राजपरिवार की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं कैलादेवी, हर मनोकामना होती है पूर्ण
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1005431

राजपरिवार की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं कैलादेवी, हर मनोकामना होती है पूर्ण

करौली के कैलादेवी मंदिर (Kailadevi Temple) की तरह ही यहां पर भी देशभर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.

कैलादेवी मंदिर.

Bharatpur: सैकड़ों वर्षों से झील का बाड़ा स्थित कैलादेवी भरतपुर (Bharatpur News) के पूर्व राजपरिवार की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है. मंदिर में विराजमान मूर्ति का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है. यहां पहली बार कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते शारदीय नवरात्रि (Navratri 2021) में लक्खी मेले का आयोजन नहीं किया गया है.

यह भी पढ़ेंः माता के इस 41वें शक्ति पीठ मंदिर में होती है हर मुराद पूरी, जो जाता है नहीं आता खाली हाथ

इस बार भी मेले के आयोजन पर जिला प्रशासन द्वारा रोक लगाई हुई है लेकिन भक्त फिर भी दूर से दर्शन करने आ रहे है. करौली के कैलादेवी मंदिर (Kailadevi Temple) की तरह ही यहां पर भी देशभर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.

इतिहास
वरिष्ठ साहित्यकार रामवीर सिंह वर्मा (Ramveer Singh Verma) बताते हैं कि भरतपुर राज्य के शासकों की ओर से विभिन्न दरबारों और पूजा-अर्चना के कार्यक्रम परंपरागत तरीके से भव्य रूप से होते थे. भरतपुर के दक्षिण-पश्चिम भाग में बयाना के पास झील का बाड़ा नामक स्थान पर कैलादेवी का विशाल परिसर है.

इस प्राचीन मंदिर का पुर्नरुद्धार महारानी गिर्राज कौर (Maharani Girraj Kaur) ने कराया था और वर्तमान देवी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 1923 ई. में की गई. पूर्व महाराजा बृजेंद्र सिंह (Maharaja Brijendra Singh) इसी मंदिर में अष्ठमी की पूजा करने जाया करते थे. यहां बड़ा लक्खी मेला लगता था, जो कि नवरात्र से आरंभ होकर पूरे दिन तक चलता है लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इस साल दोनों ही नवरात्रि में मेला नहीं लग सका है.

महाराजा मंदिर परिसर में बैठकर देवी की पूजा करते थे
रियासतकालीन समय में एक बहुत बड़ा शामियाना झील का बाड़ा में लगाया जाता था, जहां पर महाराजा बृजेंद्र सिंह जल्दी पहुंच कर प्रथम स्नान किया करते थे और पीताम्बरी पहन कर पूजा अर्चना करते थे. मंदिर में महाराजा के पूजा करने की विशेष व्यवस्था की जाती थी और महाराजा मंदिर परिसर में बैठकर देवी की पूजा करते थे.

यह भी पढ़ेंः श्रीगंगानगर में मां दुर्गा का 65 साल पुराना मंदिर, होती है नौ स्वरूपों की आराधना

साथ ही उसी समय मंदिर परिसर में देवी के भक्त, जो भोपा नाम से जाने जाते हैं, अपना नाच और गायन प्रस्तुत करते थे. देश की अन्य देवियों की तरह महाराजा बली चढ़ा कर उन भोपों को इनाम देते थे. शामियाने के पीछे अलग एक कक्ष बनाया जाता था और उसमें दोपहर का सादा भोजन होता था. उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों से आए गायक भजन प्रस्तुत करते थे. शाम की आरती करने के बाद महाराजा वापस भरतपुर अपने महल में आ जाते थे. इस प्रकार मेले में जाने से उनका जनसंपर्क बढ़ता था और साथ ही अनुष्ठान होते थे.

प्राचीन समय में बहता था झरना
मंदिर को भरतपुर के राजाओं ने बनवाया था. मन्दिर के सामने बने रवि कुंड को 12 अप्रैल 1924 को पूर्व महाराजा बृजेंद्र सिंह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में बनवाया गया. इस कुण्ड के निर्माण को लेकर एक बीजक मन्दिर में लगा है. इसमें रवि कुंड अमृत झरना के निर्माण को स्पष्ट किया है.

मन्दिर महंत बृजकिशोर ने बताया कि गऊ घाट से प्राचीन समय में झरना बहता था और उसे अमृत झरना कहते थे. रजवाड़े का समय भरतपुर के पूर्व राजपरिवार ने कुंड का निर्माण कराया था. उन्होंने बताया कि यह राजपरिवार की ही संपत्ति रही है और उन्होंने ही निर्माण कराकर देवस्थान विभाग को सुपुर्द किया था. आज भी यह परिवार किसी भी काम को करने से पहले माता की पूजा कराते हैं. अब हाल में देवस्थान विभाग मन्दिर की देखरेख करता है. 

Reporter- Devendra Singh

Trending news