रणथम्भौर दुर्ग के चिठ्ठी वाले त्रिनेत्र गणपति को भक्त लिखते हैं लाखों पत्र, जानिए पूरी कहानी
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रणथम्भौर दुर्ग के चिठ्ठी वाले त्रिनेत्र गणपति को भक्त लिखते हैं लाखों पत्र, जानिए पूरी कहानी

भगवान गणेश को आने वाले निमन्त्रण पत्रों व चिटिठ्यों पर भगवान गणेश का पता भी लिखा जाता है. डाकिया इन चिटिठ्यां और निमन्त्रण पत्रों को श्रद्धा और सम्मान से यहां पहुंचाता है.

भगवान त्रिनेत्र गणेश को निमंत्रण भेजने से हर कार्य र्निविग्घन पूर्ण हो जाता है.

सवाई माधोपुर: राजस्थान के रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर दुनियां भर में एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां हर साल करोड़ों की संख्या में भगवान गणेश को चिटिठ्यां भेजी जाती है. भगवान गणेश को आने वाले निमन्त्रण पत्रों व चिटिठ्यों पर भगवान गणेश का पता भी लिखा जाता है. डाकिया इन चिटिठ्यां और निमन्त्रण पत्रों को श्रद्धा और सम्मान से यहां पहुंचाता है, जिन्हे मंदिर के पुजारी इन चिटिठ्यों एंव निमन्त्रण पत्रों को भगवान त्रिनेत्र गणेश को पढ़ कर सुनाते है.

माना जाता है की भगवान त्रिनेत्र गणेश को निमंत्रण भेजने से हर कार्य र्निविग्घन पूर्ण हो जाता है. रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर आस पास के लोगों सहित पूरे देश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है. साल भर यहां श्रद्धालुओं का सैलाब रहता है. यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन कर अपनी और अपने परिवार की कुशल क्षेम की कामना करते है. हर साल यहां हिन्दी महीने की भादवा मास की गणेश चतुर्थी के अवसर पर मेला लगता है. जिसमें स्थानीय लोगों के साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्रों से लाखों की तादात में श्रद्धालु यहां पहुंचते है. 
 
कहा जाता है की पूरे विश्व में रणथम्भौर दुर्ग स्थित त्रिनेत्र भगवान गणेश की प्रतिमा एक मात्र ऐसी प्रतिमा है जिस पर भगवान गणेश के तीन नेत्र है. यह प्रतिमा अनायास ही लोगों को अपनी ओर खींच लेती है. यहां के लोगों का मानना है की किसी भी कार्य को करने से पुर्व भगवान गणेश को निमंत्रण देना आवश्यक है, जिससे कार्य अपने आप सफल होता चला जाता है. खबर के मुताबिक यहां हर साल करोड़ों की तादात में चिटिठयां और निमंत्रण पत्र आते हैं. 

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भगवान त्रिनेत्र गणेश के मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन कर अपनी मनोकामना पुर्ति की कामना करते हैं. रणथम्भौर त्रिनेत्र गणेश को लेकर यहां के लोगों में कई प्रकार किदवन्तियां प्रचलित है. लोगों का मानना है की भगवान शिव ने जब बाल्य अवस्था में गणेश जी का शिश काटा था तो वो शिश यहा आकर गिरा था. तब से ही यहा भगवान गणेश के शिश की पुजा की जाती है. 

साथ ही कुछ लोगों का कहना है की यह मंदिर पांडवों के समय से भी पहले का है. जब भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था उस समय भगवान गणेश अपना विवाह नहीं होने को लेकर नाराज हो गये थे और अपनी मूसा सेना के द्वारा भगवान कृष्ण की बारात के रास्ते में बाधाऐं उत्पन्न कर दि थी तो कृष्ण भगवाने ने रणथम्भौर की ही रिद्धी सिद्धी के साथ भगवान गणेश का विवाह सम्पन्न करवाया था. यही कारण है इस मंदिर में भगवाने गणेश रिद्धी सिद्धी के साथ विराजमान है. 

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