Rajasthan Election: राजस्थान में जाटों के दबदबे वाली सीट में 11 बार विश्नोई ने फहराया झंडा, समझें गणित
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Rajasthan Election: राजस्थान में जाटों के दबदबे वाली सीट में 11 बार विश्नोई ने फहराया झंडा, समझें गणित

Luni Vidhansabha Seat : जोधपुर की लूणी विधानसभा सीट पर भले ही सबसे ज्यादा जाट मतदाता हो, लेकिन यहां अब तक 11 बार विश्नोई समाज के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. पढ़ें इस सीट का सियासी गणित..

Rajasthan Election: राजस्थान में जाटों के दबदबे वाली सीट में 11 बार विश्नोई ने फहराया झंडा, समझें गणित

Luni Vidhansabha Seat : जोधपुर के लूणी विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां एक ही व्यक्ति ने 7 बार चुनाव जीता और फिर उनके बेटे और पोते भी इसी सीट से विधायक बने. इस सीट पर भले ही सबसे ज्यादा जनसंख्या जाटों की है, लेकिन यहां विश्नोई और पटेल ही चुनाव जीतते आए हैं. इस सीट पर रामसिंह विश्नोई परिवार का खासा प्रभाव रहा है.

खासियत

लूणी विधानसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा बार राम सिंह विश्नोई ने जीत दर्ज की. रामसिंह विश्नोई ने अपना पहला चुनाव 1972 में जीता. इसके बाद रामसिंह विश्नोई ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, 1977,1980, 1985 और 1990 तक लगातार पांच बार जीत हासिल की. 1993 में रामसिंह विश्नोई को जसवंतसिंह विश्नोई के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा. लेकिन 1998 में रामसिंह विश्नोई एक बार फिर अपनी सियासी विरासत हासिल करने में कामयाब हुए और वह 2003 में फिर विधायक बने. हालांकि अक्टूबर 2004 में उनकी मृत्यु हो गई. जिसके बाद उनकी विरासत उनके बेटे मलखान सिंह को मिली. अब उनकी विरासत को उनके पोते महेंद्र विश्नोई आगे बढ़ा रहे हैं.

विश्नोई परिवार

लूणी विधानसभा क्षेत्र में 1972 के बाद से ही विश्नोई परिवार का दबदबा रहा है और इसकी बानगी ही है कि पहले रामसिंह विश्नोई ने 7 बार चुनाव जीता फिर उनके पुत्र मलखान सिंह ने चुनाव जीता और उसके बाद उनके पोते महेंद्र सिंह भी इसी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. रामसिंह विश्नोई की मृत्यु के बाद साल 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में उनके पुत्र मलखान सिंह की जीत हुई, लेकिन इस कार्यकाल के दौरान भंवरी देवी अपहरण और हत्या कांड मामले में उन्हें, उनके भाई परसराम विश्नोई और उनकी बहन इंद्रा विश्नोई को आरोपी बनाया गया. हालांकि इसके बावजूद 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनकी 78 वर्षीय मां अमरी देवी को टिकट दिया और वह पहली बार चुनावी मैदान में उतरी. हालांकि उन्हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. 2018 के विधानसभा चुनाव में विश्नोई परिवार की विरासत को रामसिंह विश्नोई के पोते महेंद्र विश्नोई ने आगे बढ़ाया और यहां से जीत हासिल की. उन्होंने भाजपा के तत्कालीन विधायक जोगाराम पटेल को करारी शिकस्त दी.  

जातीय समीकरण

लूणी विधानसभा सीट पर शुरू से ही ध्रुवीकरण की सियासत देखने को मिलती रही है. यहां सबसे ज्यादा आबादी जाट मतदाताओं की है, लेकिन इसके बावजूद यहां हमेशा से विश्नोई समाज का दबदबा रहा है. कांग्रेस और बीजेपी भी विश्नोई समाज के मतदाताओं को टिकट देती आई है. इसके अलावा पटेल समुदाय का भी इस इलाके में खासा प्रभाव देखने को मिलता है. यही कारण है कि यह सीट अब तक विश्नोई और पटेल समाज के कब्जे में रही है. तीसरे मोर्चे ने भी इस सीट को कबजाने की कई मर्तबा कोशिशें की, लेकिन लूणी की जनता का भरोसा यहां के प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा पर ही रहा है. इतिहास में आज तक सिर्फ दो बार यह सीट निर्दलीय के खाते में गई है. 1962 के बाद से इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. इस सीट पर जाट, विश्नोई और पटेल जाति के अलावा राजपूत, अनुसूचित जाति और जनजाति मतदाता की भी अच्छी खासी संख्या मानी जाती है.

लूणी विधानसभा सीट का इतिहास

पहला चुनाव 1957

लूणी विधानसभा क्षेत्र के पहले चुनाव में कांग्रेस की ओर से पूनमचंद उम्मीदवार बने तो वहीं उन्हें राम राज्य परिषद की ओर से ताल ठोक रहे आयुवान सिंह ने चुनौती दी. इस चुनाव में पूनमचंद के पक्ष में 9,649 वोट पड़े और आयुवान सिंह को 5000 589 वोट मिले इस चुनाव में कांग्रेस के पूनमचंद की जीत हुई.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूनमचंद पर ही भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया जबकि उन्हें कड़ी चुनौती निर्दलीय उम्मीदवार स्वरूप सिंह ने पेश की और जब चुनावी नतीजे आए तो स्वरूप सिंह ने पूनमचंद को करारी पटखनी दे दी. इस चुनाव में 21,564 वोटों के साथ स्वरूप सिंह की जीत हुई.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1967

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूनमचंद विश्नोई को टिकट दिया जबकि स्वराज पार्टी के उम्मीदवार ने उन्हें कड़ी टक्कर दी. हालांकि इस सीट को कांग्रेस दोबारा कबजाने में कामयाब हुई. पूनमचंद विश्नोई 23,894 मतों के साथ विजयी हुए.

चौथा विधानसभा चुनाव 1972

इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर विश्नोई समाज के ही उम्मीदवार पर विश्वास जताया लेकिन रामसिंह विश्नोई को टिकट दिया. जबकि उन्हें निर्दलीय के तौर पर जोगाराम ने कड़ी टक्कर देने की कोशिश की. हालांकि रामसिंह विश्नोई 27,278 वोटों से विजयी हुए.

पांचवा विधानसभा चुनाव 1977

1977 के विधानसभा चुनाव आते-आते रामसिंह विश्नोई की साख लूणी विधानसभा क्षेत्र में बहुत बढ़ चुकी थी, उन्हें एक बार फिर कांग्रेस ने टिकट दिया. जबकि उनके नाम राशि से ही आने वाले राम नारायण विश्नोई ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि जनता का विश्वास राम नारायण विश्नोई नहीं जीत पाए और एक बार फिर राम सिंह विश्नोई की जीत हुई.

छठा विधानसभा चुनाव 1980

1980 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के दो भाग हो गए थे. इस चुनाव में कांग्रेस आई के उम्मीदवार रामसिंह विश्नोई बने जबकि गुटबाजी से जूझ रही जनता पार्टी की ओर से राम नारायण विश्नोई चुनावी मैदान में उतरे. रामनारायण विश्नोई को 17,788 वोट मिले तो वहीं रामसिंह विश्नोई 25,474 वोटों के साथ एक बार विजयी हुए.

सातवा-आठवां विधानसभा चुनाव 1985-1990

इस चुनाव के आते-आते तक रामसिंह विश्नोई बेहद मजबूत नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे, लिहाजा फिर से वह 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. जबकि भाजपा की ओर से अंबालाल ने उन्हें चुनौती पेश की. लेकिन इस चुनाव में रामसिंह विश्नोई की रिकॉर्ड 41,253 मतों से जीत हुई. जबकि अंबालाल को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसी तरह 1990 के विधानसभा चुनाव में भी फिर से रामसिंह विश्नोई कांग्रेस की ओर से चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं जनता दल की ओर से बुद्धा राम ने टक्कर देने की कोशिश की. हालांकि पिछले चार चुनाव जीत चुके राम सिंह विश्नोई रिकॉर्ड अपना पांचवा चुनाव भी जीत गए.

नवां विधानसभा चुनाव 1993

यह चुनाव न सिर्फ बेहद दिलचस्प था बल्कि लूणी के चुनावी इतिहास का एक बड़ा अध्याय लिखने जा रहा था. पिछले 30 सालों से कांग्रेस के गढ़ बन चुके लूणी विधानसभा सीट पर अब भाजपा की बड़ी सेंधमारी होने जा रही थी. इस चुनाव में कांग्रेस रामसिंह विश्नोई को ही चुनावी मैदान में उतारा. जबकि भाजपा की ओर से जसवंत सिंह चुनावी मैदान में उतरे और उनकी प्रचंड जीत हुई. जसवंत सिंह को 37,772 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और वह विधानसभा पहुंचे.

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दसवां विधानसभा चुनाव 1998

इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर अपने मजबूत खिलाड़ी और पांच बार के विधायक रह चुके रामसिंह विश्नोई पर ही भरोसा जताया जबकि उनका मुकाबला उन्हें करारी शिकस्त दे चुके जसवंतसिंह विश्नोई से था. इस चुनाव में तकरीबन 3000 मतों के अंतर से रामसिंह विश्नोई फिर विजयी हुए और लूणी का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधानसभा पहुंचे.

11वां विधानसभा चुनाव 2003

इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से फिर रामसिंह विश्नोई उम्मीदवार बने जबकि उन्हें जोगाराम पटेल ने कड़ी चुनौती पेश की. हालांकि राम सिंह विश्नोई की ही चुनाव में जीत हुई. उन्हें 37,574 वोट मिले तो वहीं जोगाराम पटेल के पक्ष में 36,218 लोगों ने मतदान किया.

उपचुनाव 2005

22 अक्टूबर 2004 को रामसिंह विश्नोई का निधन हो गया. जिसके बाद लूणी विधानसभा सीट खाली हो गई. जिसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को एक नए चेहरे के रूप में मलखान सिंह विश्नोई को चुनावी मैदान में उतारना पड़ा. हालांकि मलखान सिंह विश्नोई रामसिंह विश्नोई के ही पुत्र थे. उन्हें इस उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी जोगाराम पटेल से चुनौती मिली और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जबकि जोगाराम पटेल की जीत हुई.

12वां विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर टक्कर मलखान सिंह वर्सेस जोगाराम थी. बीजेपी ने उस वक्त के मौजूदा विधायक जोगाराम पटेल को ही चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं सात बार विधायक रहे रामसिंह विश्नोई के पुत्र मलखान सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर किस्मत आजमाई और उन्हें कामयाबी हासिल हुई. मलखान सिंह के पक्ष में 63,316 वोट पड़े तो वहीं जोगाराम पटेल को महज 47,817 मतों से संतोष करना पड़ा.

13 विधानसभा चुनाव 2013

2013 के विधानसभा चुनाव तक तस्वीर बहुत बदल चुकी थी, मलखान भंवरी देवी कांड में फंस चुके थे. हालांकि इन सबके बावजूद कांग्रेस ने मलखान सिंह की 78 वर्षीय मां अमरी देवी विश्नोई को टिकट दिया. जबकि भाजपा की ओर से फिर से जोगाराम पटेल ही चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में जोगाराम पटेल की एक तरफा जीत हुई. जबकि मलखान सिंह पर लगे आरोपों का खामियाजा अमरी देवी विश्नोई को उठाना पड़ा.

14 विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर विश्नोई परिवार से ही आने वाले रामसिंह विश्नोई के पौत्र महेंद्र सिंह विश्नोई पर दाव खेला. जबकि भाजपा से विधायक जोगाराम पटेल पुनः चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में महेंद्र सिंह विश्नोई अपने दादा रामसिंह विश्नोई की विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती थी तो वहीं जोगाराम पटेल को अपनी कुर्सी बचाने की चुनौती थी. चुनावी नतीजे आए तो लूणी की जनता ने महेंद्र सिंह विश्नोई को चुना और 84979 वोटों से जीत हुई.

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