आजादी के 70 वर्ष बाद भी लोग सड़क, पानी व बिजली की उम्मीद कर रहे है लेकिन अभी तक इन ग्रामीणों का सपना हकीकत में तब्दील नहीं हो पाया
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साकेत गोयल/सिरोही: देश में हर जगह जहां डिजिटल इंडिया की बात हो रही है वहीं राजस्थान के कुछ गांव ऐसे है, जहां पर डिजिटल इंडिया का सपना तो दूर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है. हम बात कर है राजस्थान के सिरोही जिले की ऐसे ही गांव की जो अब तक मूलभूत सुविधाओं से अछूता है. सिरोही जिले के पिण्डवाडा पंचायत समिति के भूला व बालोरिया आदिवासी क्षेत्र है. जहां के पाडा टोकरी व अणुआफली गांव आज भी गुमनाम जिदंगी बिता रहे है.
खबर के मुताबिक इन गांवों में मुलभूत सुविधाओं का अभाव है. आजादी के 70 वर्ष बाद भी लोग सड़क, पानी व बिजली की उम्मीद कर रहे है लेकिन अभी तक इन ग्रामीणों का सपना हकीकत में तब्दील नहीं हो पाया है. अरावली की खुबसूरत पहाड़ियो के बीच इन गांवों की सुंदरता किसी स्वीजरलैंड से कम नहीं हैं बारिश के दिनों में यहां की खूबसरती देखते ही बनती हैं लेकिन मुलभूत सुविधाओं के नाम पर यहां केवल उम्मीदों के लिए तरसती आंखे हैं गरीबी में अपनी जिदंगी गुजर बसर कर रहे यहां के अधिकांश ग्रामीण खेती पर निर्भर है.
भूला पंचायत समिति का पाडा टोकरी गांव आज भी गुमनामी की जिंदगी बिता रहा है. करीब 1000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में आजादी के 70 वर्ष बाद भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है, वहीं पेयजल के लिए कोई सुविधा नहीं है. बिजली के लिए यहां रोशनी के नाम पर केवल केरासिन से जलने वाली लालटेन है. यहां तक कि यहां कोई भी बेसिक फोन नहीं है. मोबाइल यहां खिलौने है क्योंकि यहां मोबाइल के लिए कोई भी नेटवर्क नहीं है. संचार का कोई भी साधन यहां नहीं है.
संचार के साधन के नाम पर है तो केवल एक ढोल. जब आदिवासियों को गांव में आपस में कोई भी संदेश देना होता है तो इस ढोल का उपयोग करते है. एक उंचे स्थान पर ढोल को बजाकर मैसेज दिया जाता है. इस ढोल की ठाप कर मतलब भी अलग अलग होता है. खुशी में इस ढोल की ठाप अलग होती है तो गम में अलग. अलग अलग संदेश ग्रामीणों को देने के लिए यहां ढोल की थाप बदल जाती है.
पाडा टोकरी गांव अपनी ग्राम पंचायत से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन ग्रामीणों को सड़क के अभाव में पगडंड़ियों के सहारे यह सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. इन पगडंडियों पर न कोई वाहन जा सकता है और नहीं आ सकता है. बारिश के दिनों में यहां के हालात और भी भयावह हो जाते है. यहां तक कि इस गांव में पानी तक कि व्यस्था नहीं है. लोग बरसाती नदियों के पानी लोग पीने को विवश हैं. इस पानी के लिए भी आदिवासी महिलाएं व पुरूष करीब 1 से दो किलोमीटर तक सर पर मटका लेकर पानी लाने को मजबूर है.
वहीं पाडाटोकरी गांव में कोई भी अस्पताल नहीं है. यहां जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो उसकों चिकित्सक के यहां लेकर जाने के लिए भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. सड़क के अभाव में वाहन इन गांव मे नहीं पहुच पाते है जिसके कारण कपड़े की झोली मरीजों को इसमें बैठाकर उन्हें ग्रामीण लेकर जाते है. टहां तक कि ऐसा ही कुछ हाल वालोरिया ग्राम पचायंत का अणुआफली गांव का है जहां पर मूलभूत सुविधाएं नहीं है. यहां के ग्रामीण भी रात के अंधेरे में अपनी रात बिताते है. जो अब तक बिजली पानी और सड़क जैसी सुविधाओं से अछूता है.