झोपड़ी से निकलकर हॉवर्ड तक पहुंची रूमा देवी अब बाड़मेर में बदल रहीं हैं, 30 हजार महिलाओं की किस्मत
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झोपड़ी से निकलकर हॉवर्ड तक पहुंची रूमा देवी अब बाड़मेर में बदल रहीं हैं, 30 हजार महिलाओं की किस्मत

 रूमा देवी बताती है कि मैंने भी संघर्ष कर इस मुकाम को हासिल किया है. आर्थिक तंगी की वजह से मैं आठवीं कक्षा से आगे पढ़ नहीं पाई, तो मैं चाहती हूं कि मुझे जितनी परेशानियां आई है. वो मेरी बहनों को भाइयों को नहीं आए. 

झोपड़ी से निकलकर हॉवर्ड तक पहुंची रूमा देवी अब बाड़मेर में बदल रहीं हैं, 30 हजार महिलाओं की किस्मत

Barmer : झोपड़ी से निकलकर अभावों में अपने हाथ के हुनर का लोहा मनवाकर अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी तक का सफर तय करने वाली रूमा देवी ने बाड़मेर जिले जरूरमंद बच्चों के भविष्य को सुधारने की कोशिश में जुटी हैं.  रूमा देवी, शिक्षा, खेल और कला के क्षेत्र की 60 प्रतिभाओं को हर साल 25-25 हजार रुपए की छात्रवृति देकर प्रोत्साहित कर रही हैं.

रूमा देवी कहती हैं कि बाड़मेर जिले में शिक्षा, कला और खेल के क्षेत्र में अनेक प्रतिभाएं हैं, मगर आर्थिक तंगी उनकी राह में रोड़ा बन रही है. प्रतिभाओं की इसी समस्या का समाधान करने के लिए अक्षरा छात्रवृत्ति योजना शुरू की है. जो ग्रामीण प्रतिभाओं के लिए वरदान से कम नहीं है.

बाड़मेर जिले की ग्रामीण इलाकों से आने वाली शिक्षा, खेल और कला की प्रतिभाओं का अब तक आर्थिक तंगी के चलते घरों में ही उनका हुनर दबकर रह जाता था, लेकिन अब उस हुनर को विश्व पटल पर लाने का बीड़ा बाड़मेर की बेटी और अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर रूमा देवी ने उठाया है. जिन्होंने पिछले 2 सालों से लगातार आर्थिक रूप से कमजोर खेल और शिक्षा-कला की प्रतिभाओं को निखारने के लिए अक्षरा छात्रवृत्ति योजना के तहत 25-25 हजार का प्रति वर्ष आर्थिक सहयोग देकर प्रोत्साहन कर रही है.

रूमा देवी ने वर्ष 2021 में 50 खेल, शिक्षा और कला की प्रतिभाओं को 25 - 25 हजार की रूमा देवी सुगनी देवी फाउंडेशन की अक्षरा छात्रवृत्ति दी है और वर्ष 2022 में 60 प्रतिभाओं को 25-25 हजार की छात्रवृत्ति दी है. दो सालों से लगातार छात्रवृत्ति पाने वाली क्रिकेटर अनीशा बानो ने बताया कि मुझे इंडियन वूमेन नेशनल क्रिकेट टीम में जगह बनानी है, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे आज लगातार दूसरी बार अक्षरा छात्रवृत्ति से लाभान्वित होने का अवसर मिला, जिससे मैं खेल किट खरीद कर आगे बढ़ने की कोशिश करूंगी.

बायतु भीमजी की रहने वाली विमला बताती है की मेरे पिताजी साधारण किसान है और अक्षरा छात्रवृति से लाभान्वित होने पर उसने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया है और अब वो वहां पर B.A फर्स्ट ईयर में पढ़ाई कर रही है. कुश्ती में अपना भाग्य आजमाने वाले पहलवान रफीक खान ने कहा कि मैंने अक्षरा छात्रवृत्ति की बदौलत ही पिछले दिनों यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल और अंडर 23 सीनियर से सिल्वर मेडल जीत पाया. मेरी इच्छा 2028 में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों में भाग लेकर देश के लिए मेडल लाने की है.

अक्षरा छात्रवृत्ति को लेकर रूमा देवी बताती है कि मैंने भी संघर्ष कर इस मुकाम को हासिल किया है. आर्थिक तंगी की वजह से मैं आठवीं कक्षा से आगे पढ़ नहीं पाई, तो मैं चाहती हूं कि मुझे जितनी परेशानियां आई है. वो मेरी बहनों को भाइयों को नहीं आए. उसी के मद्देनजर इस अक्षरा छात्रवृत्ति योजना को चलाया जा रहा है और जिन प्रतिभाओं को हम छात्रवृत्ति प्रदान कर रहे हैं. उनकी पूरी मॉनिटरिंग करते हैं कि वह उस पैसे का सदुपयोग अपने प्रतिभा को निखारने में कर रहे हैं या नहीं.

रूमा देवी आगे कहते हैं कि मुझे बड़ी खुशी है कि पिछले कुछ सालों से जिन प्रतिभाओं को हमने छात्रवृत्ति प्रदान की है उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया है उसी की बदौलत कई प्रतिभाओं को हमने फिर से दोबारा छात्रवृत्ति प्रदान की है. रूमा देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं.  इन्होंने बचपन में बेइंतहा गरीबी देखी.

रूमा देवी आठवीं तक पढ़ पाई थी, 17 साल की उम्र में रूमा देवी की शादी बाड़मेर जिले के ही गांव मंगल बेरी निवासी टिकूराम के साथ हुई. साल 1998 से ये ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान बाड़मेर (जीवीसीएस) का संचालन कर रही है. ये एनजीओ राजस्थानी हस्तशिल्प जैसे साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य कपड़े तैयार करता है. आस-पास के 75 गांवों की 30 हजार महिलाएं इससे रोजगार पा रही हैं.

रिपोर्टर - भूपेश आचार्य

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