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Rajasthan Politics : मॉनसून राजस्थान में दस्तक दे चुका है. लेकिन बारिश की फुहारों की ठण्डक चुनावी साल में हो रही सभाओं के मंच से आने वाले बयानों की आंच में कहीं मद्धम पड़ रही है. दरअसल चुनावी साल में राजस्थान में एक बार फिर राजनीतिक पार्टियों के बीच परिवारवाद को लेकर जुबानी जंग दिख रही है. दरअसल पहले गुरुवार को भरतपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्य्क्ष जेपी नड्डा और अब आज उदयपुर में अमित शाह की सभा के मंच से कांग्रेस और दूसरी पार्टियों में नेताओं के परिवारवाद को लेकर निशाना साधा गया. इधर पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा ने बीजेपी में परिवारवाद का उदाहरण देते हुए उल्टा सवाल खड़े कर दिए. डोटासरा ने चुनौती देते हुए कहा कि बीजेपी दम रखती है तो इस बात का ऐलान करे कि किसी भी नेता के किसी भी परिवारजन को टिकिट नहीं देगी.
चाहे राजनीतिक पार्टियां हों, कोई दफ्तर हो या फिर संस्थान, वहां काम करने वाले लोग आमतौर पर एक परिवार की भावना से काम करते हैं और इसका जिक्र भी करते हैं. कई बार परिवार और परिवारवाद की भावना एक दूसरे को संबल देती है लेकिन राजनीति में परिवारवाद और इसके आरोप विपक्षी पार्टियों पर हमला बोलने के लिए ज्यादा काम में आते हैं. राजस्थान में चुनावी साल में एक बार फिर राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद को लेकर बयान दिख रहे हैं. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं.
बीजेपी ने कांग्रेस पर परिवारवाद की राजनीति करने के आरोप लगाए हैं. उदयपुर के मंच से कांग्रेस को परिवारवादी पार्टी बताया गया. केन्द्रीय गृह मन्त्री अमित शाह ने कहा कि भ्रष्टाचार करने वाली 21 पार्टियां इकट्ठा होकर राहुल बाबा को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जुट रही हैं. शाह ने कहा कि ये वो पार्टियां हैं जिनके मन में जनता का भला नहीं बल्कि अपने बेटे का भविष्य है. अमित शाह ने कहा कि सोनिया गांधी का पूरे जीवन का लक्ष्य राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना, लालू प्रसाद यादव का लक्ष्य अपने बेटे तेजस्वी को प्रधानमंत्री बनाना, ममता बनर्जी का लक्ष्य अपने भतीजे अभिषेक को मुख्यमंत्री बनाना है. शाह ने राजस्थान के नेताओं को भी नहीं छोड़ा. उन्होंने कहा कि गहलोत का इंटरेस्ट अपने बेटे वैभव गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने में है. उन्होंने कहा जनता से कहा कि, जो अपने बेटे के लिए काम कर रहा है? उसे वोट देना है? या जो देश के लिए काम करें उसे वोट देना है?
इससे पहले गुरूवार को भरतपुर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मंच से भी ऐसा ही हुआ. जेपी नड्डा ने तो यहां तक कहा कि मोदी ने राजनीति में परिवारवाद को खत्म किया है. जेपी नड्डा ने उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में तमिलनाडु तक और पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में महाराष्ट्र तक परिवारवादी पार्टियों और उनके नेताओं के नाम गिना कर जनता से कनेक्शन स्थापित करने की कोशिश की.
उधर पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी इस तरह के जुबानी हमले और आरोपों का जवाब देने के लिए तैयार ही बैठे थे. डोटासरा ने परिवारवाद को लेकर लगाए आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी से उल्टा सवाल कर दिया. पीसीसी चीफ ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के पुत्र को लेकर सवाल किए, तो राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह, वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह, प्रमोद महाजन की पुत्री पूनम महाजन के नाम का ज़िक्र किया. यही नहीं डोटासरा ने केन्द्रीय मन्त्री पीयूष गोयल, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के विधायक पुत्र और पूर्व मंत्री किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ती को भी परिवारवाद का उदाहरण बताया. इतना ही नहीं. डोटासरा ने तो चुनौती देते हुए यहां तक कह दिया कि, क्या बीजेपी यह कह सकती है कि वो किसी भी नेता के रिश्तेदार या परिजनको को टिकट नहीं देगी? डोटासरा ने कहा, अगर बीजेपी इस तरह की घोषणा करके उस पर अमल करती है... तब उसके बाद ही किसी दूसरे पर सवाल उठा सकती है.
राजनीति में हर नेता अपनी कमीज़ दूसरे से ज्यादा उजली बताता है. शायद यही कारण हैं? कि किसी दूसरी पार्टी के आरोपों पर नेता जवाब कम और पलटवार ज्यादा करते हैं. ... ऐसे में सवाल उठता हैं? कि, अगर राजनीतिक शुचिता की बात होती है, तो जिन आधारों पर दूसरों को आईना दिखाने की कोशिश होती है... क्या सभी पार्टियां अपने संगठन और सरकार में उन खामियों को दूर करने पर भी ध्यान देती हैं?
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