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BCG booster dose: 100 साल पुरानी इस वैक्सीन से बड़ी उम्मीदें, कोरोना और डायबिटीज का इलाज भी होगा मुमकिन !

BCG booster dose: भारत में कोरोना वायरस पर चल रही रिसर्च ने ये साबित किया कि कुछ समय के बाद ऐसे लोगों को विशेष तौर पर कोरोना की बूस्टर डोज की जरूरत पड़ती है जो शारीरिक तौर पर कमजोर हैं या उम्रदराज हैं. लेकिन अब बात 100 साल से भी ज्यादा पुराने एक टीके की बूस्टर डोज की तैयारी हो रही है. भारतीय वैज्ञानिक अब इस पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या बीसीजी की वैक्सीन डायबिटीज और कोरोना से सुरक्षा दे सकती है. ये रिसर्च भारत में हो रही है और आईसीएमआर इस पर काम कर रहा है. 

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इस रिसर्च का मुख्य मकसद तो ये देखना था कि क्या बीसीजी की बूस्टर डोज लगाने से ऐसे लोगों को टीबी से बचाया जा सकता है जिनके घर में टीबी का कोई मरीज मौजूद है. लेकिन रिसर्च में ये भी सामने आया कि ये वैक्सीन डायबिटीज से भी सुरक्षा दे रही है. भारत में की जा रही इस रिसर्च में इस पर भी शोध किया जाएगा, कि क्या नवजात बच्चों को इम्युनिटी देने वाली ये वैक्सीन डायबिटीज के साथ-साथ कोरोना वायरस से भी बचाव कर रही है. अगर ऐसा होता है तो ये बीसीजी की वैक्सीन कई बीमारियों की एक दवा साबित हो सकती है.

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अब बीसीजी वैक्सीन की बूस्टर डोज की तैयारी हो रही है.भारत में अभी तक लोग इस टीके को नवजात बच्चों के इम्युनाइजेशन के जरूरी टीके के तौर पर जानते हैं लेकिन जल्द ही इस वैक्सीन की अहमियत और पहचान दोनों बदल सकती हैं. रिसर्च पर मुहर लगने के बाद जल्द ही लोगों को कोरोना की बूस्टर डोज के साथ-साथ अब बीसीजी की भी बूस्टर डोज दी जा सकती है.  

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आईसीएमआर की संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस यानी NIRT ने रिसर्च की तैयारी कर ली है. इस रिसर्च में टीबी के मरीजों के संपर्क में रहने वाले 6 से 18 साल के बच्चों और किशोरों को शामिल किया जाएगा. उन्हें बीसीजी टीके की बूस्टर डोज दी जाएगी और इसके नतीजों का अध्ययन किया जाएगा. रिसर्च में ये आंकलन किया जाएगा कि क्या बीसीजी वैक्सीन की बूस्टर डोज किसी को बीमारी के संपर्क में आने के बावजूद टीबी होने से बचा सकती है.

 

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नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन ट्यूबरकुलोसिस (NIRT – Chennai) की डायरेक्टर डॉ पद्मा-प्रियदर्शनी सी के मुताबिक ये रिसर्च ऐसे 9 हजार बच्चों पर की जाएगी जिनके घर में टीबी का कोई मरीज है. इन किशोरों पर 2 साल तक निगरानी चलेगी.  देश के 8 शहरों में ये रिसर्च की जाएगी और स्टडी इसी साल अगस्त में शुरू होने की उम्मीद है. बीसीजी का टीका बच्चे को जन्म के समय से लेकर एक वर्ष का होने से पहले लगाया जाता है. भारत में ये वैक्सीन राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान का हिस्सा  है. NIRT के रिसर्चर डॉ श्री राम के मुताबिक ये वैक्सीन इम्युनिटी बढ़ाने का काम करती है और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों खासतौर पर टीबी से सुरक्षा देने में असरदार मानी जाती रही है. अब इसके डायबिटीज और कोविड में भी फायदे सामने आ रहे हैं.  

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बीसीजी वैक्सीन 1920 में ईजाद की गई थी. हॉवर्ड मेडिकल कॉलेज में इस वैक्सीन पर चल रहे शोध के दौरान रिसर्चर्स को समय-समय पर इस बात के संकेत मिले कि ये वैक्सीन कई दूसरी बीमारियों के होने के खतरे को भी कम कर रही है. चाहे वो मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसी ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर हों या जन्म से होने वाली टाइप वन डायबिटीज. इंडियन जर्नल ऑफ अप्लायड रिसर्च में पिछले वर्ष छपी एक रिसर्च के मुताबिक बीसीजी वैक्सीन कोरोना से भी बचा रही है. ये रिसर्च 2021 में नोएडा के सरकारी अस्पताल में की गई थी.

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भारत के लिए चुनौती भी बड़ी है क्योंकि देश में डायबिटीज के लगभग 8 करोड़ मरीज हैं. इनमें से ढाई लाख लोगों को टाइप वन डायबिटीज है. यानी जन्म से होने वाली डायबिटीज. भारत डायबिटीज के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है. इसी तरह भारत में इस समय टीबी के 19 लाख से ज्यादा मरीज हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में ही हैं. सरकार 2025 तक टीबी को पूरी तरह खत्म करना चाहती है. लेकिन पिछले एक साल में यानी 2021 में ही टीबी मरीजों की संख्या में 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में अगर ये रिसर्च अच्छे नतीजे देती है तो टीबी, डायबिटीज़ और कोरोना तीनों के मामले में देश को सफलता मिल सकती है.  

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