Jayal Vidhansabha Seat : नागौर जिले की जायल विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता मंजू मेघवाल विधायक है. यह सीट अक्सर सत्ता लहर के साथ जाती है. ऐसे में इस चुनाव में क्या होता है देखना दिलचस्प होगा. पढ़े यहां का सियासी इतिहास..
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Jayal Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान में ग्रामीण सीट के रूप में वर्गीकृत जायल विधानसभा क्षेत्र में पिछले 20 सालों से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का विधायक जितते आया है. यानी सत्ता लहर के साथ यह सीट जाती है. जायल विधानसभा क्षेत्र अब भी नागौर जिले में ही है. हालांकि आसपास का क्षेत्र डीडवाना-कुचामन जिले में चला गया.
जायल विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी अनुसूचित जाति (SC) की है, लेकिन यहां जीत और हार का गणित जाट तय करते हैं. दरअसल यहां दलित आबादी के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी जाटों की है. अनुसूचित सीट होने के चलते दलित वोट विभाजित हो जाता है, ऐसे में यहां जाट ही निर्णायक भूमिका में होते हैं.
1957 के पहले विधानसभा चुनाव में रामराज्य पार्टी की ओर से गंगा सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस ने मानकचंद कोठारी को टिकट दिया. जायल की जनता ने गंगा सिंह के पक्ष में 10,145 मत दिए तो वंही मानक चंद को 13,156 मतों से जीत दिलवाई. इसके साथ ही मानक चंद को 50% से ज्यादा जनता का साथ मिला और वह जायल के पहले विधायक चुने गए.
1962 के दूसरे विधानसभा चुनाव में रामराज्य पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले गंगा सिंह ने स्वराज पार्टी से चुनाव लड़ा तो वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर मानक चंद कोठारी को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में गंगा सिंह की जीत हुई और उनके पक्ष में 10,472 मतदाताओं ने मतदान किया. जबकि पिछले चुनाव में जीत हासिल करने वाले मानक चंद कोठारी को हार का सामना करना पड़ा.
1967 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय के तौर पर रामसिंह कुर्री ने चुनावी ताल ठोका तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से गंगा सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त शिकस्त का सामना करना पड़ा और राम सिंह की 21,222 मतों के साथ जीत हुई. जबकि स्वराज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गंगा सिंह दूसरे स्थान पर रहे. वहीं कांग्रेस पूरी तरह से इस चुनाव में अपनी जमीन खो बैठी.
1972 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राम सिंह कुर्री चुनावी मैदान में उतरे. इस बार भी रामसिंह ने निर्दलीय ही ताल ठोकी. जबकि कांग्रेस ने हरीराम को टिकट दिया. चुनावी नतीजे आए तो हरिराम के पक्ष में 23,573 वोट पड़े तो वहीं राम सिंह को 24,794 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और उसके साथ ही राम सिंह लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
1977 के विधानसभा चुनाव में समीकरण बदल चुके थे. इस चुनाव में यह सीट सामान्य वर्ग से अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई. लिहाजा ऐसे में कई नए उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं पुराने दावेदार रुखसत हो गए. कांग्रेस ने मांगीलाल को टिकट दिया. जबकि जनता पार्टी की ओर से मोहन सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में मोहन सिंह के पक्ष में 13,503 मतदाताओं ने वोट किया तो वहीं मांगीलाल को 14,704 वोटों के साथ जीत हासिल हुई और वह यहां से पहले अनुसूचित जाति के विधायक बने.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी से जूझ रही थी. कांग्रेस आई ने राम करण को टिकट दिया तो वहीं जनता पार्टी की ओर से मोहन लाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में मोहन लाल के पक्ष में 11,762 वोट पड़े तो वहीं रामकरण को 13,435 मतदाताओं ने अपना समर्थन देकर जिताया.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर रामकरण को टिकट दिया तो वहीं लोक दल की ओर से मोहनलाल ने चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में रामकरण को 22098 वोट पड़े तो वहीं लोकदल के मोहनलाल को 27,989 लोगों ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही इस चुनाव में मोहनलाल ने जीत दर्ज की.
1990 के विधानसभा चुनाव में लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ चुके मोहनलाल ने जनता दल के टिकट पर चुनावी ताल ठोकी तो वहीं कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलते हुए जेठमल को टिकट दिया. इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति एक बार फिर फेल हुई और कांग्रेस के जेठमल को हार का सामना करना पड़ा. जबकि जनता दल के टिकट पर किस्मत आजमा रहे मोहनलाल की जीत हुई.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने खेला कर दिया और जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत चुके मोहनलाल को चुनावी मैदान में उतार दिया. लिहाजा ऐसे में सियासी समीकरण बदल गए जबकि बीजेपी ने परशुराम को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा. पहले लोकदल फिर जनता दल और अब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मोहन लाल की 28,795 वोटों के साथ जीत हुई. जबकि बीजेपी उम्मीदवार परशुराम को हार का सामना करना पड़ा.
1998 के विधानसभा चुनाव में मोहनलाल ने एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. बीजेपी ने परशुराम पर ही दांव खेला. हालांकि बीजेपी का प्लान सफल ना हो सका और परशुराम के पक्ष में 19,355 वोट पड़े तो वहीं मोहनलाल बड़े मार्जिन के साथ 40,479 वोट लेने में कामयाब हुए और इसके साथ ही मोहनलाल जायल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से मोहनलाल को ही टिकट दिया जबकि इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली और मदनलाल मेघवाल को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में मोहनलाल को चार चुनाव जीतने के बाद हार का सामना करना पड़ा और उनके पक्ष में 33,585 मतदाताओं ने वोट किया. जबकि भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे मदनलाल को 37,271 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. उसके साथ ही मदनलाल मेघवाल जीते और राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
2008 के विधानसभा चुनाव के आते-आते बीजेपी और कांग्रेस ने नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार की. लिहाजा ऐसे में मुकाबला भी बेहद रोचक होने वाला था. क्योंकि इस बार चुनाव मंजू बनाम मंजू था. बीजेपी ने मंजू बाघमार को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस ने मंजू मेघवाल को चुनावी मैदान में उतारा. बीजेपी की मंजू के पक्ष में 33,198 वोट पड़े तो वहीं कांग्रेस की मंजू को 43,202 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और इसके साथ ही कांग्रेस की मंजू की जीत हुई.
2013 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला मंजू वर्सेस मंजू ही था. कांग्रेस ने फिर से मंजू मेघवाल को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी ने मंजू बाघमार को चुनावी मैदान में उतारा. हालांकि इस बार बीजेपी के मंजू की जीत हुई और 72,738 वोटों के साथ वह विधानसभा पहुंची.
2018 के विधानसभा चुनाव बेहद ही रोमांचक रहे. इस चुनाव में मुकाबला सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी का ही नहीं था बल्कि यह मुकाबला त्रिकोणीय था. हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी में भी ताल ठोक दी. बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए मुश्किलें बढ़ गई. बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी-अपनी उम्मीदवार को एक बार रिपीट करते हुए कांग्रेस ने मंजू मेघवाल को टिकट दिया. वहीं बीजेपी ने मंजू बाघमार को चुनावी मैदान में उतारा जबकि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की ओर से अनिल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस की मंजू मेघवाल के पक्ष में 42% वोट डलें और उन्हें 68,415 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं बीजेपी की मंजू को सिर्फ 20% लोगों ने समर्थन दिया. जबकि आरएलपी के अनिल नई चुनौती के रूप में उभरे और उन्हें 31% मतदाताओं का समर्थन के साथ 49,811 मतदाताओं ने वोट दिया. इस चुनाव में कांग्रेस की मंजू मेघवाल की जीत हुई और वह दूसरी बार राजस्थान विधानसभा पहुंची.
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