नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस के मौके पर हर साल दिल्ली पूरा देश राजपथ की परेड देखता है. इसके कुछ दिनों बाद शाम के समय में बीटिंग रिट्रीट समारोह का आयोजन किया जाता है. लेकिन बहुत से लोगों को यह नहीं मालूम होता कि यह समारोह होता क्यों है और इसका आयोजन 29 जनवरी को ही क्यों किया जाता है. आपको बता दें कि इस बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में देश में निर्मित करीब 1,000 ड्रोन्स लाइट शो का हिस्सा बने.
बीटिंग रिट्रीट समारोह भी 26 जनवरी को मनाए जाने वाले गणतंत्र दिवस (Republic Day) समारोह का ही एक भाग होता है. दरअसल गणतंत्र दिवस का समारोह सिर्फ एक दिन का नहीं होता. यह 26 से शुरू होकर 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट समारोह तक मनाया जाता है.
कई जानकार कहते हैं कि बीटिंग रिट्रीट समारोह की यह परंपरा लगभग 300 साल पुरानी है और सबसे पहले इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में की गई थी. उस समय जेम्स II ने जंग की समाप्ति के बाद अपने सैनिकों को शाम के वक्त परेड करने और बैंड बाजों की धुन बजाने का आदेश दिया था.
बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी में तीनों सेनाएं शामिल होती हैं. तीनों सेनाओं के बैंड एक साथ मिलकर मार्च धुन बजाते हैं और ड्रूमर्स कॉल का प्रदर्शन होता है. इस दौरान महात्मा गांधी की प्रिय धुन भी बजाई जाती है, लेकिन इस साल से भारत सरकार ने इस समारोह से गांधी जी की प्रिय धुन को हटा दिया है उसकी जगह कुछ हिंदी भाषा के संगीतों की धुन को बजाया जाएगा.
इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं, तब सूचित किया जाता है की समापन समारोह पूरा हो गया है. बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहां से अच्छा बजाते हैं. ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता है तथा राष्ट्रगान बजाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता है.
गौरतलब है कि भारत में बीटिंग रिट्रीट समारोह शुरू होने के बाद से मात्र दो बार ऐसा हुआ है कि इस आयोजन को रद्द करना पड़ा है. पहली बार 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में आए भूकंप के कारण और दूसरा 27 जनवरी 2009 को देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन के निधन के बाद इसे रद्द किया गया था.
ट्रेन्डिंग फोटोज़