पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
कहते है प्यार ने जात देखता है, ना धर्म, ना उम्र देखता है ना लिंग, यहाँ तक कि प्यार किया भी नहीं जाता बस हो जाता है।
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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
कहते है प्यार ने जात देखता है, ना धर्म, ना उम्र देखता है ना लिंग, यहाँ तक कि प्यार किया भी नहीं जाता बस हो जाता है। जो इस दुनिया में प्यार को समझ लें बस उसे फिर किसी और ज्ञान से ना कोई लेना ना कोई देना. कुछ ऐसी ही कहानी है गौरी और दीपिका कोलिपरा की जो एक दूसरे के प्यार में ऐसी डूब गई कि, इस दुनिया जमाने की परवाह किये बिना हमेशा के लिए सात फेरों के बंधन में बंध गयी.
दीपा कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को में रहती है और 29 साल की है, पेशे से वकील है. लेकिन उनमें कुछ अलग बात थी उम्र के 23वें साल में दीपिका को पता चला कि वो पुरुषों से ज्यादा महिलाओं के करीब होने पर खुशी महसूस करती है.आखिरकार अपने आप को कई बार बदलने की कोशिश करने, लड़कों के साथ डेट पर जाने के बाद भी जब खुशी नहीं मिली तो दीपिका ने खुद की तलाश कर ली अपने मन की सुनी और स्वीकार किया कि वो लड़को से ज्यादा लड़कियों को पसंद करती है. लड़कियों को पसंद करने का दीपिका के मतलब ये नहीं है की वो एक लड़के की तरह रहना चाहती है, उसे आज भी रोसोइ में माँ के साथ डोसा बनाना, अपने दोस्तों के साथ बैठ कर घण्टों जोक मरना , सजना संवरना पसंद है. बस फर्क ये है कि उन्हें फिल्मों में हीरो की जगह हिरोइन पसंद हैं. लड़कियों के साथ वो भावनात्मक जुड़ाव महसूस करती है.
दीपिका ने एक बार बताया कि "मेरे लिए लोगों से ये कहना थोड़ा अलग था कि मैं अपनी पत्नी से कैसे मिली. हमारे भारतीय समाज में लड़कियों से यही अपेक्षा की जाती है कि वो सामज परिवार और एक रूढ़िवादी सोच के अनुसार खुद को ढालना सीखे. मैं एक समलैंगिक हूं और मुझे उस रूप में स्वीकार करना लोगों के लिए आसान नहीं होगा."
शुरुआत में दीपिका किसी भी लड़की को यह बताने में डरती थी कि वो उसे पसन्द करती है, क्योंकि जरूरी नहीं था कि हर किसी की पसन्द उसके जैसी हो. ऐसे में एलजीबीटी समुदाय की ऑनलाइन डेटिंग एप दीपका और उसे जैसे कई लोगों के लिए एक वरदान बनकर आई. जहाँ दीपिका अपनी सोलमेट गौरी से मिली. धीरे धीरे दीपिका और गौरी के बातें शुरू हुई और फिर वो बटरफ्लाई वाली फीलिंग गुदगुदाने लगी. कई सालों तक डेटिंग करने के बाद , प्यार की नदी में गोते लगाते लगाते दोनों ने अपने परिवार और समाज के आगे इजहार ए मुहब्बत कर ही दिया.
दोनों के परिवारों ने खुशी खुशी दोनों को समलैंगिक के तौर पर अपना लिया. एक भारतीय परिवार में अपनी बेटी को एक समलैंगिक के तौर पर अपना पाना बेहद मुश्किल होता है, लेकिन दीपिका और गौरी मानती है कि वो खुशकिस्मत हैं, जो उन्हें ऐसा परिवार मिला जिसने उन्हें एक समलैंगिक के रूप के स्वीकार किया. दोनों ही परिवारों ने पूरे उत्साह के साथ उनकी शादी की तैयारियों भी की, बस दोनों के परिवार को एक चिंता थी कि उनका समाज और रिश्तेदार क्या बच्चों की खुशी स्वीकार कर पाएंगे. क्योंकि भारत मे आज भी एलजीबिटी समुदाय के लोगों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है. वास्तविक रूप से खुली सोच वाले लोगों का आज भी तबका बहुत छोटा है . यही कारण है कि उनकी शादी भारतीय रीतिरिवाजों के साथ यूएस में हुई. 7 फेरे लेकर गौरी और दीपिका एक दूसरे की हो गयी.
दीपिका बताती है कि आज भी इंडिया में मैं और गौरी सार्वजनिक रूप से ना हाथ पकड़ सकते है ना ही पति पत्नी की तरह रोमांस कर सकते है. यही नहीं यहाँ तक कि कुछ देशों में घूमने जाने पर हमें सजा तक हो सकती है. हम नहीं जानते ये सब कब बदलेगा पर बदलेगा जरूर. हमारा समाज भी रूढ़िवादी सोच से आगे बढ़कर हमारे परिवारों की तरह हमें स्वीकार करेगा, एलजीबीटी समुदाय को स्वीकार करेगा.
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