Jaipur: जयपुर में पिछले दिनों जोधपुर के सरदारशहर से विधायक रहें पण्डित भंवरलाल शर्मा के निधन से खाली हुई सीट पर 5 दिसम्बर को उप चुनाव होंगे. तारीख की घोषणा के बाद से ही इस चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन इस बीच सवाल यह है कि, क्या सरदारशहर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव वाकई सहानुभूति का चुनाव होगा? सवाल यह भी कि अगर सहानूभूति का उपचुनाव है तो क्या चुनाव से पहले ही नतीजे तय हो गए हैं या फिर यह पार्टियों की रणनीतिक पहल है?


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प्रदेश में मौजूदा विधानसभा के कार्यकाल में अभी तक सात सीटों पर विधानसभा उप चुनाव हुए हैं, अब एक बार फिर से प्रदेश में उप-चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. पिछले चार साल में राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे देखें तो सहानुभूति को नजरअंदाज तो कतई नहीं किया जा सकता. दूसरी तरफ बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि राजनीति में सहानुभूति एक कारक होता है, लेकिन हमेशा ही यह कारगर हो, ऐसा ज़रूरी भी नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां वोटर ने सहानुभूति से परे जाकर क्षेत्र का हित देखा और चुनाव किया. पूनिया ने कहा कि वे सरकार की तानाशाही और सियासी रवैये के खिलाफ पार्टी नेताओं के साथ मिलकर लड़ेंगे.


इस बीच पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा का कहना है कि बीजेपी के नेताओं में तो बयानों को लेकर भी आपस में प्रतिस्पर्द्धा रहती है. डोटासरा ने कहा कि आमतौर पर सतीश पूनिया के बाद राजेन्द्र राठौड़ बयान देते हैं और ऐसे लगता है कि उनका बयान देना जरूरी है. डोटासरा ने कहा कि राठौड़ और पूनिया कितना भी जोर लगा लें, कांग्रेस सरदारशहर का उपचुनाव जीतेगी. उधर बीजेपी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह का कहना है कि कांग्रेसी सिर्फ सहानुभूति के आधार पर बैठे हैं, लेकिन बीजेपी सरकार के खिलाफ बन रही एन्टी इन्कम्बेन्सी का मुद्दा लेकर जनता के बीच जाएगी. अरुण सिंह ने कहा कि सभी एकजुट होकर सरदारशहर के चुनाव में जाएंगे और जीत दर्ज करेंगे.


सात उपचुनाव में से पांच कांग्रेस और एक-एक सीट बीजेपी-आरएलपी के खाते में


प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक सात उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से पांच सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने जबकि एक बीजेपी ने और एक आरएलपी ने जीता है. अभी तक हुए उपचुनाव में से मंडावा, सहाड़ा, सुजानगढ़, वल्लभनगर और धरियावद की सीट कांग्रेस के पक्ष में गई है जबकि बीजेपी के खाते में एकमात्र राजसमंद सीट गई है. इसी तरह खींवसर की सीट आरएलपी के खाते में गई है. यहां से हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद उनके भाई नारायण बेनीवाल विधायक निर्वाचित हुए थे.


कब किसके पक्ष में रही सहानुभूति की लहर


विधानसभा के मौजूदा कार्यकाल की बात करें तो साल 2013 के बाद से जिन सात सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें से पांच सीटों पर निर्वाचित विधायक के निधन के बाद, जबकि खींवसर और मंडावा की सीट पर विधायक के लोकसभा चुनाव जीत जाने के चलते उपचुनाव हुए हैं.


खींवसर - हनुमान बेनीवाल के लोकसभा सांसद बन जाने के बाद उनके छोटे भाई नारायण बेनीवाल यहां से आरएलपी के टिकिट पर प्रत्याशी बने और चुनाव भी जीते.


मण्डावा - नरेन्द्र खीचड़ के झुंझुनूं सांसद निर्वाचित होने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की रीटा चौधरी चुनाव जीती. यहां बीजेपी ने परिवारवाद से किनारा किया जबकि रीटा विधानसभा चुनाव हारने के बाद में अपने पक्ष में सहानुभूति का माहौल बना चुकी थी.


सहाड़ा - यहां से विधायक रहे कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद उनकी पत्नी गायत्री त्रिवेदी को टिकिट दिया गया. कैलाश त्रिवेदी के निधन के बाद त्रिवेदी परिवार के पक्ष में सहानुभूति थी, जिसका असर उप चुनाव के नतीजों में भी दिखा और गायत्री त्रिवेदी चुनाव जीत गई.


सुजानगढ़ - पूर्व मन्त्री और सुजानगढ़ विधायक रहे मास्टर भंवरलाल मेघवाल की स्वाभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी उनकी पुत्री बनारसी मानी जाती थी, लेकिन मास्टर भंवरलाल से पहले बनारसी इस दुनिया से विदा हो गई, लिहाजा मेघवाल के पुत्र मनोज के पक्ष में दोहरी सहानुभूति लहर चली और उन्हें चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं आई.


राजसमन्द - अभी तक हुए उपचुनावों में बीजेपी के खाते में एक मात्र राजसमन्द सीट गई। यहां से दीप्ति माहेश्वरी चुनाव जीती और उनको भी अपनी मां और पूर्व विधायक किरण माहेश्वरी के काम के साथ ही सहानुभूति का भी फायदा मिला। यहां तक कि दीप्ति ने तो अपना नाम भी मां से जोड़कर दीप्ति किरण माहेश्वरी लिखना शुरू किया और चुनाव से पहले ही फोन नम्बर भी दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी का इस्तेमाल किया।


वल्लभनगर - कांग्रेस के विधायक रहे गजेन्द्र सिंह शक्तावक्त के निधन से खाली हुई सीट पर उनके बड़े भाई का भी दावा था, लेकिन यहां भी कांग्रेस ने सहानुभूति की लहर का असर समझते हुए दिवंगत विधायक की पत्नी प्रीति गजेन्द्र शक्तावत को टिकिट दिया. पार्टी के इस रणनीतिक फैसले का असर चुनाव नतीजों में दिखा और त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद प्रीति चुनाव जीत गई.


धरियावद - यहां से बीजेपी के विधायक रहे गौतमलाल मीणा के निधन के बाद सीट खाली हुई तो उनके पुत्र कन्हैयालाल मीणा की दावेदारी बीजेपी से मजबूत मानी जा रही थी, लेकिन पार्टी ने परिवारवाद से किनारा किया और सीट खो दी, अपनी गलती का अहसास बीजेपी को तब हुई जब धरियावद में पार्टी का प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया.


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