मौत के दिए के साथ, अस्पताल आए परिजन, ढोल बजाकर वापस भी ले गए
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मौत के दिए के साथ, अस्पताल आए परिजन, ढोल बजाकर वापस भी ले गए

जहां अंधविश्वास के चलते एक मृत आत्मा की जोत ले जाने की परम्परा निभाई जाती हैं. गांवों से आए मृतक के परिजन ढोल बजाते, पूजा की सामग्री लेकर उस वार्ड में जाते है, जहां इनके परिवार के किसी सदस्य की अस्पताल में मौत हुई हो. यहाँ ये लोग दीपक जला कर पूजा करते है और मृत आत्मा को ले जाते हैं. जिससे अस्पताल के वार्ड में भर्ती रोगियों में खलल पैदा होने के साथ मनोदशा पर कुप्रभाव पड़ता हैं.

 

अस्पताल में अंधविश्वास

Mandalgarh: एक तरफ तो देश और दुनिया 21वीं सदी में हाईटेक होती जा रही है. अब वीडियो कॉल करने जैसी तकनीक सामान्य बात हो चुकी है. इंसान चांद सहित मंगल ग्रह पर पहुंच चुका है. इसके बाद भी देश में अंधविश्वास अभी भी कायम है. भीलवाड़ा में मांडलगढ़ के सरकारी अस्पताल में भी एक अंधविश्वास का मामला सामने आया हैं. 

जहां अंधविश्वास के चलते एक मृत आत्मा की जोत ले जाने की परम्परा निभाई जाती हैं. गांवों से आए मृतक के परिजन ढोल बजाते, पूजा की सामग्री लेकर उस वार्ड में जाते है, जहां इनके परिवार के किसी सदस्य की अस्पताल में मौत हुई हो. यहाँ ये लोग दीपक जला कर पूजा करते है और मृत आत्मा को ले जाते हैं. जिससे अस्पताल के वार्ड में भर्ती रोगियों में खलल पैदा होने के साथ मनोदशा पर कुप्रभाव पड़ता हैं.

मांडलगढ़ थाना क्षेत्र के डामटी गाँव की एक ग्रामीण महिला ने आज से 2 दशक पूर्व अस्पताल के वार्ड में एक बच्चे को जन्म दिया था. जन्म के थोड़ी देर बाद बच्चे की मौत हो गई थी. दो दशक बाद मृतक के परिजनों को देवता के किसी भोपा ने मृत बच्चे की आत्मा की जोत अस्पताल से लाने का फरमान दे दिया.

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मृतक के परिजन अस्पताल में ढोल बजाते पहुँचे . वहां पर कुछ अनुष्ठान कर साथ आई महिलाओं की देह में देवता आए. और देशी घी का दीपक जलाकर मृतक की आत्मा को एक बर्तन में रख अपने साथ ले गए. गांवों में आज भी मान्यता है कि मृत आत्माओं को किसी खास जगह स्थापित करने से उनकी मुक्ति हो जाती है. इसी मान्यता के चलते अस्पताल से जोत ले जाने की प्रथा एक परम्परा बनी हुई है. हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने वार्डों में इस तरह के क्रियाकलापों पर रोक लगा रखा है. लेकिन फिर भी अंधविश्वास इन सभी रुकावटों पर भारी पड़ता है. 

Report: Mohammad Khan

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