Anta News : 400 साल जल रही माता रानी की ज्योत, रोज दाल-बाटी-चूरमा का देवी की पीठ को लगता भोग
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Anta News : 400 साल जल रही माता रानी की ज्योत, रोज दाल-बाटी-चूरमा का देवी की पीठ को लगता भोग


बारां के अंता में विश्व का एक मात्र मंदिर हैं जहां देवी के विग्रह के पृष्ठ भाग अर्थात पीठ की पूजा होती है

Anta News : 400 साल जल रही माता रानी की ज्योत, रोज दाल-बाटी-चूरमा का देवी की पीठ को लगता भोग

Anta News : राजस्थान के बारां जिले के अंता के पास  सोरसन में विश्व का एक मात्र ऐसा मन्दिर है, जहां देवी की पीठ की पूजा होती है. ये प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर बारां जिले के अंता तहसील से 20 किलोमीटर दूर सोरसन गांव की बाहरी सीमा में स्थित है, जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि ब्राह्मणी माता का प्रकाट्य यहां पर लगभग 700 साल पूर्व हुआ था. तब ये देवी खोकर गौड़ ब्राह्मण पर प्रसन्न हुई थी इसलिए आज भी खोखर जी के वंशज ही मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं .

मंदिर में लगभग 400 वर्षों से अखंड ज्योति अबाध रूप से चल रही है. इस मंदिर परिसर में एक परंपरा ये भी है कि एक गुजराती परिवार के सदस्य ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और मीणा के राव भाट परिवार के सदस्य नगाड़े बजाते है. 

ये प्राचीन मंदिर चारों और परकोटे से घिरा हुआ है. इसको गुफा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि मंदिर के गर्भग्रह में एक विशाल चट्टान है जिस पर बनी चरण चौकी पर देवी की पाषाण प्रतिमा विराजमान है मंदिर के तीन प्रवेश द्वार हैं जिनमें दो लघु आकार के हैं और एक जो मुख्य प्रवेश द्वार है वह दीर्घाकार और कलात्मक है परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुंबद द्वार मंडप ओर शिकर युक्त गर्भग्रह है.

गर्भग्रह के प्रवेश द्वार की चौखट 5 गुणा 7 फुट आकार की है. जिसमें भी देवी प्रतिमा तक जाने का गंतव्य मार्ग 3 गुणा 2 फुट का ही है. इसलिए इसमें झुककर ही प्रवेश करना पड़ता है और आज भी पुजारी झुककर ही पूजा करते हैं.

मंदिर की विशेष खासियत यही है कि यहां पर देवी के विग्रह के अग्रभाग की पूजा ना होकर पृष्ठ भाग अर्थात पीठ की पूजा की जाती है. यहां के स्थानीय निवासी इसे पीठ पूजाना भी कहते हैं प्रतिदिन देवी की पीठ पर सिंदूर लगाया जाता है और कनेर के पत्तों से श्रंगार किया जाता है और रोजना दाल बाटी चूरमा का भोग लगाया जाता है. यह नंदवाना बोहरा परिवार की आराध्य देवी मानी जाती है. जिसमें माना जी नामक बोहरा का जन्म हुआ था. साथ ही गौतम ब्राह्मण भी इसे अपनी कुलदेवी मानकर पूजते हैं.

मंदिर के परिक्रमा स्थल के मध्य में देवी का विग्रह का मुख भी है जहां पर भी लोग परिक्रमा देते समय ढोक लगाते हैं मंदिर के दाएं और एक प्राचीन शिव मंदिर और नागा बाबाओं की समाधि स्थित है. यहां आने वाले हर दर्शनार्थी पीठ के ही दर्शन करते हैं. यहां श्रंगार भी पीठ का ही होता है और भोग भी पीठ को ही लगाया जाता है.

ऐतिहासिक स्थली होने के बाउजूद इसकी सार सम्भाल नहीं ली जा रही है. मन्दिर के पास स्थित कुंड वीरान खुर्द बुर्द पड़ा हुआ है और अब यहां पिकनिक मनाने आने वाले पर्यटकों के लिये कोई खास इंतजाम नहीं हैं. साथ ही यहां पर्यटकों के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है. वही आस पास का परिसर खंडर जैसा होता जा रहा है. मंदिर समिति अध्यक्ष जिला कलेक्टर के होने के बाद भी मंदिर दुर्दशा का शिकार है और अपना अस्तित्व खो रहा है.

रिपोर्टर -राम मेहता

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