Sikar: हिंदी मीडियम से बना इंग्लिश मीडियम, अब स्टूडेंट्स बोलते है फर्राटेदार अंग्रेजी
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Sikar: हिंदी मीडियम से बना इंग्लिश मीडियम, अब स्टूडेंट्स बोलते है फर्राटेदार अंग्रेजी

  2 साल पहले सीकर की शिवसिंहपुरा की सरकारी स्कूल में न के बराबर नामांकन था.  स्कूल को दूसरी स्कूल में मर्ज करने की तैयारी की जा रही थी। लेकिन फिर स्कूल स्टाफ ने नामांकन बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू किए गए, जिसके कारण अब जिले केशिवसिंहपुरा सरकारी स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ने लगा.

Sikar: हिंदी मीडियम से बना इंग्लिश मीडियम, अब स्टूडेंट्स बोलते है फर्राटेदार अंग्रेजी

Sikar:  2 साल पहले सीकर की शिवसिंहपुरा की सरकारी स्कूल में न के बराबर नामांकन था.  स्कूल को दूसरी स्कूल में मर्ज करने की तैयारी की जा रही थी। लेकिन फिर स्कूल स्टाफ ने नामांकन बढ़ाने के लिए प्रयास शुरू किए गए, जिसके कारण अब जिले केशिवसिंहपुरा सरकारी स्कूल में बच्चों का नामांकन बढ़ने लगा. इसके साथ ही यहां बच्चे अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की जैसे फर्राटेदार  अंग्रेजी बोलते हैं. 

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दरअसल, यहां के स्टाफ ने ऐसे बच्चों का एडमिशन करवाया है जो या तो पढ़ाई छोड़ चुके थे या फिर जिन्होंने पढ़ाई करना शुरू ही नहीं किया था.  स्कूल के इस सहरानीय प्रयासों को अब अन्य कई सरकारी स्कूल लागू करने जा रहे है.

किताबी ज्ञान के अलावा प्रैक्टिकल भी जरूरी

स्कूल की साइंस टीचर किरण बाला ने बताया कि स्कूल में बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा लेटेस्ट मुद्दों पर भी पढ़ाई करवाई जाती है.उदाहरण के तौर पर जैसे अभी वर्तमान में कोरोना संक्रमण आया तो स्कूल में स्टूडेंट्स से इस पर कई नोट्स और लेकिन बनवाए गए.

लंपी वायरस की रोकथाम के लिए कर रहे रिसर्च
हाल ही में लंपी वायरस से रोकथाम के लिए भी स्टूडेंट रिसर्च कर रहे हैं. इसके अलावा वर्तमान में भूकंप  आने का पहले से ही पता चल सके, ऐसे एक मॉडल को साइंस स्टूडेंट तैयार कर रहे हैं. इन्हीं प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही एक छात्रा किरण बाला ने बताया कि स्कूल में बच्चों को नए नए प्रयोग के साथ  रोज मोटिवेट किया जाता है. इसके अतिरिक्त बोर्ड की परीक्षाओं में डायग्राम की भी काफी महत्ता रहती है. ऐसे में यह कोशिश है कि डायग्राम्स की भी बच्चों को काफी अच्छी प्रैक्टिस करवाई जाए क्योंकि परीक्षा में लिखने के नंबर कर सकते हैं लेकिन डायग्राम के नहीं.

स्कूल को बनाया आधुनिक
स्कूल प्रिंसिपल इंदु कला महला ने बताया कि उन्होंने 2018 में स्कूल में जॉइन किया था. उस दौरान यहां नामांकन भी काफी कम था. ऐसे में उन्होंने सबसे पहले तो यहां नामांकन बढ़ाने के लिए काफी विचार किए. जिनमें स्कूल की दीवारों से लेकर फर्श और पानी की टंकियों पर भी पढ़ाई से संबंधित पेंटिंग बनवाई गई. 

जिन्हें देखकर स्टूडेंट्स यहां खेल खेल में ही पढ़ाई कर सके.  इसके अलावा सीकर के कच्ची बस्तियों और झुग्गी झोपड़ियों वाले इलाकों में स्कूल स्टाफ ने काउंसलिंग अभियान चलाया गया,  जिससे कि उन इलाकों के बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ने के लिए आने लगे हैं. इसका असर यह हुआ कि अब यहां नामांकन पहले से दुगुना हो चुका है.

 बच्चे बोलते है फर्राटेदार ​ अंग्रेजी
 इसके साथ ही बच्चों को लाने ले जाने के लिए तीन गाड़ियां भी लगाई हुई है, जिनका खर्च भी स्टूडेंट्स के माता-पिता ही उठाते हैं. साथ-साथ स्कूल पूरा सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में है. ऐसे में यहां कोई भी अप्रिय घटना होने का डर नहीं रहता है. 
स्कूल में पढ़ने वाले स्टूडेट्स पायल और मोहम्मद अरबाज ने बताया कि वह  काफी समय से स्कूल नहीं जाते थे. ऐसे में स्कूल का स्टाफ उनके घर पर गया और उनके माता पिता से बात की, स्कूल  में आने का आग्रह किया.  जिसके बाद उनके पेरेट्स ने उनका दाखिला स्कूल में करवा दिया.  यहां से दोनों ने फिर से  वापस अपनी  पढ़ाई शुरू कर दी. जिसके बाद अब वह भी फराटेदार अंग्रेजी बोलते  है.  दोनों ने बताया कि, स्कूल में पढ़ाई के अलावा अन्य एक्टिविटीज भी करवाई जाती है. ऐसे में वह खेल खेल में भी पढ़ाई भी कर लेते हैं.

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