ZEE News जम्मू कश्मीर के सरोल में बने सेना के उस कैंप में पहुंचा, जहां पर IED से निपटने के लिए उसकी पहचान करने और उसको डिफ्यूज करने के तरीके सिखाए जाते हैं. यहां पर हर जवान को बताया जाता है कि धमाका किसी भी शक्ल में हो सकता है तो हमेशा मुस्तैद रहना है और तैयार रहना है.
किसी बम को डिफ्यूज करने से ज्यादा मुश्किल काम होता है IED की पहचान करना. आगे की स्लाइड में हम आपको बताएंगे कि IED बम कैसा होता है और इनकी पहचान कैसे होती है.
आतंकी हमारे जवानों को अपने IED जाल में फंसाते हैं, इसलिए सेना के जवानों को खास ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें IED की पहचान करना और उनको डिफ्यूज करना या सुरक्षित धमाका करवाना सिखाया जाता है.
हैंड ग्रेनेड एक ऐसा बम है, जिसको देखकर समझा जा सकता है कि इससे धमाका होगा. ये बम धमाका उनसे कम नुकसान पहुंचाता है, जिनका पता ही नहीं चलता कि वो कहां हैं.
खूबसूरत पर्स, प्रिंटर, कुर्सी, टायर, कुकर, कैन, मटका, डस्टबिन. ये सबकुछ साधारण सी चीजें हैं. आमतौर पर बाजार में मिलने वाली चीजें, लेकिन ये साधारण चीजें ही आतंकियों का सबसे बड़ा हथियार हैं. या कहें की सबसे बड़ा जाल बन जाती है. इन्हीं शक्लों में IED धमाका होता है.
खूबसूरत चीजें ही वो खतरनाक जाल है, जो सेना के जवानों के लिए आतंकी बिछाते हैं. यहीं वो चीजें हैं जिनसे आतंकी IED तैयार करते हैं, ताकि वो सेना के जवानों को अपना निशाना बना सकें और घात लगाकर उनपर हमला कर सकें. इन्हीं बमों को बनाकर पहाड़ों को हर कोने में वो छिपाते हैं, जिनको ढूंढना और उनसे निपटना सेना के जवानों का पहला नियम होता है.
जमीन के नीचे भी IED को छिपाकर रखा जाता है ताकि जैसे ही इस पर किसी जवान का पैर पड़े तो जोरदार धमाका हो. पहाड़ों की पगडंडियां हो या फिर किसी मंदिर का दर. आतंकियां का IED जाल कही भीं बिछा हो सकता है.
जम्मू कश्मीर के सरोल में सेना के कैंप में IED से निपटने के लिए जवानों को तैयार किया जाता है. जवानों को आईईडी की पहचान करने और उसको डिफ्यूज करने के तरीके सिखाए जाते हैं. यहां पर हर जवान को बताया जाता है कि धमाका किसी भी शक्ल में हो सकता है तो हमेशा मुस्तैद रहना है और तैयार रहना है. इस कैंप में शातिर आतंकियों से निपटने के लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है. उन्हें बताया जाता है कि सीमा पर आतंकियों की हर चाल मुंहतोड़ जवाब कैसे देना है.
सेना के जवानों की इस ट्रेनिंग को देखकर आपको भारतीय सेना की ताकत का अंदाजा हो जाएगा. मुस्तैदी इतनी होती है कि आतंकी दिखा नहीं कि बंदूक गरज उठती है और निशाना एकदम अचूक होता है. पहाड़ियों के पीछे छिपे आतंकी सेना के जवानों की आंखों से ओझल नहीं हो पाते और गोलियों का शिकार बनते हैं.
ट्रेन्डिंग फोटोज़