नरसी प्रसंग सुनकर भावविभोर हुए श्रोता, भक्ति देखकर लोगों ने कही ये बात
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नरसी प्रसंग सुनकर भावविभोर हुए श्रोता, भक्ति देखकर लोगों ने कही ये बात

आरती के साथ प्रारंभ हुई कथा में व्यासपीठ से पंडित कैलाश शास्त्री ने नरसीजी को मायरा का आमंत्रण मिलने के प्रसंग की भावपूर्ण व्याख्या की. 

नरसी प्रसंग सुनकर भावविभोर हुए श्रोता

Shahpura: जिले की शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र के रामपुरिया गांव में चल रही तीन दिवसीय कथा 'नानीबाई रो मायरो' के दूसरे दिन पंडित कैलाश शास्त्री द्वारा नरसी के प्रसंग की व्याख्या करने पर उपस्थित श्रोता भक्ति भाव विभोर हो उठे.

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आरती के साथ प्रारंभ हुई कथा में व्यासपीठ से पंडित कैलाश शास्त्री ने नरसीजी को मायरा का आमंत्रण मिलने के प्रसंग की भावपूर्ण व्याख्या की. आमंत्रण मिलने पर नरसीजी को हुई खुशी का वर्णन किया तो उपस्थित श्रोता भक्ति आनंदित हो उठे. 

आमंत्रण का संदेश लेने वाले जोशी के स्वागत पर चुटकी लेते हुए सभी को हंसकरउनमें ऊर्जा भर दी. कथा के दौरान कलाकारों ने नरसीजी संग सूर्या और वेश बदलकर आए सांवरिया सरकार की झांकी के रूप में नृत्य नाटिका की प्रस्तुति देकर श्रोताओं का मनोरंजन किया.

कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया जाता है. भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं. कथा का झांकियों के साथ विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि नानी बाई रो मायरो की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से हुई. नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ. 

नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे और वो अपनी दादी के पास रहते थे. उनका एक भाई-भाभी भी थे. भाभी का स्वभाव कड़क था. एक संत की कृपा से नरसी की आवाज गई और उनका बहरापन भी ठीक हो गया. नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए. नरसी का विवाह हुआ लेकिन छोटी उम्र में पत्नी भगवान को प्यारी हो गई तो नरसी का दूसरा विवाह कराया गया. 

समय बीतने पर नरसी की लड़की नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ. इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया. नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे. वे उन्हीं की भक्ति में लग गए. भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए और उसके बाद नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए. उधर नानीबाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लायक हो गई पर नरसी को कोई खबर नहीं थी. 

लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया. नरसी के पास देने को कुछ नहीं था. उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई पक मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ और अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही लड़की के ससुराल के लिए निकल पड़े. कथा के बीच पंडित जी द्वारा गाए गए मधुर भजनों पर पंडाल में बैठे श्रद्धालु झूम उठे.

Reporter: Mohammad Khan

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