अनोखी है बरवाड़ा की चौथ माता की कहानी, सुहागिनों को देती हैं अखंड सौभाग्य का वरदान
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अनोखी है बरवाड़ा की चौथ माता की कहानी, सुहागिनों को देती हैं अखंड सौभाग्य का वरदान

Chaitra Navratri 2024: सवाई माधोपुर में चौथ माता का मंदिर 1451 ई. में बना था और यह मंदिर हजार फीट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. 568 साल पुराने यानी देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर में महज करवा चौथ के ही मौके पर 2 से 3 लाख महिलाएं पूजा करती हैं. कहते है कि इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने कराई थी. 

chauth mata mandir

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि यानी की देवी दुर्गा के पावन दिनों की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्रि के पावन दिनों में भक्त माता रानी को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग उपाय और जतन करते हैं. कोई माता रानी को श्रृंगार का सामान चढ़ता है तो कोई उन्हें नारियल समर्पित करता है. कई लोग 9 दिनों का उपवास भी रखते हैं. 

यह भी आप जानते हैं कि पूरे देश भर में माता रानी के एक बढ़कर एक अनोखे मंदिर हैं, जहां की मान्यता वह बहुत अलग है. ऐसे में आज आपको राजस्थान के जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, वहां, पर माता ने एक राजा को सपने में दर्शन देकर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था. 

राजस्थान प्रदेश में सवाई माधोपुर जिले के बरवाड़ा कस्बे में चौथ माता का भव्य मंदिर स्थित है. आस-पास के लोगों के साथ ही देश और प्रदेश के लोगों के लिए चौथ माता का मंदिर आस्था का केंद्र है. यहां नवरात्रि (Navratri 2021) के साथ ही वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और माता के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु चौथ माता के दरबार मे पहुंचते हैं.

करवा चौथ के मौके पर विशेष पूजा
चौथ माता का मंदिर 1451 ई. में बना था और यह मंदिर हजार फीट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है. 568 साल पुराने यानी देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर में महज करवा चौथ के ही मौके पर 2 से 3 लाख महिलाएं पूजा करती हैं. कहते है कि इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने कराई थी. किवदंतियां हैं कि देवी चौथ माता ने स्वप्न में राजा भीमसिंह चौहान को दर्शन देकर यहां अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया था. राजा एक बार बरवाड़ा से संध्या के वक्त शिकार पर निकल रहे थे तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका.

राजा रानी के मना करने पर भी शिकार को चले गए
मगर, भीमसिंह ने यह कहकर बात को टाल दिया कि चौहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं. इस तरह रानी की बात को अनसुना करके भीमसिंह अपने कुछ सैनिकों के साथ घनघोर जंगलों की तरफ चले गए. राजा रानी के मना करने पर भी शिकार को चले गए. शाम होते ही उन्हें वहां एक मृग दिखा, सभी उस मृग का पीछा करने लगे. कुछ देर में रात हो गई और रात होने के बावजूद भीमसिंह मृग का पीछा करते रहे. धीरे-धीरे मृग भीमसिंह की नजरों से ओझल हो गया.

राजा को अपने चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया
वहीं, तब तक साथ के सैनिक भी राजा से रास्ता भटक चुके थे और अकेले में राजा विचिलित हो उठा. काफी खोजने के बाद भी पीने को पानी नहीं मिला और इससे वह मूर्छित होकर जंगलों में ही गिर पड़े. तब अचेतावस्था में भीमसिंह को पचाला तलहटी में चौथ माता की प्रतिमा दिखने लगी. कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि भयंकर बारिश होने लगी और बिजली कड़कने लगी. मूर्छा टूटने पर राजा को अपने चारो-तरफ पानी ही पानी नजर आया.

घनघोर जंगल में कोई न था, तभी यह चमत्कार हुआ और राजा ने पहले पानी पिया. फिर वहीं अंधकार भरी रात में एक कांतिवान बालिका पर उनकी नजर पड़ी और वह कन्या खेलती नजर आई. राजा ने पूछा कि तुम इस जंगल में अकेली क्या कर रही हो ? तुम्हारे मां-बाप कहां पर हैं? कन्या ने तोतली वाणी में कहा कि 'हे राजन तुम यह बताओ कि तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं'. इतना कहकर वह कन्या अपने असली देवी रूप में आ गई तब राजा उनके चरणों में गिर पड़े और बोला कि 'हे आदिशक्ति महामाया! मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए, अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हमारे प्रांत में ही हमेशा निवास करें'. तब 'ऐसा ही होगा' कहकर, वह देवी अदृश्य हो गईं.

चौथ माता का मेला
राजा को वहां चौथ माता की एक प्रतिमा मिली और उसी चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर लौट पड़ा. बरवाड़ा आते ही राजा ने राज्य में पूरा हाल कह सुनाया तब पुरोहितों की सलाह पर संवत् 1451 में बरवाड़ा की पहाड़ की चोटी पर, माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित कराया. ऐसा कहा जाता है कि तब से आज तक इसी दिन यहां चौथ माता का मेला लगता है और करवा चौथ के पर्व के मौके पर कई राज्यों से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर दर्शन के लिए आते हैं.

पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान
यह मंदिर विशेषतौर पर विवाहित जोड़े के लिए है. सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ के त्योहार के मौके पर यहां अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं. ऐसी मान्यता हैं कि चौथ माता गौरी देवी का ही एक रूप हैं. इनकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान तो मिलता ही है. साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी सुख बढ़ता है. करवा चौथ हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है.

कोटा में चौथ माता बाजार
अरावली पर्वत पर यह मंदिर सवाई माधोपुर शहर से 35 किमी दूर, सुंदर-हरे वातावरण और घास के मैदानों के बीच स्थित है. सफेद संगमरमर के पत्थरों से इस स्मारक की संरचना तैयार की गई थी. दीवारों और छत पर शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. इस मंदिर परिसर में चौथ माता देवी की मूर्ति के अलावा, भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी दिखाई पड़ती हैं. पुजारी के मुताबिक, हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य से पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं और प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही इसे कुल देवी के रूप में पूजा जाता है. इतना ही नहीं, माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है.

कैसे पहुंचे इस मंदिर
इस मंदिर की यात्रा साल में कभी भी की जा सकती है लेकिन नवरात्रि और करवा चौथ के समय यहां जाने का विशेष महत्व माना जाता है. नवरात्रि में यहां मेल लगता है और इसके अलावा किसी भी समय यहां अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए जा सकते हैं. इस मंदिर के दर्शन करने जाने के लिए आपको पहले सवाई माधोपुर पहुंचना होगा. चौथ का बरवाड़ा से जयुपर 110 किमी दूर है और जयपुर से यहां तक लोकल ट्रेन चलती हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, आस्थाओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE Rajasthan इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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