राजस्थान की यह जगह कहलाती है अर्धकाशी, होती है देवाधिदेव महादेव के अंगूठे की पूजा
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राजस्थान की यह जगह कहलाती है अर्धकाशी, होती है देवाधिदेव महादेव के अंगूठे की पूजा

Sirohi News: राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में अरावली पर्वत श्रृंखला में शिव के निवास का वर्णन स्वयं शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण में मिलता है. शिव पुराण एवं स्कन्द के अनुसार स्वयं शिव काशी के बाद विविध रूपों में माउण्ट आबू की अरावली पर्वत श्रृंखला में निवास करते हैं. इस लिए सिरोही जिले के माउण्ट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है. 

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Sirohi News: देवाधिदेव महादेव की लीला अपरम्पार है. जटाधारी शिव इस संसार की मोह माया से मुक्ति देकर अपने अपने भक्तों का बेड़ापार करते हैं. अन्य देवताओं से भिन्न अपने भक्तों की सामान्य सी पूजा से प्रसन्न होने वाले देवाधिदेव को इसलिए महादेव भी कहा जाता है.

अरावली पर्वत श्रृंखला में शिव के निवास का वर्णन स्वयं शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण में मिलता है. शिव पुराण एवं स्कन्द के अनुसार स्वयं शिव काशी के बाद विविध रूपों में माउण्ट आबू की अरावली पर्वत श्रृंखला में निवास करते हैं. इस लिए सिरोही जिले के माउण्ट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है. महाशविरात्रि के अलावा श्रावण के पूरे माह में माउण्ट आबू में देश के सुदूरवर्ती भागों से देवाधिदेव महादेव के दर्शन के लिए आते हैं. पुराणों में उल्लेख है कि इन पर्वत श्रृंखला में स्वयं शिव, अन्नत: रूप में विद्यामान है. यहीं कारण भी है कि राजस्थान के सिरोही जिले में सर्वाधिक मठ मंदिर पूरे जिले में विभिन्न स्थानों पर बने हुए हैं.

अचल गढ़ - आखिर क्यों होती है, यहां पर देवाधिदेव महादेव के अंगूठे की पूजा?
स्कन्द पुराण के अनुसार ऋषि वशिष्ठ इन्ही अरावली पर्वत माला में एक गुफा में तपस्या किया करते थे. उनके पास में एक गाय थी नन्दनी. स्कन्द पुराण में उल्लेख के अनुसार, इन्द्र के वज्र के प्रहार से इस पर्वत श्रृंखला में एक ब्रहृम खाई बन गयी थी और स्वयं ऋषि वशिष्ठ भी इसी ब्रहृम खाई के पास में ही बैठकर के तपस्या करते थे. इसी स्थान पर ब्रहृम खाई होने से ऋषि वशिष्ठ की गाय नन्दिनी उस ब्रहृम खाई में रोजाना गिर जाती थी. रोजाना की इसी समस्या से परेशान होकर के ऋषि वशिष्ठ ने इस ब्रहृम खाई को भरने की ठानी और आग्रह पूर्वक पर्वतों के राजा हिमालय राज के पास में पहुंचे. 

ऋषि वशिष्ठ के इस आग्रह को हिमालय राज ने जल्द ही स्वीकार कर अपने श्रष्ठ पुत्र अरावली को इस ब्रहम् खाई को भरने के लिए भेजा लेकिन खाई गहरी को नहीं भर पाया और फिर इसी स्थान पर पर्ण रूप से फैल कर लेट गया. इसी कारण अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व में सर्वाधिक लम्बी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है, जो राजस्थान के पूरे प्रदेश के अलावा पंजाब के बॉर्डर पर भी दिखाई देती है.

नंदीराज भी हुए असफल
जब हिमालय राज के श्रेष्ठ पुत्र अरावली इस ब्रह्म खाई को पाट पाने में सफल नहीं हो पाएं तो पुन: ऋषि की प्रार्थना पर हिमालय राज ने एक लंगड़े पर्वत नंदीराज को एक विशाल अर्बुद सर्प पर सवार कर इस स्थान पर भेजा. यहां पर आने के बाद में नंदीश्वर पर्वत भी इस ब्रहृम खाई में भीतर गहराई तक समाने लगा तो चिन्तित होकर ऋष्ठि वशिष्ठ ने देवाधिदेव महादेव से इस ब्रह्म खाई को भरने की प्रार्थना की. 

महादेव ने सुनी पुकार
ऋषि वशिष्ठ की करूण प्रार्थना की पुकार सुन महादेव ने काशाी से ही अपने दाहिने पैर को फैलाकर के अपने अंगूठें से इस नंदीश्वर पर्वत को अधर कर कर दिया और बाद में इस स्थान का नाम अचलेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया. आज इस स्थान को अचलगढ़ के रूप में जाना जाता है. शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण में यह उल्लेख है कि स्वयं शिव के साक्षात् अंगूठे के इस स्थान पर होने से ही यह पर्वत स्वयं देवाधिदेव महादेव के अंगूठे पर स्थिर अथवा अचल है, इसलिए स्वयं एक साक्षात् रूप में स्वयं शिव इस स्थान पर विराजमान हैं और मन से की प्रार्थना को वे जल्द पूरा कर अपने भक्तों का कल्याण करते हैं.

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