण को भी बचाया जा सके.
'दीप से सहयोग तक' की थीम से जुड़ी टीम के सदस्य रोहित ने बताया कि दीयों को मार्केट में बेचा जाएगा और जिसकी कमाई का 40% हिस्सा उन युवाओं की मदद के लिए खर्च होगा, जिनकी कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की वजह से नौकरी चली गई. बाकी 60 % आमदनी से लाइब्रेरी बनेगी. जहां सिविल की तैयारियां करने वाले छात्रों के लिए मुफ्त में पढ़ने का इंतजाम होगा.
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