दीपक गोयल/जयपुर: जनता अपनी समस्या का समाधान और सुनवाई के लिए जिला कलेक्टर से बड़ी उम्मीद लगाती है. जनता उसे अपना ‘अधिकारी’ मानती है, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश जिलों में सिर्फ कलेक्टर नियुक्त है, जनता के ‘अधिकारी’ कोई दूर तक दिखाई नहीं दे रहा. इसकी वजह भी कुछ हद तक सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार है. एक कलेक्टर के पास 84 जिला स्तरीय कमेटियों की जिम्मेदारी है. साथ ही हर दिन कम से कम दो से तीन बैठकों में कलेक्टर भाग ले रहे हैं. ऐसे में अधिकांश कलेक्टर विकास की चर्चा और जनता से जुड़ाव करने में पिछड़ रहे हैं.
राज्य सरकार गुड गर्वनेंस की बात तो करती है, लेकिन उसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही. जिला कलेक्टरों के पास 84 कमेटियों की जिम्मेदारी से वह खुद हैरान और परेशान हैं। ऐसे में अधिकांश कमेटियों की बैठकें महज औपचारिक होकर रह जाती है, जिनका कोई नतीजा नहीं निकलता। कलेक्टर अधिकांशतया जिला स्तरीय बैठकों के साथ प्रदेश स्तरीय वीडियोकांफ्रेंसिंग में व्यस्त रहते हैं. मैराथन बैठकों की भरमार के चलते अधिकांश जिला कलेक्टर कार्यालयों में आमजन की सुनवाई नहीं हो रही. जनता कलेक्टर कार्यालयों के बाहर कलेक्टरों के आने का इंतजार करके लौट रहे हैं. प्रशासनिक सुधार विभाग ने कुछ वर्ष पहले जिला स्तरीय कमेटियों की संख्या 20 से कम करने की सलाह दी थी. सरकार ने ऐसा तो नहीं किया, बल्कि इस सलाह के बाद करीब 15 कमेटियां और बना दी.
अधिक जिम्मेदारी का यह पड़ रहा असर
कलेक्टरों के पास समय की कमी के चलते कुछ जिलों को छोडक़र अधिकांश जिलों में विकास की ठोस और विजन वाली योजनाएं नहीं बन रही.
भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखकर सड़क, पुल, ड्रेनेज, अस्पताल, स्कूल, कॉलेजों की योजनाएं नहीं बनने से जनता सजा भुगतने को मजबूर.
गांवों में रात्रि विश्राम व जनसुनवाई बंद हो गई.
अधिकांश जिलों में कलक्टरों के गांवों में रात्रि विश्राम और जनसुनवाई कार्यक्रम गत कई वर्षों से बंद पड़े हैं.
यह है कलेक्टर के पास आठ बड़ी जिम्मेदारी
1. कलेक्टर: राजस्व, खनिज, आबकारी समेत अन्य तरह के कर संग्रहण, कोष कार्यालयों की मॉनीटरिंग, जमीन और सरकारी संपत्ति से जुड़े मुद्दे.
2. मजिस्ट्रेट: जिलों में कानून व्यवस्था बनाना, पुलिस व जेल का सुपरविजन, शांति कायम करने के लिए धारा 144 लागू करवाना, स्पेशल क्राइम और सिक्यूरिटी मामलों में वारंट जारी करना.
3. प्रशासक: जिलों का चीफ प्रोटोकॉल ऑफीसर, एसडीओ-तहसीलदार का सुपरविजन, कर्मचारियों का वेतन और पेंशनरों की पेंशन बनवाना.
4. विकास अधिकारी: जिले में विकास और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करवाना, पीडब्लयूडी, सिंचाई, ऊर्जा, वन, कृषि और चिकित्सा विभाग में सीधे दखल. विभिन्न विभागों और एजेन्सियों में समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी.
5. आपदा राहत प्रबंधक: जिला स्तरीय आपदा राहत कमेटी के अध्यक्ष होने के नाते आपदा राहत की प्लानिंग, बाढ़-भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शुरू करवाना और प्रभावितों का विस्थापन.
6. खाद्य व नागरिक आपूर्ति: सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सरकारी योजनाओं के तहत लोगों को रियायती दर पर खाद्यान्न व अन्य सामग्री वितरण, जमाखोरी रोकना, सरकारी दर पर खाद्यान्न की खरीद.
7. निर्वाचन अधिकारी: लोकसभा से लेकर पंचायत स्तर तक के निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी.
8. अन्य कार्य: अन्य कोई भी सरकारी कार्य जो कि किसी विभाग के अधीन नहीं आ रहे हो, उनकी जिम्मेदारी जिला कलेक्टर के पास.
बहरहाल, पिछले दिनों सीएम गहलोत ने वीसी के दौरान कलेक्टर्स को सख्त हिदायत देते हुए कहा था कि कलेक्टर जिलों में सरकार का चेहरा हैं. संवेदनशीलता और सुशासन की मंशा के अनुरूप काम करें. प्रशासनिक तंत्र की कार्यशैली भी उसके अनुरूप होनी चाहिए. हल होने वाली समस्याओं के लिए जयपुर आने की जरूरत नहीं होनी चाहिए चाहिए. प्रकरण सामने आए तो जिम्मेदार अधिकारी पर कार्मिक सचिव, प्रशासनिक सुधार विभाग के सचिव तथा मुख्य सचिव से चर्चा कर कार्रवाई की जाएगी.