सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने फैसला दिया है कि लोकतंत्र में लोग धरना-प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन उसकी भी एक सीमा है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शाहीन बाग (Shaheen Bagh) धरना मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में सबको धरना-प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन उसकी भी एक सीमा है. इस सीमा से आगे जाने पर कानूनी एक्शन लिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शनिवार को सुनवाई करते हुए शाहीन बाग मामले में पिछले साल दिए गए फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि विरोध जताने के लिए धरना प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है. लेकिन इसकी आड़ में लोग अपनी मर्जी से कहीं भी और किसी भी जगह धरना प्रदर्शन नहीं कर सकते. अदालत ने कहा कि इस मामले में एक सीमा तय है और सभी को इसका पालन करना होगा.
जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि लंबे समय तक प्रदर्शन करके सार्वजनिक स्थानों पर दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता. विरोध प्रदर्शन का हक हर जगह नहीं हो सकता, सभी लोगों को इसे समझना चाहिए. इसी के साथ कोर्ट ने शाहीन बाग (Shaheen Bagh) पर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी.
बता दें कि केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विरोध में वर्ष 2019 में दिल्ली-नोएडा लिंक रोड को घेरकर शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में कई महीने तक प्रदर्शन किया गया था. देश में कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप फैलने पर केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया था. जिसके बाद शाहीन बाग में प्रदर्शन खत्म हो गया था.
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इस मामले में लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछले साल अक्टूबर में फैसला सुनाया था. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि धरना प्रदर्शन के लिए जगह चिन्हित होनी चाहिए. अगर कोई व्यक्ति या समूह इससे बाहर धरना प्रदर्शन करता है, तो नियम के मुताबिक पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. कोर्ट ने कहा था कि धरने के लिए सार्वजनिक स्थान पर कब्जा नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को खारिज कर दिया.
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