Rajasthan Election : बाड़मेर की वो सीट, जहां की जनता ने दलबदलुओं को जमकर जिताया लेकिन 2008 में बदले समीकरण
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Rajasthan Election : बाड़मेर की वो सीट, जहां की जनता ने दलबदलुओं को जमकर जिताया लेकिन 2008 में बदले समीकरण

Choutan Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की चौहटन विधानसभा सीट बाड़मेर जिले में आती है. इस सीट के 67 साल के चुनावी इतिहास में 14 विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें से 8 बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और चार बार अलग-अलग दलों के विधायक चुने गए हैं. पढ़ें यहां का चुनावी इतिहास

Rajasthan Election : बाड़मेर की वो सीट, जहां की जनता ने दलबदलुओं को जमकर जिताया लेकिन 2008 में बदले समीकरण

Choutan Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की चौहटन विधानसभा सीट बाड़मेर जिले में आती है. इस सीट के 67 साल के चुनावी इतिहास में 14 विधानसभा चुनाव हुए हैं जिनमें से 8 बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और चार बार अलग-अलग दलों के विधायक चुने गए हैं. चौहटन विधानसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आई थी. यहां से कांग्रेस पार्टी के वली मोहम्मद पहले विधायक चुने गए थे.

खासियत

चौहटन विधानसभा सीट की खासियत रही है कि यहां एक ही उम्मीदवार ने कई बार पाला बदला और अलग-अलग पार्टियों से टिकट हासिल करके जीत हासिल की. 6 बार जीत हासिल करने वाले अब्दुल हादी ने पहले निर्दलीय चुनाव जीता. फिर वह 1972 में कांग्रेस में शामिल हो गए फिर उन्होंने 1985 में लोक दल से जीत हासिल की. 1990 में जनता दल से जीत हासिल की और 1998 में वह एक बार फिर कांग्रेस में आ गए और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. जबकि 1980 में कांग्रेस की टिकट से जीतने वाले भगवान दास बाद में निर्दलीय खड़े हुए और उन्होंने निर्दलीय जीत हासिल की. इतना ही नहीं 1993 में बाड़मेर से निर्दलीय विधायक चुने गए गंगाराम चौधरी ने 2003 में भाजपा के टिकट पर चौहटन विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

चौहटन विधानसभा क्षेत्र का इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1957

चौहटन के पहले विधानसभा चुनाव 1957 में हुए. इस चुनाव में कांग्रेस और राम राज्य परिषद के बीच कड़ा मुकाबला था. जहां कांग्रेस ने वली मोहम्मद को टिकट दिया तो वहीं रामराज्य पार्टी की ओर से नाथू सिंह ने चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव के नतीजों में वली मोहम्मद को 9,315 वोटों के साथ जीत हासिल हुई. जबकि नाथू सिंह को 7,087 वोट मिले.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राम राज्य परिषद ने अपने उम्मीदवार बदल दिए. जहां कांग्रेस की ओर से अहमद बख्श चुनावी मैदान में थे तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से फतेह सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और उनके उम्मीदवार को 9,890 वोट मिले जबकि राम राज्य परिषद के उम्मीदवार फतेह सिंह की जीत हुई और उनके पक्ष में 12,076 वोट पड़े.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1967

चौहटन के तीसरे विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल हादी की जीत हुई जबकि उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंदी फतेहपुरी 10900 वोट पाकर भी हार गए. अब्दुल हादी के पक्ष में 14,056 वोट पड़े. यहां से अब्दुल हादी के लबें सियासी सफर का आगाज हुआ.

चौथा-पांचवा विधानसभा चुनाव 1972-1977

इस विधानसभा चुनाव में अब्दुल हादी कांग्रेस के उम्मीदवार बने, जबकि उनको निर्दलीय उम्मीदवार मूल सिंह चौधरी ने कड़ी टक्कर दी. इस चुनाव में मूल सिंह चौधरी के पक्ष में 16,240 वोट पड़े तो वहीं अब्दुल हादी को 24413 वोट मिले और वह विजयी हुए. 1977 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर अब्दुल हादी की ही जीत हुई.

छठा विधानसभा चुनाव 1980

1980 के चुनाव के आते आते कांग्रेस दो खेमों में बट चुकी थी, एक खेमा कांग्रेस (आई) तो दूसरा खेमा कांग्रेस (यू) था. इस चुनाव में अब्दुल हादी कांग्रेस (यू) के उम्मीदवार बने जबकि कांग्रेस (आई) की ओर से भगवान दास चुनावी मैदान में उतरे. इसमें 33,600 वोटों के साथ भगवान दास की जीत हुई.

सातवां विधानसभा चुनाव 1985

इस चुनाव में पहले निर्दलीय और फिर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके अब्दुल हादी लोक दल के उम्मीदवार बने. जबकि कांग्रेस की ओर से मोहनलाल ने उन्हें टक्कर दी. 1985 के चुनाव के नतीजे आए तो लोक दल के टिकट पर अब्दुल हादी की जीत हुई, जबकि मनोहर लाल को हार का सामना करना पड़ा.

आठवां विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में अब्दुल हादी ने फिर पाला बदला और अब अब्दुल हादी जनता दल के उम्मीदवार बने. इस चुनाव में उनका मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार से था. कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए गणपत सिंह को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में गणपत सिंह के पक्ष में 33,299 वोट पड़े तो वहीं अब्दुल हादी के पक्ष में 43,840 मत पड़े. अब्दुल हादी एक बार फिर चौहटन के विधायक के रुप में विधानसभा पहुंचे.

9वां विधानसभा चुनाव 1993

इस विधानसभा चुनाव में एक बड़ा फेरबदल देखने को मिला. कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके भगवान दास इस बार निर्दलीय उम्मीदवार थे तो वहीं कई पार्टियां बदल चुके अब्दुल हादी एक बार फिर कांग्रेस में पहुंच चुके थे, जबकि 1980 से 1985 के बीच कांग्रेस विधायक रहे भगवान दास इस बार निर्दलीय के तौर पर चुनावी ताल ठोक रहे थे. इस चुनाव में भगवान दास के पक्ष में 60640 वोट पड़े और उन्हें प्रचंड जीत हासिल हुई. तो वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी अब्दुल हादी को करारी हार का सामना करना पड़ा. 

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दसवां विधानसभा चुनाव 1998

अब्दुल हादी भले ही पिछला चुनाव हार चुके थे, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर उन्हीं पर ही भरोसा जताया, जबकि इस चुनाव में उस वक्त के मौजूदा को विधायक भगवानदास बीजेपी के खेमे में जा चुके थे, अब मुकाबला कांग्रेस के अब्दुल हादी वर्सेस बीजेपी के भगवान दास के बीच था. इस चुनाव में अब्दुल हादी 64588 वोट मिले तो वहीं भगवानदास को महज 38,768 वोटों से संतोष करना पड़ा.

11वां विधानसभा चुनाव 2003 

इस चुनाव में भाजपा ने 1998 के चुनाव से सबक लेते हुए अपना प्रत्याशी बदला और गंगाराम चौधरी को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर अब्दुल हादी के जहाज पर ही सवार होकर चुनावी मैदान में उतरना ठीक समझा. इस इस कड़े चुनावी मुकाबले में गंगाराम चौधरी की जीत हुई और उन्हें 59,168 वोट मिले तो वहीं अब्दुल हादी के पक्ष में 52,595 वोट आए.

12वां विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने उम्मीदवार बदले और नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा. इसका एक बड़ा कारण इस सीट के सामान्य श्रेणी से SC सीट में तब्दील होने था. जहां कांग्रेस ने पदमाराम को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं बीजेपी ने तरुण राय कागा को अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में पदमाराम को बड़ी जीत हासिल हुई जबकि तरुण राय कागा को हार का मुहं देखना पड़ा.

13वां विधानसभा चुनाव 2013

इस विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों ने अपने पुराने प्रत्याशियों पर ही भरोसा जताया. जहां भाजपा की ओर से तरुण राय कागा चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक पदमाराम को टिकट दिया. मोदी लहर में सवार तरुण राय कागा 88,647 वोटों से जीते तो वहीं पदमा राम को महज 65,121 वोट मिले. तरुण राय चुनाव जीत गए और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी.

14वां विधानसभा चुनाव 2018

इस विधानसभा चुनाव की तस्वीर कुछ अलग थी, क्योंकि चुनावी मुकाबला दो पक्षों के बीच नहीं बल्कि त्रिकोणीय हो चला था. भाजपा और कांग्रेस के अलावा हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी चुनावी मैदान में थी. जहां भाजपा ने उस वक्त के तत्कालीन विधायक तरुण राय कागा तक टिकट काटा और उनकी जगह नए चेहरे आदु राम मेघवाल को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस ने अपने पुराने चेहरे पर ही विश्वास जताया और पदमाराम मेघवाल को मौका दिया. जबकि कांग्रेस से ही बागी हुए सूरताराम को आरएलपी ने अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में तीनों ही उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो पदमाराम मेघवाल की जीत हुई उनके पक्ष में 83,601 वोट पड़े.

सबसे बड़ी जीत-हार

चौहटन विधानसभा सीट के इतिहास में सबसे बड़ी जीत अब्दुल हादी के नाम रही. 1998 के विधानसभा चुनाव में अब्दुल हादी ने अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंदी भगवान दास को 25,820 मतों से हराया था. जबकि सबसे कम वोटों से जीत का रिकॉर्ड राम राज्य परिषद के फतेह सिंह के नाम रहा. 1962 में फतेह सिंह ने 2186 वोटों से जीत हासिल की थी. एक रोचक तथ्य यह भी है कि सबसे बड़ी जीत हासिल करने वाले अब्दुल हादी को ही 24 हजार से ज्यादा वोटों से 1993 में हार का सामना भी करना पड़ा था.

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