Swachh Survekshan 2022 : पिंकसिटी में सफाई के नाम पर खप रहे 730 करोड़ रुपए, फिर भी 5 सालों से टॉप रैंकिंग में नहीं है कोई जगह
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Swachh Survekshan 2022 : पिंकसिटी में सफाई के नाम पर खप रहे 730 करोड़ रुपए, फिर भी 5 सालों से टॉप रैंकिंग में नहीं है कोई जगह

Swachh Survekshan 2022 Report : पैसे सफाई के नाम पर पानी की तरह बह रहे हैं, पर रैंकिंग में कहीं कोई अता-पता नहीं है. ये हाल है  जयपुर निगम ग्रेटर और हैरिटेज का. यहां 250 वार्डों में 730 करोड़ रुपए सफाई के नाम पर खर्च होते हैं. लेकिन जब रैंकिंग की बात आती है तो देशभर में नगर निगम हैरिटेज 26वें और ग्रेटर 33 वें स्थान पर आता है. चूक कहां हो रही है. किसी लापरवाही है?

 

जयपुर के दोनों निगमों के  250 वार्डों में 730 करोड़ रु. सफाई के नाम पर खप रहे हैं.

Jaipur Swachh Survekshan 2022 Report : जयपुर निगम ग्रेटर और हैरिटेज के 250 वार्डों में 730 करोड़ रुपए सफाई के नाम पर खर्च करने के बाद भी स्वच्छता सर्वेक्षण में टॉप-20 में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं, जयपुर से इंदौर शहर थोड़ा ही बड़ा है. लेकिन उसके अनुपात में संसाधन भी लगभग उतने ही हैं, लेकिन फिर भी जयपुर टॉप 10 तो दूर की बात पिछले 5 साल में टॉप 20 सबसे साफ शहरों में भी अपने को खड़ा नहीं कर सका. इंदौर में नगर निगम एक होने के बावजूद नंबर वन हैं, जयपुर में उलटा दो नगर निगम होने के बावजूद रैकिंग में बहुत पीछे है. आपको रिपोर्ट के जरिए बताते हैं कि ऐसा इंदौर में क्या है जो लगातार नंबर वन की पॉजिशन बनाए हुए हैं.

स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 के नतीजे जारी होने के साथ जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज अपनी टॉप 20 में भी जगह नहीं बना सका. स्वच्छता के मामले में इंदौर ने जीत का सिक्सर लगाया है. शहर से बेपटरी हो चुकी स्वच्छता की व्यवस्था का खामियाजा एक बार फिर शहर ने भुगता है, यहीं कारण रहा कि देशभर में नगर निगम हैरिटेज 26वें स्थान और ग्रेटर 33 वें स्थान पर आया. 

जबकि प्रदेश में हैरिटेज प्रथम और ग्रेटर को दूसरा स्थान मिला. इस बार भी रैकिंग में हेरिटेज निगम आगे रहा और ग्रेटर निगम फिर पीछे रह गया. जबकि दोनों नगर निगम कुल बजट का 43 फीसदी तो कचरा प्रबंधन पर ही खर्च कर देते हैं, यानि की दोनों शहरी सरकारों का बजट 1700 करोड़ रुपए है. इसमें से 738 करोड़ रुपए कचरा प्रबंधन पर खर्च होते हैं. ग्रेटर नगर निगम एक रुपए में से 45 पैसा और हेरिटेज निगम 41 पैसा खर्च करता है. इसके बाद भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं, जिस गति से दोनों नगर निगम नम्बर एक की ओर बढ़ रहे हैं. वहां तक पहुंचने में हैरिटेज निगम को पांच वर्ष और ग्रेटर नगर निगम को 10 वर्ष लग जाएंगे. 

जयपुर में इस फेलियरशिप के पीछे सबसे बड़ा कारण राजनैतिक हस्तक्षेप है. जयपुर में आज नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज में 8500 से ज्यादा सफाई कर्मचारी है. जबकि दोनों नगर निगम में हर साल डोर टू डोर समेत अन्य सफाई व्यवस्था पर 800 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान है. उसके बाद हम फिसड्‌डी साबित हो रहे है. 

विशेषज्ञों की माने तो नगर निगम जयपुर शुरू से राजनीति का बड़ा केन्द्र बना हुआ है. यहां जयपुर का हर विधायक अपना हस्तक्षेप रखना चाहता है. यही कारण है कि यहां अधिकांश कर्मचारी-अधिकारियों को राजनैतिक संरक्षण मिला है. हालांकि दोनों ही शहर की मुखिया मानती हैं, हमारा अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा. लेकिन कुछ दिनों पहले तक ये ही टॉप-10 में आने का ढिंढोरा पीटते हुए नजर आते थे.

2-डोर टू डोर कचरा संग्रहण
इंदौर-डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का पूरा काम नगर निगम की गाड़ियों से किया जाता है. जिसके लिए 575 छोटी-छोटी गाड़ियां लगा रखी है, हर गाड़ी जियो टैगिंग और जियोफेनसिंग से मॉनिटर होती है और गाड़ी का एक रूट मैप फिक्स है. अगर कोई गाड़ी किसी जगह पर 5 मिनट से ज्यादा रुकती है या अपने निर्धारित रूट से अलग चलती है निगम में बने इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड सेंटर पर पॉपअप शो हो जाता है. इसकी मॉनिटरिंग इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर से प्रत्येक जोन होती है. हर जोन में एक व्यक्ति इनकी मॉनिटरिंग करता है कि गाड़ी नियमित और समय के अनुसार चलें. निर्धारित रूट के सभी घरों से कचरा संग्रहण कार्य करें. 

जयपुर के दोनों नगर निगम में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का कॉन्ट्रेक्ट पर है. यहां दोनों निगम में कुल 685 से ज्यादा गाड़ियां कलेक्शन के लिए लगी है. गाड़ियों की मॉनिटरिंग के लिए कोई इंटीग्रेटेड प्लान नहीं है. गाड़ी कब आती है, कहां जा रही है इसकी रियल टाइम मॉनिटिरंग का कोई मैकेनिज्म नहीं है. गाड़ियां अधिकारियों और ठेकेदार के कर्मचारी अपनी मर्जी से संचालित करते है. इस कारण यहां कई जगहों पर डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की गाड़ियां 2-3 या 4 दिन के अंतराल में आती है.

3-सेग्रीगेशन
इंदौर- यहां कचरा संग्रहण का काम 100 प्रतिशत सोर्स सेग्रीगेशन के आधार पर किया जाता है. इसमें 6 तरह का अलग-अलग कचरा लिया जाता है. इसमें सूखा कचरा, गीला कचरा, प्लास्टिक कचरा, ई-वेस्ट, घरेलु बायोवेस्ट शामिल है. हर गाड़ी में अलग-अलग डस्टबिन होते है. यही गाड़ियां कचरा संग्रहण कर निर्धारित कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर कचरा डंप करती है. जयपुर-गीला और सूख कचरा कलेक्शन की कोई व्यवस्था नहीं है. गाड़ी में अलग-अलग रंग के दो बॉक्स बने होते हैं, लेकिन दोनों अंदर से ओपन होते हैं, सेग्रिगेशन के लिए न तो कर्मचारी है और न ही लोगों को जागरूक कर रखा है. कचरा कलेक्शन के बाद गाड़ियां यहां से ट्रांसफर स्टेशन लेकर जाती है.

4-स्वच्छता मित्र
इंदौर-यहां प्रत्येक स्वच्छता मित्र (सफाई कर्मचारी) को एक निर्धारित बीट 800 मीटर निर्धारित की हुई है इसमें निर्धारित व्यक्ति को ही काम करना होता है. कचरा संग्रहण में लगी हर गाड़ी के साथ एक हेल्पर की व्यवस्था होती है. लेकिन घरों से कचरा उपभोक्ता को स्वयं गाड़ी में डालना होता है हेल्पर का काम गाड़ी से कोई कचरा गिरने की स्थिति में उसे संभालना होता है. अगर कोई बच्चा या सीनियर सिटीजन कचरा लेकर आता है तो उसकी सहायता करना होता है. जयपुर में स्वच्छता मित्र (सफाई कर्मचारी) की बीट तो निर्धारित है.लेकिन उसकी मॉनिटरिंग सही से नहीं होती.यहां अगर किसी सफाई कर्मचारी की बीट में भी बदलाव किया जाता है तो उसमें भी राजनैतिक हस्तक्षेप होने लगता है.

5-वेस्ट प्लांट
इंदौर-यहां पीपीपी मॉडल पर डंप साइट पर 100 टीपीडी क्षमता का कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलाइजेशन (सी एंड डी) वेस्ट प्लांट लगा है. इस तरह के निगम क्षेत्र में कुल 4 प्लांट संचालित हैं. निगम क्षेत्राधिकार में यदि कोई व्यक्ति या प्रतिष्ठान सी एंड डी वेस्ट उत्पन्न करता है तो उसको इसकी सूचना नगर निगम की है एप 311 पर दी जाती है. कंपनी के प्रतिनिधि उस व्यक्ति या प्रतिष्ठान से संपर्क करके वहां के सी एंड डी वेस्ट को उठाते है, जिसके बदले 700 रुपए प्रति ट्रॉली शुल्क निर्धारित है.
जयपुर-जयपुर में वर्तमान में कोई सी एंड डी वेस्ट प्लांट नहीं लगा है. यही नहीं सी एंड डी वेस्ट उठाने का नगर निगम में कोइ प्रावधान नहीं है.मजबूरन लोग निर्माणाधीन मलबा उठवाकर मुख्य रोड या बाइपास के किनारे डम्प कर देते है.

6-BIO CNG प्लांट
इंदौर-यहां पीपीपी मॉडल पर BIO CNG PLANT लगाया है.
इस प्लांट में 17000 KG BIO CNG बनती है। इससे जो आय प्राप्त होती है वह कंपनी की होती है.
जयपुर-यहां बायोवेस्ट के निस्तारण के लिए कोई BIO CNG PLANT नहीं है

स्वच्छता सर्वेक्षण में अंकों का गणित
श्रेणी------------------------हैरिटेज-------------निगम ग्रेटर निगम
सर्विस लेवल-(3000)--------1985.75-------------1743.06
सर्टिफिकेट (2250)--------- 600------------------ 600
सिटीजन वॉइस (2250)-----1645.21------------ 1534.22
कुल अंक (7500)----------4230.96-------------3877.28

आपको बताते हैं इस बार की रैकिंग
निगम हैरिटेज- 2022 में 26वीं रैंक और 2021 में 32वीं रैंक
निगम ग्रेटर- 2022 में 33वीं रैंक और 2021 में 36वीं रैंक

पिछले 4 साल की जयपुर की रैंकिंग
साल रैंकिंग
2017-----215
2018-----39
2019-----44
2020-----28

ये रहे सर्वेक्षण में पिछड़ने के कारण

1-जयपुर में राजनीति सबसे ज्यादा हावी है, राजनीतिक लालसा के कारण ही साल 2019 में नगर निगम को दो एरिया में विभाजित करके दो नगर निगम का गठन किया गया. लेकिन एक नगर निगम में आज तक संचालन समितियां नहीं बनी, जबकि दूसरे में पिछले दो साल से मेयर के कार्यकाल को सरकार ने अस्थित कर रखा है.

2-राजनीति हावी होने के कारण जनप्रतिनिधियो और अधिकारियों में हमेशा टकराव रहता है. इस कारण यहां अधिकारी-कर्मचारियों के संगठन और जनप्रतिनिधियों के बीच विवाद देखने को मिलते है. कई बार यहां कर्मचारियों के संगठन और जनप्रतिनिधियों (पार्षदों) एक-दूसरे के खिलाफ लामबंद हो जाते है और धरने-प्रदर्शन कर देते हैं.

3-लोगों की शिकायतों का समय पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। कॉल सेंटर्स पर जो शिकायतें आती है उनका निस्तारण नहीं होता, जिसके कारण लोगों में परेशान होते है. इस बार सिटीजन वॉइस स्वच्छता सर्वेक्षण टीम को फीडबैक दिया ही नहीं. लोगों ने सफाई सुधार में रूचि नहीं दिखाई. हेरिटेज को 70 फीसदी और ग्रेटर निगम को 60 फीसदी ही अंक ही मिल पाए.

4-शहर में सफाई व्यवस्था पर मॉनिटरिंग का जिम्मा जोन उपायुक्तों का है, लेकिन कोई भी अधिकारी अपने एरिया में हर रोज राउण्ड पर नहीं जाते. जोन उपायुक्त को हर रोज अपने एरिया में सुबह-सुबह एक से दो घंटे तक दौरा करके व्यवस्थाएं देखने के निर्देश है. लेकिन जोन उपायुक्त को दूर खुद नगर निगम कमिश्नर कभी अपने चैम्बर से बाहर नहीं निकलकर नहीं देखते की शहर की क्या स्थिति है.

डोर टू डोर कचरा संग्रहण ही स्वच्छ सर्वेक्षण में पास होने की पहली सीढ़ी यही है. लेकिन इसमें अब तक दोनों ही नगर निगम फेल हैं, हेरिटेज नगर निगम थोड़ा बेहतर काम कर रहा है. लेकिन ग्रेटर नगर निगम अब तक यह तय नहीं कर पाया है कि कचरा संग्रहण व्यवस्था ठेके पर देनी है या फिर अपने स्तर पर ही काम करवाना है. वर्ष 2017 में कचरा संग्रहण निजी हाथों में सौंप दिया था, लेकिन अब तक गीला- सूखा कचरा ही अलग नहीं हो पा रहा है. जबकि इंदौर में छह तरह का कचरा अलग-अलग एकत्र किया जाता हैं. कचरे से बिजली बनाने का प्लांट अब तक धरातल पर नहीं उतर पाया है.

यही हाल सीएंडडी वेस्ट प्लांट का है. पिछले पांच वर्ष से दोनों प्लांट की कवायद की जा रही है, लेकिन मूर्तरूप नहीं दिया जा सका. इसमें हर बार निगम को शून्य अंक ही मिल रहे हैं. कचरा मुक्त शहर जो टीम सर्वे करने आती है वो बाड़ों में जाकर कचरा संग्रहण, सफाई व्यवस्था देखती है. टीम 15 से 20 वार्डों में दौरा करती है. इस श्रेणी में दोनों में किसी भी निगम का खाता ही नहीं खुला. 

दोनों नगर निगमों ने वॉटर प्लस श्रेणी में आवेदन ही नहीं किया.ऐसे में सीधे 400 अंक की दौड़ से बाहर हो गए.उधर जयपुर नगर निगम हैरिटेज और ग्रेटर के अलावा सीएम गहलोत के गृह जिले जोधपुर के दोनों नगर निगम भी फिसड्डी साबित हुए.जोधपुर दक्षिण को 112वां और उत्तर को 182वां स्थान मिला है.वहीं यूडीएच मंत्री का गृह जिला फिसड्डी साबित हुआ है.धारीवाल के विधानसभा क्षेत्र कोटा उत्तर को 364वां स्थान मिला है, जबकि कोटा दक्षिण को 141वीं रैंक मिली है.

बहरहाल, स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में राजस्थान के शहरों का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा है. इस बार की रैंकिंग में टॉप-20 में प्रदेश का एक भी शहर शामिल नहीं हो पाया है.यही नहीं पूरे राज्य के परफार्मेंस में प्रदेश को 8वां स्थान मिला है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि राजस्थान को ओवरऑल अंक मध्यप्रदेश के मुकाबले आधे भी नहीं मिले हैं. मध्यप्रदेश के ओवरऑल अंक 4470 हैं जबकि राजस्थान के 2150 ही हैं. इसलिए मध्यप्रदेश के कई शहरों ने बाजी मारी है. इसलिए हमारी मुखिया और अफसरों को दावे से ज्यादा सफाई पर फोकस करना होगा.

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