Jaisalmer में फिर नजर आए 10 साल पहले लुप्त हुए दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों के झुंड
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Jaisalmer में फिर नजर आए 10 साल पहले लुप्त हुए दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों के झुंड

जैसलमेर के ओरणों में दुर्लभ गिद्धों के विचरण से पर्यावरण प्रेमियों, वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षकों में खुशी है. 

हिमालयन ग्रिफन प्रवासी हैं, जो सर्दी में देशांतर गमन कर भोजन के लिए पहुंचते हैं.

Jaisalmer: जिले की फतेहगढ़ तहसील (Fatehgarh Tehsil) के श्री देगराय मंदिर ओरण (Shri Degray Mandir Oran) में 10 साल पहले जैसलमेर से गायब हुई हिमालयन ग्रिफन दुर्लभ गिद्ध प्रजाति अब नज़र आने लगी है. देगराय ओरण में पर्यावरण प्रेमियों को झुंड में नज़र आए हैं. संकटग्रस्त गिद्ध के झुंड में नज़र आने से पर्यावरण प्रेमियों में खुशी है. 

देगराय ओरण में पर्यावरण प्रेमियों और वन्यजीव संरक्षकों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली निगरानी में बुधवार को एक साथ विभिन्न प्रजातियों के गिद्धों को देखा गया. जैसलमेर के ओरणों में दुर्लभ गिद्धों के विचरण से पर्यावरण प्रेमियों, वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षकों में खुशी है. 

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सुमेर सिंह (Sumer Singh) ने बताया कि दुर्लभ गिद्ध हिमालय से जैसलमेर आते हैं. इनका प्रवास का समय अक्टूबर-नवंबर से फरवरी महीने तक का होता है लेकिन 10 साल से इनका जैसलमेर आना बंद हो गया था. इनका पिछले साल से ही अचानक वापस जैसलमेर प्रवास शुरू हुआ है. इस बार ये एक साथ झुंड में नज़र आने से हम लोग काफी खुश है. ये संकटग्रस्त गिद्ध पर्यावरण को शुद्ध रखने में काफी मददगार होते हैं. इनकी वजह से पर्यावरण शुद्धता बरकरार रहती है. 

हजारों किलोमीटर की यात्रा कर जैसलमेर पहुंचते हैं हिमालयन ग्रिफन 
हिमालयन ग्रिफन प्रवासी हैं, जो सर्दी में देशांतर गमन कर भोजन के लिए पहुंचते हैं. ये हिमालय के उस पार मध्य एशिया, यूरोप, तिब्बत आदि शीत प्रदेश इलाकों से आते हैं. तेज़ सर्दियों में वहां भोजन नहीं मिल पाता. जिले की सर्दी इनके तापमान के अनुकूल होने के कारण वे यहाँ प्रवास करने को आते हैं. जिले में चूंकि पशुपालन बहुतायत में होता है इसलिए यहां इनको भोजन की कमी भी नहीं रहती है और पर्याप्त भोजन मिल जाता है. मुख्यतया ये मरे हुए पशुओं आदि को खाते हैं, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध रहता है.

कैसे किया जा रहा गिद्धों का बचाव
अनुसंधान के अनुसार, पेस्टिसाइड एवं डाइक्लोफैनिक के अधिक इस्तेमाल के चलते गिद्ध प्रजाति संकट में पहुंची है. फसलों में पेस्टीसाइड के अधिक इस्तेमाल से घरेलू जानवरों में पहुंचता है. वहीं, मृत पशु खाने से गिद्धों में पहुंचता है. वर्ष 1990 से ही देशभर में गिद्धों की संख्या गिरने लगे. गिद्धों पर यह संकट पशुओं को लगने वाले दर्द निवारक इंजेक्शन डाइक्लोफैनिक की देन थी. मरने के बाद भी पशुओं में इस दवा का असर रहता है. गिद्ध मृत पशुओं को खाते हैं. ऐसे में दवा से गिद्ध मरने लगे. इसे ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने पशुओं को दी जाने वाली डाइक्लोफैनिक की जगह मैलोक्सीकैम दवा का प्रयोग बढ़ाया है. यह गिद्धों को नुकसान नहीं पहुंचाती.

Reporter- Shankar Dan

 

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