आज कालाष्टमी पूजा, इस बीज मंत्र के जप से होगा शत्रुओं को नाश, अज्ञात डर होगा समाप्त
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आज कालाष्टमी पूजा, इस बीज मंत्र के जप से होगा शत्रुओं को नाश, अज्ञात डर होगा समाप्त

Kalashtami Vrat 2023 : वैदिक पंचांग के अनुसार कालाष्टमी का व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. जो कि आज है. आज अधिकमास की कालाष्टमी है. आज का दिन काल भैरव को समर्पित होता है. काल भैरव भगवान शिव के अवतार हैं साथ ही काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है.

आज कालाष्टमी पूजा, इस बीज मंत्र के जप से होगा शत्रुओं को नाश, अज्ञात डर होगा समाप्त

Kalashtami Vrat 2023 : वैदिक पंचांग के अनुसार कालाष्टमी का व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. जो कि आज है. आज अधिकमास की कालाष्टमी है. आज का दिन काल भैरव को समर्पित होता है. काल भैरव भगवान शिव के अवतार हैं साथ ही काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है.

आज के दिन भैरव स्तुति का पाठ करने से हर संकट से मुक्ति मिल सकती है. लेकिन इस व्रत करने के कुछ नियम भी है. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे कालाष्टमी व्रत किया जाता है और पूजा के दौरान कौन सा बीज मंत्र  लिया जाता है. 

कालाष्टमी व्रत पूजा विधि
स्वच्छ वस्त्र पहन कर मंदिर की चौकी पर एक साफ का वस्त्र बिछा ले औऱ फिर बाबा काल भैरव की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर लें.
भगवान शिव और गणेश जी को भी चौकी पर स्थापित करें.
बाबा भैरवनाथ को फूल, अक्षत्, माला, पान, धूप, दीप समेत भोग अर्पित करें.
 काल भैरव के मंत्र “ऊं काल भैरवाय नमः” का जाप करते हुए पूजा करें.
 मंदिर में तेल का दीपक जलाएं और शाम को भैरव मंदिर में जाकर इमरती का भोग लगाएं,
आज के दिन  कुत्ते को भी इमरती खिलानी चाहिए. क्योकि कुत्ते को कालभैरव का वाहन माना जाता है.
इस प्रकार की गयी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और अज्ञात डर समाप्त होता है.

काल भैरव मंत्र
भैरव स्तुति यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं।सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं। पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं। घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।
कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं।
 तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं। 
धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं। नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं। खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।
 टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं। 
भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो।
निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।
नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं। 
सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।
।भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।। 
स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।

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