Shardiya Navratri 2023: नवरात्रि पर देवी दुर्गा के नौ अवतारों या स्वरूपों की पूजा की जाती है. शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खडग, चक्र, त्रिशूल, तीर और बाई भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड, धनुष उत्कीर्ण है.
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Shardiya Navratri 2023: आमेर महल के जलैब चौक में शिला माता मंदिर अपनी बड़ी महिमा और चमत्कारिक केंद्र के लिए जाना जाता है. युद्ध के समय की बात हो या फिर किसी पर संकट आया हो, माता रानी को जिसने मन से याद किया उसने युद्ध भी जीता और संकट भी टला है. 16 वीं शताब्दी के इस मंदिर का आकर्षण अभी भी उसी तरह बरकरार है और जो भी यहां आता है उन्हें इसके माता रानी के दिव्य दर्शन होते हैं.
जयपुर राजपरिवार के कछवाहा वंश की आराध्य देवी रही शिला माता आजादी के बाद जयपुरवासियों की प्रमुख शक्तिपीठ है. मंदिर की बड़ी महिमा है और चमत्कारिक भी कहा जाता है कि आम्बेर रियासत (जयपुर स्थापना से पहले आम्बेर कहलाती थी रियासत) के प्रतापी शासक राजा मानसिंह प्रथम पर असीम कृपा रही.
माता शिला देवी का मंदिर अपनी बेजोड़ स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैं साथ में इस मंदिर की बड़ी महिमा है और चमत्कारिक भी. शिला माता के आशीर्वाद से ही मुगल शासक अकबर के प्रधान सेनापति रहते हुए राजा मानसिंह ने अस्सी से अधिक लड़ाईयों में विजय हासिल की. तभी से जयपुर राजवंश के शासकों ने माता को ही शासक मानकर राज्य किया.
आमेर महल परिसर में स्थित शिला माता मंदिर में आजादी से पहले तक सिर्फ राजपरिवार के सदस्य और प्रमुख सामंत-जागीरदार ही शिला माता के दर्शन कर पाते थे. वहीं अब रोजाना सैकड़ों भक्त माता के दर्शन करते हैं. चैत्र और अश्विन नवरात्र में तो माता के दर्शनों के लिए लम्बी कतारें लगती हैं और छठ के दिन मेला भरता है.
जयपुर के प्राचीन प्रमुख मंदिरों में शुमार इस शक्तिपीठ की प्रतिस्थापना पन्द्रहवीं शताब्दी में तत्कालीन आम्बेर के शासक राजा मानसिंह प्रथम ने की. माता रानी को मन से याद किया तो युद्ध भी जीता और संकट भी टल जाते है. आज भी कोई संकट आ जाता है तो माता रानी के दर्शन करने पहुंच जाते हैं. वैसे तो पूर्व राज परिवार के सभी सदस्य नवरात्रि में दर्शन करने के लिए जाते हैं और शिलामाताजी आराध्यदेवी हैं. हमेशा से उनका आशीर्वाद रहा है. अब तो दिन-प्रतिदिन आस्था बढती ही जा रही हैं. साल में वर्ष दो बार चेत्र और आश्विन के नवरात्र में यह मेला भरता है.
आमेर शिला माता मंदिर के पुजारी बनवारीलाल शर्मा के मुताबिक मंदिर का मुख्य द्वार चांदी का बना हुआ है. इस पर नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री उत्कीर्ण है. दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर, भैंरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी और कमला चित्रित है.
दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेशजी की मूर्ति प्रतिष्ठित है. मंदिर में विराजित शिला माता महिषासुर मर्दिनी के रुप में प्रतिष्ठित है. मूर्ति वस्त्रों और पुष्पों से आच्छादित रहती है. माता का मुख और हाथ ही दिखाई देते हैं. महिषासुरमर्दिनी के रुप में शिला देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिने हाथ के त्रिशूल मार रही है.
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इस मूर्ति के ऊपरी भाग में बाएं से दाएं तक अपने वाहनों पर आरुढ गणेश, ब्रह्मा, शिव, विष्णु व कार्तिकेय की मूर्तियां उत्कीर्ण है. शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खडग, चक्र, त्रिशूल, तीर और बाई भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड, धनुष उत्कीर्ण है. मंदिर में कलात्मक संगमरमर का कार्य महाराजा मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया था.
खास बात यह है शिलादेवी के बाई ओर अष्टधातु की हिंगलाज माता की स्थानक मूर्ति प्रतिष्ठित है. शिलादेवी के साथ मां हिंगलाज भी उतनी ही पूजित है, जितनी माता शिलादेवी. मंदिर की खास विशेषता है कि प्रतिदिन भोग लगने के बाद ही मन्दिर के पट खुलते हैं. साथ ही यहां विशेष रूप से गुजियां व नारियल का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है. माता रानी के तीन बार आरती और तीन बार ही भोग लगता हैं.
नवरात्र का पर्व शक्ति का प्रतीक माना जाता है. 9 दिन नौ देवियों की पूजा करने से शक्ति बढ़ती है. नवरात्र में आसुरी शक्तियों पर देवीय शक्तियों की विजय को प्रमाणित करता है, कि हमारे अंदर जो नकारात्मक शक्तियां हैं, आसुरी शक्तियां हैं.
जिन्हें हम राक्षसी प्रवृत्ति कहते हैं, उनका नाश करके उनके ऊपर दिव्य शक्ति सकारात्मक सोच की स्थापना करें।इन 9 दिन में ऐसी शक्ति और ऊर्जा प्राप्त करें, जिससे हम अपना परिवार का समाज का राष्ट्र का कल्याण कर सकें इसीलिए 9 दिन तक आराधना करने से जीवन सार्थक बनता है.