नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के तीनों नगर निगमों (Delhi Municipal Corporation) को एक करने के लिए लोक सभा में बिल पेश किया जा चुका है. संसद में इस बिल के पास होने के बाद दिल्ली नगर निगम में कई बदलाव देखने को मिल सकते है. बिल के प्रावधानों के अनुसार, दिल्ली में 272 वार्ड की जगह अब अधिकतम 250 वार्डस ही हो सकते हैं. बिल में किए जा रहे नए बदलावों के बाद अब विपक्ष बीजेपी पर चुनाव टालने का आरोप लगा रहा है.


272 की जगह अब होंगे अधिकतम 250 वार्ड


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केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने शुक्रवार को दिल्ली के तीनों नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) के एकीकरण के लिए लोक सभा में बिल पेश किया. लोक सभा में पेश किए गए इस बिल में कई बदलाव किए गए है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव ये है कि अब दिल्ली नगर निगम में 272 वार्ड की जगह अधिकतम 250 वार्ड ही होंगे. वहीं जब तक चुनाव नही होंगे, तब तक केंद्र सरकार की तरफ से एक स्पेशल अफसर नियुक्त किया जाएगा, जो तीनों निगमों को चलाएगा. वहीं वार्ड के निर्धारण के लिए परिसीमन भी किया जाएगा. एक्सपर्ट्स की माने तो इसमें अभी लंबा समय लग सकता है.


2012 में बनाए गए थे तीन निगम


राजधानी दिल्ली में इस साल अप्रैल में नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) के चुनाव की तैयारी चल रही थी. लेकिन जिस दिन दिल्ली नगर निगम चुनाव का ऐलान होना था, उसी दिन इलेक्शन कमीशन की ओर से जारी एक बयान ने दिल्ली की सियासत को एक बार फिर गरमा दिया. दिल्ली में तीनों नगर निगम, यानी कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम (NORTH MCD), दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (EDMC) को एक करने की तैयारी चल रही हैं. इससे पहले साल 2012 तक दिल्ली में एक ही नगर निगम हुआ करता था लेकिन इफेक्टिव एडमिनिस्ट्रेशन यानी कि दिल्ली के कुशल विकास के लिए इसे तीन नगर निगम में बांट दिया गया था.


यूपीए सरकार में हुआ था बंटवारा


2011 से 2012 के बीच नए स्‍थानीय निकाय बनाए गए थे. उस वक्‍त दिल्‍ली में शीला दीक्षित की सरकार थी और केंद्र में भी UPA की सरकार थी. MCD का बंटवारा दिसंबर 2011 में विधानसभा से पारित दिल्‍ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम के तहत किया गया. जिसके बाद दिल्ली में तीन नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) बनाए गए थे. इसमें North MCD में 104 वार्ड, SDMC में 104 वार्ड और EDMC में 64 वार्ड बनाए गए. कुल मिलाकर दिल्ली को 272 वार्ड में बाटा गया. लेकिन ये मॉडल दिल्ली की आबादी के हिसाब से असफल रहा.


इसकी वजह ये थी कि बंटवारे के बाद सबसे पॉश एरिया SDMC के अंतर्गत आया, जिसके कारण सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्शन भी दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के पास रहा. वहीं सबसे अधिक अनाधिकृत कॉलोनी और कम प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्शन एरिया बाकी दो नगर निगम के पास रहा, जिसका नतीजा ये हुआ कि बाकी दोनों नगर निगम आर्थिक रूप से ठप हो गए. 


आर्थिक तंगी से निगम कर्मचारी परेशान


नगर निगम में आर्थिक तंगी के कारण साल 2015 से अब तक दिल्ली नगर निगम (Delhi Municipal Corporation) के अलग अलग विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों ने कम से कम 50 बार हड़ताल की है. बीजेपी जहां एक तरफ तीनों निगमों के एक होने के पक्ष में है तो वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी इसे चुनाव की देरी का बहाना बता रही है.


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6 महीने लग सकते हैं चुनाव में


वोटर्स की बात करें तो दिल्ली के तीनों नगर निगमों (Delhi Municipal Corporation) में करीब डेढ़ करोड़ मतदाता हैं. इनमें से 81.3 लाख पुरुष और 67.6 लाख महिला मतदाता हैं. तीनों निगमों को एकीकरण को लेकर अब भले ही सियासत चल रही हो लेकिन निगम कर्मचारियों के रोज-रोज के धरने प्रदर्शन से परेशान होकर दिल्ली के वोटर भी अब इसका समाधान चाहते हैं. वहीं विशेषज्ञों की माने तो अब नगर निगम के चुनाव में 6 महीने से अधिक समय लग सकता हैं. यानी कि दिल्ली वासियों को अब एक नई नगर निगम के लिए इंतजार करना पड़ सकता है.


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