तिलिस्म की नगरी से विख्यात भानगढ़ किले की कहानी अभी तक पूरी तरह तिलिस्म बानी हुई है. यहां आने वाले पर्यटकों के सामने अब भी इसकी कहानी फिल्मी जैसी लगती है, लेकिन इस किले में लगे बोर्ड इस बात को बताने के लिए लिए ही काफी है. फिर भी कुछ लोग इन पर विश्वास करते है और कुछ इसे कहानी बताते है.
यहां पर कभी जादू टोनों का साम्राज्य रहा था. पर्यटको की मानें, तो यहां पर ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई, जिस से ऐसा लगता है कि यहां पर भूत प्रेत जैसी कोई चीज है, लेकिन भानगढ़ के लिखे आलेख एवं इतिहास पर नजर डालें, तो यहां पर लिखी हुई हर बातें सही प्रतीत होती हैं. क्योंकि सरकार ने इस इलाके में सूर्यास्त के बाद जाने पर रोक लगा रखी है. इसी रोक के कारण पर्यटक यह मानकर चलते हैं कि यहां पर भूत जैसी कोई चीज भी है.
यह भानगढ़ का किला अलवर जिले के सरिस्का अभ्यारण इलाके में मौजूद है, जहां आज भी इसके खंडर ऐसे प्रतीत होते हैं कि जैसे यहां आधुनिक तरह का बाजार रहा होगा. भानगढ 16 वि शताब्दी में बसा है. 300 सालों तक भानगढ़ खूब फूला.
कहा जाता है कि काले जादू में महारथ तांत्रिक एक सुन्दर राजकुमारी को वश में करने लिए काला जादू करता है, पर खुद ही उसका शिकार हो कर मर जाता है. पर मरने से पहले भानगढ़ को बर्बादी का श्राप दे जाता है और संयोग से उसके एक महीने बाद ही पड़ौसी राज्य अजबगढ़ से लड़ाई में राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ वासी मारे जाते है और भानगढ़ वीरान हो जाता है. तब से वीरान हुआ भानगढ आज तक वीरान है.
कहते है कि उस लड़ाई में मारे गए लोगों के भूत आज भी रात को भानगढ़ के किले में भटकते है, क्योकि तांत्रिक के श्राप के कारण उन सब कि मुक्ति नहीं हो पाई थी, तो यह है भानगढ़ की कहानी जो कि लगती फ़िल्मी है, पर है असली.
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